शताब्दी स्मरण,,,,,,,,,,,,,,,,
कल 8 अगस्त को हिन्दी के जाने माने प्रगतिशील साहित्यकार भीष्म साहनी की जन्म शताब्दी है ...
विकल्प विमर्श इस सप्ताह भीष्म जी की कहानियों से उन्हें याद कर रहा है ।
आज पढ़ें,,,,,
ओ हरामजादे--- भीष्म साहनी
विदा होते समय उसने मुझे फिर बाँहों में भींच लिया और देर तक भींचे रहा, और मैंने महसूस किया कि भावनाओं का ज्वार उसके अंदर फिर से उठने लगा है, और उसका शरीर फिर से पुलकने लगा है। 'यह मत समझना कि मुझे कोई शिकायत है। जिंदगी मुझ पर बड़ी मेहरबान रही है। मुझे कोई शिकायत नहीं है, अगर शिकायत है तो अपने आप से...' फिर थोड़ी देर चुप रहने के बाद वह हँस कर बोला, 'हाँ एक बात की चाह मन में अभी तक मरी नहीं है, इस बुढ़ापे में भी नहीं मरी है कि सड़क पर चलते हुए कभी अचानक कहीं से आवाज आए 'ओ हरामजादे!' और मैं लपक कर उस आदमी को छाती से लगा लूँ', कहते हुए उसकी आवाज फिर से लड़खड़ा गई।
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