चेनाप घाटी: दुनिया की नजरों से दूर एक जन्नत
संजय चौहान
उत्तराखंड की बेपनाह सुन्दरता का कोई सानी नहीं है। यहाँ कई ऐसी जगहें हैं, जहाँ नजर पड़े तो मनुष्य बस मंत्रमुग्ध ही रह जाये। पहाड़ों की रानी मसूरी, झीलों की नगरी नैनीताल, बर्फ की चादर ओढ़े औली, गढ़वाल का स्विट्जरलैंड चोपता, मिनी कश्मीर पिथौरागढ, महात्मा गांधी को मुग्ध कर देने वाला कौसानी, असंख्य फूलों से लकदक फूलों की घाटी या मखमली घास का मैदान दयारा बुग्याल जैसे स्थान तो कमोबेश पर्यटन के नक्शे पर हैं। मगर इनसे इतर भी कई सुंदर व दर्शनीय स्थल हैं, जो अभी भी दुनिंया की नजरों से दूर है। ऐसी ही एक जन्नत है चेनाप घाटी, जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। सीमांत जनपद चमोली के जोशीमठ ब्लाक में स्थित कुदरत की गुमनाम नेमत अपने सौन्दर्य से अभिभूत कर देती है। देखा जाये तो यह घाटी अपने अक्षत सौंदर्य से विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी को भी पीछे छोड़ देती है।
उर्गम घाटी, थैंग घाटी व खींरो घाटी के बीच में हिमालय की हिमाछादित चोटियों की तलहटी में 13 हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित फूलों की इस जन्नत में लगभग 5 वर्ग किमी के दायरे में 200 से 250 प्रजातियों के प्राकृतिक फूल अपनी बेपनाह सुंदरता और खुशबू बिखेरते हैं। उस दृश्य को केवल देखा और महसूस किया जा सकता है, शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता। पुराणों में भी कहा गया है कि यहाँ के फूलों की सुंदरता व खुशबू के सामने बद्रीनारायण व गंधमादन पर्वत की सुंदरता व खुशबू नहीं के बराबर है। चेनाप घाटी की सुंदरता यों तो बारहों महीने बनी रहती है। लेकिन यहाँ जाने का सबसे उपयुक्त समय जुलाई से लेकर अक्टूबर के मध्य तक है। यहाँ की हजारों कतारनुमा क्यारियों को देखकर लगता है कि मानो कुदरत ने अपने हाथों से फुरसत में बड़े सलीके से बनाया हो। इन फूलों में राज्य पुष्प ब्रह्मकमल की हजारों क्यारियाँ विशेष रूप ध्यान आकर्षित करती हैं।
पर्यटन प्रदेश का नारा देने वाली उत्तराखंड सरकार भले ही पर्यटन के प्रचार-प्रसार के नाम पर करोड़ों रुपये के विज्ञापनों लुटा रही हो, मगर चेनाप जैसे क्षेत्र उसकी नजरों से ओझल हैं। जबकि ऐसे गुमनाम स्थलों को देश की नजर में लाना उसका पहला काम होना चाहिये था। अभी नाममात्र के पर्यटक ही इस क्षेत्र में आते हैं, जिनमें बंगालियों की संख्या सबसे ज्यादा है। वर्ष 1987 में औली में पहले राष्ट्रीय शीतकालीन खेलों के अवसर पर चमोली के तत्कालीन जिला पंचायत अध्यक्ष रामकृष्ण उनियाल नें केंद्रीय पर्यावरण सचिव से इस घाटी को पर्यटन मानचित्र से जोड़ने की माँग की। 1989 को बद्री केदार के विधायक कुँवर सिंह नेगी और 1997 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन पर्यटन महानिदेशक सुरेंद्र सिंह पांगती के कदम चेनाप घाटी में पड़े। लेकिन अभी पृथ्वी के इस स्वर्ग की किस्मत वैसी ही है। जोशीमठ ब्लॉक प्रधान संगठन के अध्यक्ष लक्ष्मण नेगी कहते हैं कि यदि उर्गम- भेंटा- फ्यँूलानारायण- फुलाना- गणेश मंदिर- सोना शिखर- मतपाटा- नीलकंठ- बद्रीनाथ ट्रैक को विकसित किया जाये तो इस इलाके की आर्थिकी को बहुत बड़ा सहारा मिलता।
फूलों की इस जन्नत के लोगों की नजरों दूर रहने के पीछे एक अवरोधक मोटर सड़क का न होना भी है। यहाँ पहुँचने के लिये ऋषिकेश से 265 किमी दूर, जोशीमठ के पास मारवाड़ी पुल तक ही वाहन में जाया जा सकता है। तत्पश्चात् 20 किमी का सफर पैदल तय करना होता है, जिसमें 3 दिन का समय लगता है। जिसमें पहले दिन थैंग गाँव व दूसरे दिन धार खर्क में रात्रि विश्राम करने के बाद तीसरे दिन चेनाब घाटी में पहुँचा जाता है। यदि यहाँ तक पहुँचने के लिये आखिरी गाँव थैंग तक सड़क बन जाती तो 8 किमी ही पैदल सफर करना पड़ता। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के अधीन कछुवा चाल से बन रही मारवाडी-थैंग मोटर सड़क कब पूरी होगी, कोई नहीं कह सकता।
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