Tuesday, January 19, 2016

Pramod Ranjan 2 mins · Delhi · भारत की उच्‍च शिक्षण संस्‍थान भाई-भतीजावाद और उत्‍पीडन के अंधे कूंए हैं। दलित-बहुजन इसके सबसे आसान शिकार हैं। लेकिन यह सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। महिलाओं का यौन शोषण यहां आम बात है। द्विज पृष्‍ठभूमि से आने वाले छात्रों को भी इन संस्‍थानों में अपना आत्‍मसम्‍मान किसी न किसी के सामने गिरवी रखना पडता है। इन अंधे कुंओं से जो आवाज कभी-कभी बाहर आती है, वह सिर्फ चीख ही होती है। रोहित की आत्‍महत्‍या के बाद हम वही चीख सुन रहे हैं। सोशल मीडिया के कारण इस चीख का कुछ ज्‍यादा दूर तक असर हुआ है। इन शैक्षणिक संस्‍थानों की कार्यप्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्‍यकता है।

भारत की उच्‍च शिक्षण संस्‍थान भाई-भतीजावाद और उत्‍पीडन के अंधे कूंए हैं। दलित-बहुजन इसके सबसे आसान शिकार हैं। लेकिन यह सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। महिलाओं का यौन शोषण यहां आम बात है। द्विज पृष्‍ठभूमि से आने वाले छात्रों को भी इन संस्‍थानों में अपना आत्‍मसम्‍मान किसी न किसी के सामने गिरवी रखना पडता है।
इन अंधे कुंओं से जो आवाज कभी-कभी बाहर आती है, वह सिर्फ चीख ही होती है। रोहित की आत्‍महत्‍या के बाद हम वही चीख सुन रहे हैं। सोशल मीडिया के कारण इस चीख का कुछ ज्‍यादा दूर तक असर हुआ है। इन शैक्षणिक संस्‍थानों की कार्यप्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्‍यकता है।

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