Sustain Humanity


Monday, February 27, 2017

Nothing to stop Racist RSS Agenda of Corporate Fascism! Palash Biswas


Nothing to stop Racist RSS Agenda of Corporate Fascism!

Palash Biswas

What ever may come, the extraconstitutional rather anti constitution force RSS is determined to implement its agenda of ethnic cleansing injecting extrem racist venom of intolerance into the veins of the next generation to acomplish its agenda of zionist global corporate hindutva.

RSS damn cares about the mandate.Mandate or no mandate it wants to kill every individual voicing dissent to kill diversity,tolerance and peace as it killed Gandhi and very recently Kalburgi,Pansare and davolkar not to mention Rohit Vemula nd najib very recently.Forget the genocide culture which created holocaust in Gujarat,Assam,Tripura and Punjab,riots countrywide and the soul of the nation is bleeding.

RSS is afraid of the nonexisting resistance flaring up as the Washington March or Not My President demonstrations in United States of America has challnged the Racist Intplerant regime of newly elected President Don Donald Trump,Ku Klx Clan!

The followers of some Nathuram Godse is afraid of democracy and thus they seem  to be adament to kill democracy lest Rohit Vemula phenomenon activated in Majority communities should dislodge themfrom the power and UP results might set the trends.

Tahte is why amid incomplete UP elections,new wave of intolerance to capture university campus clearly heralds the darkness ahead.What patriotism?What nationalism?

Example:Amidst the ongoing tussle between the Left-affiliated AISA and the RSS-backed ABVP, BJP MP Pratap Simha has stoked a controversy when he took to Twitter comparing Kargil martyr's daughter Gurmehar Kaur to fugitive underworld don Dawood Ibrahim. On Sunday evening, he posted a picture collage on Twitter with Kaur on one side and Ibrahim on the other side. Kaur is behind the 'Not Afraid of ABVP' campaign.

Example:In his reply to a video by Gurmehar Kaur, the daughter of a slain Kargil war soldier, who recently started the campaign "Not Afraid of ABVP", Union Minister Kiren Rijiju on Monday said a strong army prevents war. Kaur, daughter of war Captain Mandeep Singh, last year made a a video asking India and Pakistan to amicably settle their disputes. She held a placard saying "Pakistan did not kill my dad, war killed him." Asking who is "polluting" her mind, Rijiju took to Twitter saying "India never attacked anyone but a weak India was always invaded".

If every youth and every student cry freedom against the RSS regime and we the people stand united rock solid with the brave girl,the daughter of the kargil martyr,we might liberate the nation afresh from the clutches of death and destruction.

Hours after Minister of State for Home Affairs Kiren Rijiju tweeted out asking who is "polluting" her mind, daughter of a slain Kargil marytr Gurmehar Kaur replied to his comment on Monday saying, "I have my own mind, nobody is polluting my mind. I am not anti-national." In a veiled reference, she also criticised former Indian cricketer Virendra Sehwag for trolling her on Twitter. "I am heartbroken, these are the people you yell for in matches and they troll you at the expense of your father's death," Kaur told news agency ANI. In a tweet, Sehwag held a placard that read: "I didn't score two triple centuries. My bat did." Meanwhile, two women constables of Delhi Police have been provided to Kaur for round the clock security following rape threats reportedly from ABVP.


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Sunday, February 26, 2017

बाजार और कारपोरेट के खिलाफ जुबान खोलने में जिनकी औकात तक नहीं है,वे हारे या जीते तो उससे हमें क्या लेना देना? कोई अंक मिस किये बिना महिला पत्रिका उत्तरा के सत्ताइस साल पूरे हो गये!महिला आंदोलन का सिलसिला भी उत्तराखंड में कभी थमा नहीं है.निरंतर जारी है। बाकी देश में भी जितनी जल्दी हो सके, महिला नेतृ्त्व की खोज हम करें क्योंकि महिलाओं के आंदोलन और जन प्रतिरोध में उनके नेतृत्व से ही इस

बाजार और कारपोरेट के खिलाफ जुबान खोलने में जिनकी औकात तक नहीं है,वे हारे या जीते तो उससे हमें क्या लेना देना?

कोई अंक मिस किये बिना महिला पत्रिका   उत्तरा के सत्ताइस साल पूरे हो गये!महिला आंदोलन का सिलसिला भी उत्तराखंड में कभी  थमा नहीं है.निरंतर जारी है।

बाकी देश में भी जितनी जल्दी हो सके, महिला नेतृ्त्व की खोज हम करें क्योंकि महिलाओं के आंदोलन और जन प्रतिरोध में उनके नेतृत्व से ही इस अनंत गैस चैंबर की खिड़कियां खुली हवा के लिए खुल सकती हैं।

पलाश विश्वास

इन दिनों राजीव दाज्यू लातिन अमेरिका में हैं।आज अरसे बाद शेखरदा (शेखर पाठक)से बात हो सकी।शेखरदा के मुताबिक राजीवदाज्यू अगले हफ्ते तक नैनीताल वापस आ जायेंगे।रिओ से राजीवदाज्यू ने फेसबुक पर कर्णप्रयाग में मतदान टल जाने से इंद्रेश मैखुरी को जिताने के लिए एक अपील जारी की है तो शेखर ने भी बताया कि यह विधानसभा में जनता की आवाज बुलंद करने का आखिरी मौका है।

इस बारे में शेखरदा से मैंने पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि तमाम लोग कर्णप्रयाग जा रहे हैं।हमने जीत की संभावना के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि चुनाव जीतने की तैयारियां कुछ अलग किस्म की होती हैं,जिसमें बड़े दलों की ताकत का मुकाबला करके सही आदमी को जितना बेहद मुश्किल होता है। वे एकदम जमीन पर खड़े बिना भावुक हुए हकीकत बता रहे थे।

शेखर दाज्यू सही बता रहे हैं।चुनाव जीतने के लिए,चुनाव जीतकर सत्ता हासिल करने के लिए बाजार और कारपोरेट पूंजी का सक्रिय समर्थन अनिवार्य हो गया है।सारे के सारे राजनीतिक दल कारपोरेट फंडिंग से चलते हैं।बाजार और कारपोरेट हितों के खिलाफ कोई इसीलिए बोलता नहीं है।

अब तमाम बुनियादी सेवाएं और जरुरतें,आम जनता खास तौर पर मेहनतकशों के हक हकूक,भुखमरी,शिक्षा, चिकित्सा ,बिजली पानी जैसी अनिवार्य सेवाएं,जल जंगल जमीन और पर्यावरण के मुद्दे,भुखमरी,बेरोजगारी,मंदी वित्तीय प्रबंधन और अर्थव्यवस्था से जुड़े कारपोरेट हित और मुनाफाकोर बाजार की शक्तियों के हितों से टकराने वाले मुद्दे हैं।सुधार का मतलब है संसाधनों की खुली नीलामी ,निजीकरण और बेइंतहा बेदखली ,छंटनी और कत्लेआम।

जाहिर है कि इनसे चूंकि टकरा नहीं सकते,परस्पर विरोधी आरोप प्रत्यारोप, किस्से,सनसनी,जुमले,फतवे से लेकर तमाम रंग बिरंगी पहचान,बंटवारे चुनावी मुद्दे हैं।

बुनियादी मसलों पर बोलने वाले लोग चूंकि बाजार और कारपोरेट, प्रोमोटर, बिल्डर, माफिया और उनके हितों के प्रवक्ता मीडिया के खिलाफ खड़े हैं तो इन हालात में इंद्रेश जैसे किसी शख्स को जिताकर किसी विधानसभा या लोकसभा में जनता की चीखेों के बुलंद आवाज में गूंज बन जाने की कोई संभावना फिलहाल नहीं है।

भारतीय लोकतंत्र की विडंबना यही है कि संविधान निर्माताओं के सपनों के भारत के आर्थिक सामाजिक सांस्कृतिक धार्मिक नस्ली समानता,विविधता,बहुलता पर बात करना,मेहनतकशों के हकहकूक की आवाज बुलंद करना,बुनियादी मुद्दों पर बात करना,कानून के राज और भारतीय संविधान के प्रावधानों,नागरिक मानवाधिकारों की बात करना,संघीय ढांचे के मुताबिक  जनपदों और अस्पृस्य भूगोल की बात करना,जल जंगल जमीन पर्यावरण जलवायु मौसम के बारे में बात करना देशद्रोह है।

भारतीय लोकतंत्र की विडंबना यही है कि उत्पीड़न,दमन और अत्याचार के निरंकुश माफियाराज औन फासिज्म के नस्ली राजकाज के खिलाफ आवाज उठाना राष्ट्रद्रोह हैं।यही अंध राष्ट्रवाद है तो यही हिंदुत्व का कारपोरेट ग्लोबल एजंडा है,जिसके खिलाफ मेहनतकशों की मोर्चाबंदी अभी शुरु हुई नहीं है और हवा हवाई तलवार भांजते रहने से इस प्रलयंकर सुनामी के ठहर जाने के आसार नहीं है।

ऐसे विषम पर्यावरण में चुनावी मौसम से कयामत की फिजां बदल जाने की संभावना के बारे में उम्मीद न ही करें तो बेहतर।

अब यूपी के चुनाव के लिए पांचवें दौर का मतदान होना है और बाकी दो चरणों के मतदान भी जल्दी निबट जायेंगे।

बंगाल में हर कहीं लोग यूपी में क्या होने वाला है,जानना चाहते हैं।मैं उन्हें यही बता रहा हूं कि जुमलों और पहचान की राजनीति में मतदाता किसी भी धारा में बह निकल सकते हैं और अब  2014 की सुनामी और उसके बाद के छिटपुट झटकों के अनुभवों के मद्देनजर कहा जा सकता है कि हालात खास बदलने वाले नहीं है क्योंकि आर्थिक मुद्दों पर बात करने के लिए भारतीय लोकतंत्र में कोई बात करने को तैयार नहीं है और बाजार और कारपोरेट के खिलाफ जुबान खोलने में जिनकी औकात तक नहीं है,वे हारे या जीते तो उससे हमें क्या लेना देना?

सामंतवाद,साम्राज्यवाद,पूंजीवाद,विनिवेश,निजीकरण,बजट,रोजगार,रक्षा व्यय,संसाधनों की लटखसोट और नीलामी पर अब कोई विमर्श नहीं है।

जाहिर है कि आम जनता के हितों की परवाह किसी को नहीं है ,सबको चुनावी समीकरण साध कर सत्ता हासिल करने की पड़ी है।विचारधारा गायब है।

जाहिर है कि चाहे कोई भी जीते,जीतकर वे फासिज्म के राजकाज को मजबूत नहीं करेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है।इतिहास गवाह है कि किसी सूबेदार की हुक्म उदुली की नजीरें बेहद कम है।चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान सूबेदारी का जलवा यूपी की जनता ने भी कम नहीं देखा है।चेहरा बदल जाने से हालात नहीं बदलेंगे।

संघीय ढांचे की अब कारपोरेट राजनीतिक दलों को भी परवाह नहीं है।जाहिर है कि राष्ट्र में सत्ता के नई दिल्ली में लगातार केंद्रीयकरण और निरंतर तेज हो रहे आर्थिक सुधारों के बाद किसी राज्य में केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ राजकाज या कानून के राज की कोई संभावना नहीं है।

यूपी जैसे,बिहार जैसे,महाराष्ट्र जैसे,बंगाल और तमिलनाडु,मध्यप्रदेश जैसे घनी आबादीवाले राज्यों के लिए भी विकास के बहाने केंद्रे सरकार के जनविरोधी कारपोरेट हिंदुत्व के एजंडे से नत्थी हो जाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प सत्ता में बने रहने का नहीं है।छोटे राज्यों की तो बात ही छोड़ दें।इसीलिए केसरियाकरण इतना तेज है।

जनता के हक में राजनीति खड़ी नहीं हो रही है तो जनता को हक है कि वे चाहे जिसे जिताये।इससे अब कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।

बंगाल में हम परिवर्तन का नजारा देख रहे हैं तो दक्षिण भारतीय राज्यों और पूर्वोत्र में खुल्ला खेल फर्रूखाबादी है।

बहरहाल नैनीताल जब भी जाता रहा हूं ,शेखरदा या उमा भाभी के बाहर ही रहने से मुलाकात हो नहीं सकी है।आज पहाड़ के ताजा अंक के बारे में पूछताछ के सिलसिले में दिल्ली में फिल्मवाले प्राचीन दोस्त राजीव कुमार से बात हुई तो उनने एसएमएस से शेखर दा का नंबर भेज दिया।फटाक से नंबर लगाया तो पता चला दा अभी अभी नैनीताल पधारे हैं।लंबी बातचीत हुई है।

अभी अभी शंकरगुहा नियोगी पर डा.पुण्यव्रत गुण की किताब का अनुवाद किया है तो छत्तीसगढ़,उत्तराखंड और झारखंड के पुराने तमाम साथी खूब याद आते रहे।

शेखर ने बताया कि उत्तरा के सत्ताइस साल पूरे हो गये।उत्तरा की शुरुआत से पहले उमा भाभी मेरठ में हमारे डेरे पर चर्चा के लिए आयी थीं।उस वक्त कमला पंत भी मेरठ में ही थीं।उमा भाभी रुपीन के साथ आयी थी।रुपीन टुसु से छोटी है।दोनों उस वक्त शिशु ही थे।शेखर दा ने बताया कि रुपीन भी नैनीताल आयी है और उसने पीएचडी की थीसिस जमा कर दी है।सौमित्र कैलिफोर्निया में है।

उत्तरा के बिना किसी व्यवधान बिना कोई अंक मिस किये लगातार सत्ताइस साल तक निकलने की उपलब्धि वैकल्पिक मीडिया और लघु पत्रिका आंदोलन दोनों के लिए बेहद बुरे दिनों के दौर में उम्मीद की किरण है।

उत्तराखंड की जनपक्षधर महिला आंदोलनकारियों की पूरी टीम अस्सी के दशक से सक्रिय हैं और उनकी सामाजिक बदलाव के लिए रचनात्मक सक्रियता का साझा मंच उत्तरा है।गीता गैरोला,शीला रजवार,बसंती पाठक,नीरजा टंडन,कमला पंत, डा.अनिल बिष्ट जैसी अत्यंत प्रतिभाशाली मेधाओं की टीम के नेतृ्त्व में उत्तराखंड के कोने कोने में  ने निरंतर सक्रियता जारी रखकर बुनियादी मुद्दों और मसलों को लेकर मेहनतकशों की हक हकूक की लड़ाई,जल जंगल जमीन की लड़ाई,शराबबंदी आंदोलन, पर्यावरण आंदोलन,पृथक राज्य आंदोलन,रोजगार आंदोलन,भूकंप,भूस्कलन,बाढ़ जैसे आपदाकाल में राहत और बचाव अभियान में उत्तराखंड का नेतृत्व किया है।

मणिपुर और आदिवासी भूगोल के अलावा सामाजिक बदलाव के लिए निरंतर पितृसत्ता की चुनौतियों का बहादुरी से मुकाबला करके निरंतर सक्रियता और निरंतर आंदोलन से जुड़ी इन दीदियों और वैणियों से मेरे निजी पारिवारिक संबंध रहे हैं,इसलिए यह मेरे लिए बेहद खुश होने का मामला है।

इसके साथ बोनस यह है कि पहाड़ के अंक भी लगातार निकल रहे हैं और तमाम आशंकाओं को धता बताकर नैनीताल समाचार का प्रकाशन अभी जारी है।

बंगाल में ममता बनर्जी के लाइव शो के बाद रोज निजी अस्पतालों के लूट खसोट के बर्बर किस्से सामने आ रहे हैं।लेकिन इसके खिलाफ कोई जन आंदोलन असंभव है क्योंकि कारपोरेट पूंजी के खिलाफ  मैदान में डट जाने वाला कोई राजनीतिक दल अभी बचा नहीं है।बंगाल में मजदूर आंदोलन भी बंद कल कारखानों की तरह अब खत्म है।महिला,छात्र युवा आंदोलन भी तितर बितर है।

अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रंप की ताजपोशी के दिन दुनियाभर में और अमेरिका के शहरों में महिलाओं ने जो अभूतपूर्व मार्च किया और अमेरिका में नस्ली राजकाज के खिलाफ जन प्रतिरोध का नेतृत्व जिस तरह महिलाएं कर रही हैं, मणिपुर और आदिवासी भूगोल की तरह उत्तराखंड में जन पक्षधर महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं की निरंतर सक्रियता और उनकी पत्रिका उत्तरा के लगातार सत्ताइस साल पूरे हो जाने से उम्मीद की किरण नजर आती है।

बाकी देश में भी जितनी जल्दी हो सके,महिला नेतृ्त्व की खोज हम करें क्योंकि महिलाओं के आंदोलन और जन प्रतिरोध में उनके नेतृत्व से ही इस अनंत गैस चैंबर की खिड़कियां खुली हवा के लिए खुल सकती हैं।


INVITATION TO 7TH APRIL, 2017 NATIONAL CONFERENCE ON NATIONAL CAMPAIGN FOR UNIVERSAL HEALTH CARE

INVITATION TO 7TH APRIL, 2017 NATIONAL CONFERENCE ON NATIONAL CAMPAIGN FOR UNIVERSAL HEALTH CARE

In 1978, in its Alma Ata declaration the World Health Organization called for "Health for All by 2000 AD". INDIA was a signatory to that declaration.
But from early the 1990s the Indian government started to drift away from its responsibilities to the service sectors, following the diktats of IMF-World Bank combined.
In 2010 the Planning Commission constituted a High Level Expert Group (HLEG) on Universal Health Coverage. The group, headed by Dr. K Shrinath Reddy, recommended an increase in government spending on health care from 1.4% of GDP in 2010 to 2.5% by 2017 and to 3% by 2022, so that the government can meet the primary, secondary, and tertiary health care needs of all the citizens. The group envisaged government as the main provider of health care. It called for a Health Entitlement Card for every citizen.
But the Planning Commission in its plan document of 2012 ignored HLEG's recommendations and from 2014 the MODI government has cut the Government health care spending by 20%. Now Government spends less than 1% of GDP in health care.
From 2013, Shramajibi Swasthya Udyog, an organization of doctors and health workers committed to Universal Health Care, along with several other organizations, is taking the recommendations of HLEG on UHC to the people of West Bengal. In August 2015, 33 organizations formed the All Bengal Health for All Campaign Committee. Dr. K. Shrinath Reddy, Dr. Binayak Sen and several other health activists spoke for "Health for All" in a public convention in Kolkata on 24th January, 2016.
The campaign in west Bengal is going on. Time has come to take this campaign to other states, so that people all over India move for Universal Health Care.
This year on 7th April, Shramajibi Swasthyo Udyog will host a National Conference of delegates from different states to discuss and decide on the National Campaign.
Venue: West Bengal Voluntary Health Association Tower, 1st floor. Near Manovikash Kendra/ Ruby Hospital/ Desun Hospital.
Time: 12 Noon to 6 pm 
We request you/your organization to take part in the conference. 
The expenses for food and lodging will be taken care of by the organizers. 
Please confirm your participation to shramajibiswasthya@gmail.com 15th of March, 2017. You may ring any one of the signatories for any query.
Regards
Yours Truly,

Dr. Punyabrata Gun, Adviser, Shramajibi Swasthya Udyog, 
Mob: 9830922194 
Dr. Sujoy Kumar Bala, President, Shramajibi Swasthya Udyog 
Mob: 9836475632 
Dr. Mrinmoy Bera, Secretary, Shramajibi Swasthya Udyog



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Friday, February 24, 2017

आम जनता की सेहत के लिए डाक्टर भी हैं,हमारे उनके साथ खड़ा होने की जरुरत है। सत्ता, बाजार, सियासत और बिजनेस से हम इस मौत के मंजर को बदलने में कोई मदद मिलने वाली नहीं है।निजी तौर पर किसी के लिए भी दो चार मामलों में मदद करने की हालत नहीं बनती है।जनपक्षधर जन संगठन ही मौत का यह मंजर बदल सकते है,बशर्ते कि उनसे जुड़े लोग इसकी पहल करें। पलाश विश्वास

आम जनता की सेहत के लिए डाक्टर भी हैं,हमारे उनके साथ खड़ा होने की जरुरत है।

सत्ता, बाजार, सियासत और बिजनेस से हम इस मौत के मंजर को बदलने में कोई मदद मिलने वाली नहीं है।निजी तौर पर किसी के लिए भी दो चार मामलों में मदद करने की हालत नहीं बनती है।जनपक्षधर जन संगठन ही मौत का यह मंजर बदल सकते है,बशर्ते कि उनसे जुड़े लोग इसकी पहल करें।

पलाश विश्वास

Dr. Kotnis Ki Amar Kahani - YouTube

dr.kotnis ki amar kahani के लिए वीडियो▶ 1:57:18

https://www.youtube.com/watch?v=uLBdg63rPQE

14/10/2011 - shemaroovintage द्वारा अपलोड किया गया

Dr. Kotnis Ki Amar Kahani - Dr Kotnis ki Amar Kahani is based on the real life story of Dr Dwarkanath S .


मौत सिरहाने इंतजार कर रही हो और मौत का यह मंजर सार्वजनिक हो,तो जिंदगी दर्द का सबब बन जाता है,जिससे रिहाई मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।

पूरे रामराज्य में सरकारी गैरसरकारी में यह मौत का मंजर बागों में बहार है और ख्वाबों के रंग बिरंगे सुनहले दिन हैं।

ममता बनर्जी का निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम के नुमाइंदों के साथ गुफ्तगूं उनकी स्टाइल में पालिटिकल मास्टर स्ट्रोक है क्योंकि यह टीवी पर लाइव रहा है।लोगों को अपने भोगे हुए यथार्थ के रिसते हुए जख्म पर मलहम लगा महसूस हो तो ताज्जुब की बात नहीं।लेकिन कब्रिस्तान हो या श्मशान घाट,सियासत के कारिंदे उसके नजारे बदल नहीं सकते।

स्वास्थ्य जब बिजनेस है, हब है, टुरिज्म है और अरबों का निवेश का मामला है तो स्टेंट की कीमत पचासी फीसद कम होने के बावजूद दिल के मरीजों को इलाज में राहत नहीं है।जीवन रक्षक जेनरिक दवाइयां बेहद सस्ती होने के बावजूद नूस्खे पर महंगी आयातित दवाइयां लिखने वाले लोग बेहद धार्मिक हैं,कहना  ही होगा।

ममता बनर्जी ने अपने लाइव शो में संवैधानिक पद पद से बोलते हुए तमाम आरोपों की पुष्टि भी कर दी है।जाहिर है कि अस्पतालों और नर्सिंग होमों में बिना जरुरी महंगी जांच पड़ताल,गैर जरुरी आपरेशन,मृत्यु के बाद भी आईसीयू और वेंटिलेशन का पांच सितारा बिल से लेकर अंग प्रत्यंग का कारोबार और नवजात शिशुओं की तस्करी जैसे तमाम गोरखधंधे में आम जनता की सेहत का कोई माई बाप नहीं है।

मौत से रहम की भीख शायद मांगी भी जा सकती है,लेकिन लाचार दर्द से कोई रिहाई नहीं है।खासकर तब जब इलाज ही लाइलाज बनाने का बंदोस्त है चाकचौबंद।

इस देश में आम जनता की सेहत की देखभाल का कोई इंतजाम नहीं है।

मलाईदार नागरिकों का स्वास्थ्य बीमा जरुर होता है,लेकिन वे भी अपनी सेहत की जांच पड़ताल कराने की हालत में नहीं होते।

नौकरी में रहते हुए कंपनी की तरफ से हमारा भी सालाना बीमा हुआ करता था।लेकिन बीमा का लाभ उठाने के लिए महंगे अस्पताल और नर्सिग होम ही सूचीबद्ध होने की वजह से सहकर्मियों और उनके परिजनों के बीमार पड़ने के बाद ऐसे चिकित्सा केंद्र में भरती होने की स्थिति में पहले ही दिन बीमा की रकम खत्म होने के बाद जो खर्च जेब से भरने पड़े,उस अनुभव के मद्देनजर हमने उसका लाभ उठाने की कोशिश कभी नहीं की ।हमारे और आम लोगों के इस अनुभाव के बारे में दीदी ने भी कहा है।

बहरहाल हमेशा सस्ते और सरकारी अस्पतालों में जाकर इलाज कराने का विकल्प हमने चुना।

स्वास्थ्य बीमा भी हेल्थ बिजनेस और हेल्थ हब की स्ट्रेटेजिक मार्केटिंग और रोजगार देने वाली कंपनियों की इस बिजनेस में हिस्सेदारी में हिस्सेदारी का किस्सा है।

डा.कोटनीस की अमर कहानी हर भारतीय को मालूम होनी चाहिए।जिन्हें इस बारे में खास पता नहीं है,वे जिंदगी चैनल पर रात आठ बजे इन दिनों दिखाये जा रहे दक्षिण कोरियाई सीरियल डीसेंजेस आफ सन जरुर देखाना चाहिए।यह एक महिला डाक्टर और सैनिक अफसर की प्रेमकथा है।सेना में युद्ध पारिस्थितिकी के मुकाबले जाति धर्म नस्ल देश का भेदभाव किये बिना मनुष्य की जान बचाने के मिशन की कथा यह है।स्वदेश से दूर युद्धक्षेत्र में युद्ध,मादक कारोबार,अमेरिकी हस्तक्षेप, सीआईए के खेल,राजनीति,राजनय, आतंकवाद,भूकंप और महामारी के मध्य कदम कदम पर साथ साथ पीड़ितों,उत्पीड़ितों ,वंचितों को बचाने के मिशन में दोनों का प्रेम साकार है।

किन मुश्किल परिस्थितियों में हर जोखिम और अविराम युद्ध परिस्थितियों में कोई डाक्टर मनुष्यता के मिशन के प्रति सबकुछ न्योच्छावर कर सकता है,कुल मिलाकर यह कथा है।

हकीकत में समाज में ऐसे डाक्टरों की कमी नहीं है।

बंगाल में जूनियर डाक्टरों का प्रगतिशील संगठन और चिकित्सकों का आंदोलन इसी दिशा में दशकों से काम कर रहे हैं।बाकी देश में सर्वत्र ऐसे डाक्टर होंगे।

मेरे चाचा डा.सुधीर विश्वास एक मामूली आरएमपी डाक्टर थे,जो पचास और साठ के दशक में नैनीताल की पूरी तराई भाबर पट्टी में मेहनतकशों का इलाज करते थे।साठ के दशक में वे असम में दंगाग्रस्त इलाके में दंगापीड़ितों के इलाज के लिए असम भी गये थे।

भोपाल गैस त्रासदी के बाद कोलकाता और मुंबई के अलावा देश भर के डाक्टर वर्षों तक वहां गैस पीड़ितों के इलाज में लगे रहे और आज भी उनके बीच कुछ डाक्टर काम कर रहे हैं।डां,गुणधर बर्मन भी जरुरतमंदों के इलाज में जिंदगी बिता दी।हर शहर,कस्बे और देहात में भी ऐसे अनेक डाक्टर हैं,जिनके साथ मिलकर महंगे और गैरवैज्ञानिक मुनाफाखोर इलाज से आम जनता को बचाया जा सकता है और नियमित सेहत की देखभाल से गंभीर बीमारियों और संक्रामक रोगों से रोकथाम भी हो सकती है।

छत्तीसगढ़ का शहीद अस्पताल मेहनतकशों का बनाया हुआ अस्पताल है। छत्तीसगढ़ में डाक्टर विनायक सेन भी हैं।

अभी मुझे तेज सरदर्द हो रहा है।जबरन लिख रहा हूं।

इन दिनों जरुरी बातें लिखने में भी हमारी दिहाड़ी खराब होती है क्योंकि अनुवाद का काम रोक देना होता है,जिसकी वजह से मैं इन दिनों कहीं आता जाता नहीं हूं।

सविता बाबू कई दिनों से बेचैन थीं कि उनकी रसोई में मदद करने वाली शंकरी का पति गंभीर रुप से बीमार है तो आज दिन में बैरकपुर में उनके घर हो आया।शंकरी की उम्र 36 साल है और उसके पति तारक की उम्र 46 साल।इकलौती बेटी टीनएजर है और बीए आनर्स प्रथम वर्ष की छात्रा है।

2012 से पेशे से मछली बेचनेवाले तारक को हाई प्रेशर और मधुमेह की बीमारी है।हाल में पता चला है कि उसका एक गुर्दा सड़ गया है तो दूसरा गुर्दी भी करीब करीब खराब हो चुका है।वह डायलिलिस कराने की हालत में भी नहीं है।सरकारी अस्पतालों में भी डायलिसिस का खर्च मेहनतकशों के लिए बहुत महंगा है और वे अंग प्रत्यारोपण के बारे में सोच भी नहीं सकते।पिछले तीन दिनों में दो बार उसकी हालत बिगड़ी है और सरकारी अस्पताल में उसका इलाज हो नहीं सका है।

तारक की भाभी का हाल में ब्रेन स्ट्रोक हुआ था और हम जब शंकरी के वहां थे तो खबर आयी कि उसकी बहन की पति के पैर पर स्लैब गिरा है और वह जख्मी हो गया है।वह इमारत बनाने के काम में मजदूर है और जाहिर है कि उसका कोई बीमा नहीं है।

सविता ऐसे मामलों में सोदपुर में हर कहीं दौड़ती रहती है और निजी तौर पर मदद करती है।हमारी दिहाड़ी का ज्यादातर हिस्सा इसी मद में खर्च हो जाता है।इसके अलावा हम कुछ कर भी नहीं सकते हैं।मगर निजी मदद से यह मसला सुलझने वाला नहीं है जबकि व्यापक पैमाने पर जनता की देखभाल का इंतजाम जनता की ओर से करने का कोई काम हम अकेले अकेले नहीं करते हैं।

सत्ता, बाजार, सियासत और बिजनेस से हम इस मौत के मंजर को बदलने में कोई मदद मिलने वाली नहीं है।निजी तौर पर किसी के लिए भी दो चार मामलों में मदद करने की हालत नहीं बनती है।

जाहिर है कि सत्ता और राजनीति से अलग जनपक्षधर जन संगठन ही मौत का यह मंजर बदल सकते है,बशर्ते कि उनसे जुड़े लोग इसकी पहल करें।

हाल में वनगांव इलाके में अपनी फुफेरी बहन के घर गया था।उनका बेटा छत्तीसगढ़ में ठेके पर निर्माण कार्य में लगी था और वहां बीमार पड़ जाने से उसकी मौत हो गयी।करीब 44 साल के उस बाजे की लाश देख आनेके बाद दूसरी मर्तबा वहीं गया तो गयी तो कुछ ही दूर नोहाटा में जोगेद्र नाथ मंडल के कार्यक्षेत्र में उस दीदी की बेटी के घर भी गया।उसके पति के भी गुर्दे खराब हो गये हैं और प्रत्यारोपण के लिए बीस लाख रुपये का पैकेज बताया जा रहा है।फिर बीस लाख रुपये खर्च करने के बावजूद बच जाने की गारंटी नहीं है।जाहिर है कि उनके पास वे पैसे कभी नहीं होने वाले हैं।

घर बार जमीन जायदाद बेच देने के बावजूद अस्पतालों के गोरखधंधे में इलाज हो नहीं पाता।दीदी ने अस्पतालों और नर्सिंग होमों का किस्सा लाइव बताकर यह साबित कर दिया है कि यह कितनी भयंकर महामारी है।

वक्त पर प्रेशर और शुगर का पता चले और इलाज हो तो इसतरह दिल और गुर्दे की बीमारियां मेहनतकश तबके में महामारी नहीं होती।

इसके लिए बहुत अत्याधुनिक अस्पतालों की जरुरत भी नहीं है।सरकारी अस्पतालों में वैसे भी डाक्टर और नर्स कम हैं।

इनमें से ज्यादातर निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम में पाये जाते हैं तो बाकी बचे लोग भीड़ के इलाज के लिए नाकाफी हैं।ऐसे में जब वे गंभीर और आपातकालीन मरीजों का इलाज बी कर नहीं पा रहे हैं तो उनसे मेहनतकश लोगों की सेहत की देखभाल की उम्मीद नहीं की जा सकती।

बुनियादी स्वास्थ्य सेवा और सेहत की जांच पड़ताल के लिए स्वास्थ्य केंद्र पर्याप्त होते हैं।साठ, सत्तर और अस्सी के दशक में भी यूपी,उत्तराखंड और बिहार के अस्पतालों में बिना किसी बुनियादी ढांचा के आम लोगों के व्यापक पैमाने पर इलाज और उनकी सेहत की देखभाल  के नजारे हमने देखे हैं।

अब पिछले दिनों बसंतीपुर से फोन आया कि रुद्रपुर के मेडिकल कालेज अस्पताल में लेडी डाक्टर रात को नहीं होती,यह हमारे लिए हैरतअंगेज खबर है।

उस अस्पताल में हमने बचपन से स्त्री रोग विभाग में बेहतरीन काम होते देखा है।इसके अलावा तराई के कस्बाई अस्पतालों में गदरपुर,बाजपुर जैसे देहात में जटिल से जटिल आपरेशन डाक्टरों को अत्यंत कुशलता के सात करते देखा है।लेडी डाक्टर वाली यह जानकारी हमारे लिए किसी सदमे से कम नहीं है।

तकीनीकी तौर पर और संरचना के तौर पर उस मुकाबले हजार गुणा तरक्की के बावजूद बड़े महानगरों में भी मेहनतकशों को क्या गिनती,मलाईदार तबके के नागरिकों की भी सेहत की देखभाल तो क्या मामूली सी मामूली शिकायत के इलाज का कोई इंतजाम नहीं है।

प्रतिबद्ध डाक्टरों का साथ हम दें और अपने अपने संगठन की तरफ से हम उनके साथ खड़े हों तो आम लोगों के लिए देशभर में स्थानीय सामान्य उपक्रम और बिना किसी पूंजी निवेश के वैज्ञानिक तरीके से तर्कसंगत इलाज के लिए स्वास्थ्य केंद्र बड़े पैमाने पर खोले जा सकते हैं जहां मेहनतकशों की सेहत की देखबाल नियमित की जा सके।

ऐसे प्रयोग हो भी रहे हैं और मिशन बतौर डाक्टरों की अच्छी खासी तादाद इसके लिए तैयार भी हैं।सरकारी और निजी जन स्वास्थ्य के विकल्प के बारे में सोचकर ही हम ये हालात बदल सकते हैं और यह एकदम असंभव भी नहीं है।बंगाल में ऐसे प्रयोग चल भी रहे हैं।मसलन डा.पुण्यव्रत गुण के अनुभव पर गौर करेंः

शहीद अस्पताल की प्रेरणा से जब बेलुड़ में इंदो जापान स्टील के श्रमिकों ने 1983 में श्रमजीवी स्वास्थ्य परियोजना का काम शुरु किया,तब उनके साथ हमारा समाजसेवी संगठन पीपुल्स हेल्थ सर्विस एसोसिएशन का सहयोग भी था।हाल में डाक्टर बना मैं भी उस स्वास्थ्य परियोजना के चिकित्सकों में था।

मैं शहीद अस्पताल में 1986 से लेकर 1994 तक कुल आठ साल रहा हूं।1995 में पश्चिम बंगाल लौटकर भिलाई श्रमिक आंदोलन की प्रेरणा से कनोड़िया जूटमिल के श्रमिक आंदोलन के स्वास्थ्य कार्यक्रम में शामिल हो गया।चेंगाइल में श्रमिक कृषक स्वास्थ्य केंद्र, 1999 में श्रमजीवी स्वास्थ्य उपक्रम का गठन,1999 में बेलियातोड़ में मदन मुखर्जी जन स्वास्थ्य केंद्र,2000 में बाउड़िया श्रमिक कृषक स्वास्थ्य केंद्र, 2007 में बाइनान शर्मिक कृषक मैत्री स्वास्थ्य,2006-7 में सिंगुर नंदीग्राम आंदोलन का साथ,2009 में सुंदरवन की जेसमपुर स्वास्थ्य सेवा,2014 में मेरा सुंदरवन श्रमजीवी अस्पताल के साथ जुड़ना,श्रमजीवी स्वास्थ्य उपक्रम का प्रशिक्षण कार्यक्रम,2000 में फाउंडेशन फार हेल्थ एक्शन के साथ असुख विसुख पत्रिका का प्रकाशन,2011 में स्व्स्थ्येर वृत्ते का  प्रकाशन --यह सबकुछ असल में उसी रास्ते पर चलने का सिलसिला है,जिस रास्ते पर चलना मैंने 1986 में शुरु किया और दल्ली राजहरा के श्रमिकों ने 1979 में।


महत्वपूर्ण खबरें और आलेख जनता के हक में हर आवाज अब राष्ट्रद्रोह है और जनता का उत्पीड़न, शोषण और दमन, नरसंहार देशभक्ति है


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