छात्र एकता जिंदाबाद
वर्धा हिंदी विश्वविद्यालय की जीत की पूंजी लेकर शिक्षा बाजार के खिलाफ संघर्ष करें छात्र!
पलाश विश्वास
छात्र एकता जिंदाबाद,वर्धा हिंदी विश्वविद्यालय की जीत की पूंजी लेकर शिक्षा बाजार के खिलाफ संघर्ष करें छात्र,हमारी देश के वर्तमान और भविष्य से यही अपील है।
हम मई दिवस पर छात्रों और महिलाओं से भी मेहनतकश के ध्रूवीकरण के जरिये राज्यतंत्र के फरेब के खिलाफ धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद का तिलिस्म तोड़ने की अपील कर रहे हैं।
आप चाहें तो मई दिवस को ही कारपोरेट केसरिया अश्वमेधी रथों के पहिये हो जायें जाम!
बामसेफ के सारे कार्यकर्ताओं,फुलटाइमरों और वंचित नब्वे फीसद मीडिया कर्मियों से निवेदन है कि देश के चप्पे चप्पे में जनजागरण की सुनामी पैदा कर दें-अपना वजूद साबित करें।
हम हारे नहीं दोस्तों, हमने कभी जीतने की कोशिश ही नहीं की।
हस्तक्षेप पर हमने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में फीस बढ़ोतरी के खिलाफ छात्रों के लगातार चल रहे आंदोलन की रपट लगायी थी।
हस्तक्षेप को पाठकों को सूचित करते हुए गर्व हो रहा है कि कारपोरेट मीडिया और राजनीतिक दलों के असहयोग और तटस्थता के बावजूद वहां छात्रों को जीत हासिल हुई है।संघर्ष कर रहे छात्रों को बधाई।
हस्तक्षेप के साधन बेहद कम हैं।हम बार बार लिख रहे हैं।
कल रात पीसी के ऐन मौके दगा दे जाने से हस्तक्षेप पर अपडेट किये न जा सकें और राजनीतिक पाखंड के अभूतपूर्व नजारे के मध्य राजस्थान के किसान गजेंद्र की प्रोजेक्टेड आत्महत्या की खबरें लगा नहीं सकें।
हमारे पाठक इसके लिए हमें माफ करें।
अमलेंदु के लिए नया कंप्यूटर लगाने के सिवाय लगातार अपडेट देना मुश्किल हो रहा है।रोज सुबह मिसिंग पर फोन करता हूं या देर रात को अपडेट के ताजा हालात पर पूछताछ करता हूं,वह हंसते हुए कहता है कि पीसी काम नहीं कर रहा है।अपडेट कैसे करें।
हमारे जो लोग साधन संपन्न हैं ,अगर वे तमाम लोग हमारे इस प्रयास की निरंतरता को अनिवार्य मान रहे हों और सूचनाओं को आप तक पहुंचाने के इस काम को और बेहतर बनाना चाहते हैं तो अमलेंदु से तुरंत संपर्क करें और जिससे जो बन पड़ता है,करें।यह शुरुआत है।आगे लंबी लड़ाई है।हम यही पर मार खा गये,तो समझ लीजिये कि अंजाम क्या होना है।
हम इस सिलसिले में अरविंद केजरीवाल और उनके आरक्षण विरोधी अतीत की याद दिलाना चाहेंगे,जब वीपी सिंह सरकार के मंडल के खिलाफ सवर्ण हिंदुत्व का नेतृत्व यूथ फार इक्वैलिटी के मंच से युवा अरविंद कर रहे थे।
जैसे गजेंद्र की मौत आम आदमी के नाम सत्ता की कारपोरेट राजनीतिक फरेब की तरह कर रहे हैं अरविंद केजरीवाल,वह उनके व्यक्तित्व कृतित्व के लिए अनोखा नहीं है।
मीडिया का पीपीली लाइव तब सवर्ण छात्र छात्राओं को पिछड़ों के आरक्षण के खिलाफ खुद को आग के हवाले करने के अरविंद केजरीवाल के राजसूय के तहत जो शुरु हुआ,आज भी जारी है।
समकालीन तीसरी दुनिया के ताजा अंक में हमारे पुराने मित्र पुष्पराज ने आंद्रे से लौटकर वहां किसानों का जो हालचाल लिखा है,संभव हुआ और युनीकोड में मिला तो वह भी हम साझा करेंगे।
बहरहाल समकालीन तीसरी दुनिया का यह अंक जरुर पढ़ लें।
आज की डाक से ही कल के लिए लघु पत्रिका का ताजा अंक जयनरायण जी का भेजा हुआ मिला है।यह अंक पंजाबी साहित्यपर केंद्रित है,जिसे अवश्य पढ़ें।
जहां चैनल और मीडिया न पहुंचे,गंगा किनारे के दलदल में जिसे कटरी कहां जाता है,वहां रुक्मिनी का जो खंडित गद्यकाव्य लिखा है वीरेनदा ने,वह हमारे समय का सामाजिक यथार्थ है और उसी कटरी में कल इस डिजिटल मेकिंग इन अमेरिका में राजस्थान के एक किसान को लाइव आत्महत्या करते देखा।
मुख्यमंत्री का भाषण किसान की आत्महत्या के बावजूद जारी रहा तो इससे जाहिर है कि किसी किसान के जीने मरने से राजनीति के सरोकार क्या हो सकते हैं।
मुख्यमंत्री उंगली से इशारा करके उपमुख्यमंत्री को आत्महत्या का प्रोजेक्ट दिखा रहे हैं।बाहैसियत मुख्यमंत्री घटनास्थल को घेरे अपने समर्थकों और पुलिस प्रशासन से गजेंद्र कोआत्महत्या करने से रोकने के लिए एक शब्द भी नहीं कहा मुख्यमंत्री ने।
जाहिर है कि राजनीति के सबसे बड़े शोमैन अरविंद केजरीवाल के लिए अपने जनांदोलन के लिए इस आत्महत्या के स्टंट के जरिये भूमि अधिग्रहण के खिलाफ अपने प्रदर्शन को सुपर डुपर बनाने का मकसद किसी मनुष्य की जान बचाने की तात्कालिक प्रतिक्रिया से ज्यादा बड़ा रहा है।
लोकतंत्र के इस फरेब के मध्य देश भर में जहां न चैनल है,न मीडिया है,लोग रोज रोज थोक दरों पर खुदकशी कर रहे हैं।
सेबी की देखरेख में हजारोहजार कारपोरेट कर्ज माफ हो रहे हैं, दुनियाभर में घूम घूम कर सलवाजुड़ुम के तहत किसानों को मारने के लिए कल्कि अवतार अरबों डालर का हथियार खरीद रहे हैं।शत प्रतिशत हिंदुत्व की मारकाट के लिए डिजिटल मेकिंग इन गुजरात पर अरबों बिलियन डालर का निवेश हर सेक्टर पर अबाध है।
बाजार में सेबी के इंतजाम के तहत देश की अर्थव्यवस्था विदेशी निवेशकों के यहां गिरवी है।बुल रन से जो छोटे और मंझौले निवेशक पचासों हजार बना लेने का मंसूबा बांध रहे थे,बीच बुलरन करेक्शन मुनाफावसूली बहाने वैश्विक इशारों के हवाले से भालुओं का ऐसा नाच शुरु हो गया कि पीएफ जो बाजार में है,पेंशन जो बाजार में है और बामा जो बाजार में है,उससे कितनी रकम वापस आयेगी आखिर,देखना बाकी है।
संसदीय सहमति का हाल यह है के जनसरोकार के पाखंड के बावजूद न सिर्फ बहुमत से सारे सुधारों को अंजाम तक पहुंचाया जा रहा है,संविधान संशोधन के लिए जरुरी दो तिहाई बहुमत न होना कभी इस नरमेध अभियान में पिछले 24 सालों में बाधक नहीं बना है और न बनेगा।
इसी के मध्य, इस देश के असहाय किसानों को हरित क्रांति के तहत पेस्टिसाइड,फर्टिलाइजर ,सिंचाई बिजली वगैरह मद में कुछेक हजार का कर्ज इस महाजनी सभ्यता में इतना भारी है कि हमारी दुनिया अब भी मदर इंडिया है,जहां महाजनों कारपोरेटट घराने के खिलाफ बगावत करने वाले बेटे को मां गोली से उड़ाकर विस्थापन और बेदखली का जश्न मनाती हुई महिमामंडित है।
शिक्षा अब नालेज इकोनामी है।फीस अंधाधुध बढ़ रही है।पढ़ाई लेकिन हो नही रही है।उच्च शिक्षा और शोध खत्म हैं।
निजीकरण के अबाध एफडीआई राज में रोजगार और आजीविका से वंचित हैं छात्र और युवा।
एकबार वे एकताबद्ध तरीके से देशभर में उठ खड़े हों तो इस फरेब का अंत हो सकता है।
जहां जहां फीस बढ़ी हो,वहां के छात्रों से निवेदन हैं कि वे भी वर्धा के बहादुर छात्र छात्राओं की तरह लगातार आंदोलन करके इसे वापस करायें।
वर्धा विश्वविद्यालय के आंदोलनकारी छात्रों की ओर से कुमार गौरव ने लिखा हैः
छात्र एकता की जीत हुई..70 घंटे के धरने के पश्चात महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय प्रशासन ने बढ़ी हुई फीस को वापस ले लिया है साथ ही भविष्य में छात्र से जुड़े मुद्दों में छात्रों की सहभागिता होगी इसको भी स्वीकार किया है..छात्रों की सभी मांगों को स्वीकार कर लिया गया है..आप सभी मित्रों का धन्यवाद जिन्होने हमारा साथ दिया.
वर्धा हिंदी विश्वविद्यालय की जीत की पूंजी लेकर शिक्षा बाजार के खिलाफ संघर्ष करें छात्र!
छात्र एकता जिंदाबाद
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