बल #हरदा
जिसे अपने ड्रीम प्रोजेक्ट की पड़ी हो वो युवाओं की क्यों सोचे ?
जिसे अपने ड्रीम प्रोजेक्ट की पड़ी हो वो युवाओं की क्यों सोचे ?
उत्तराखण्ड सरकार हिमाचल की तर्ज पर चले तो उत्तराखण्ड यहाँ के निवासियों के सपनों का राज्य क्यों नहीं बन सकता है ? बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ अपने पडौसी राज्य से बहुत कुछ सीखा जा सकता था, जहाँ अनुसरण करना हो वहाँ अनुसरण होता, जहाँ कुछ सुधार कर बेहतर करना होता वहाँ कुछ सुधार कर योजनाओं और कार्यों को लागू किया जाता !
लेकिन शायद हमारे राज्य के नीति नियंताओं में ना तो वो कुव्वत है और ना ही वो इच्छाशक्ति कि व्यापक जनहित में युवाओं को ध्यान में रखकर सरकार से नीतियां बनवायें और उन्हें अक्षरश लागू भी करवायें, अगर सच में ऐसा होता तो 70 फीसदी स्थानीय युवाओं को सिडकुल में स्थाई रोजगार देने के लिए जारी किया गया जीओ को सिडकुल में लगी फैक्टरियां घता नहीं बता रही होती !
खैर यहाँ चर्चा का मसला उत्तराखण्ड उच्च शिक्षित पीएचडी धारको का है, राज्य में अपेक्षाकृत कम पढ़े लिखे युवाओं की गत तो सरकारों ने खराब की ही है,लेकिन उनके मंत्रियों-अफसरों ने उच्च शिक्षित युवाओं को भी नहीं बक्शा है l
यह गौरतलब है कि हिमाचल की राज्य सरकार अपने राज्य में यूजीसी की गलती का खामियाजा भुगत रहे वर्ष 2009 से पहले के पीएचडी धारकों को नेट परिक्षा से छूट देने जा रही है ! इसके विपरीत उत्तराखण्ड के उच्च शिक्षित पीचडी धारक इस मुद्दे को लेकर राज्य की उच्च शिक्षा मंत्री श्रीमती इंदिरा हृदयेश के दर पर कई बार दस्तक दे चुके हैं, लेकिन अपने राज्य के उच्च शिक्षित युवाओं के सपनों से उन्हें कुछ लेना देना नहीं है, क्योंकि मंत्री बनने के बाद उनके अपने ड्रीम प्रोजेक्ट किसी अन्य मुद्द्दो से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गये हैं, प्रभावित पीएचडी डिग्री धारकों द्वारा कई बार संज्ञान में लाये जाने के बावजूद भी इस मुद्दे पर उनके कान पर जून नहीं रेंग रही है, जिससे प्रभावित पीएचडी डिग्री धारकों को भी लगने लगा है कि इस मुद्दे को बनाये रखने में विभागीय मंत्री श्रीमती इंदिरा हृदयेश का जरुर कुछ ख़ास निजी हित भी होगा, शायद तभी वे इसे टाल रही हैं ।
जिस विभागीय मंत्री के रवैये के कारण राज्य हजारों उच्च शिक्षित निराशा की और चले जायें, उन्हें यह लगने लगे कि उनका पढ़ना लिखना बेकार रहा, सरकार में उनके हितों को केवल एक मंत्री की जिद की वजह से अनदेखा किया जा रहा है, राज्य सरकार अपने पड़ोसी राज्यों से भी ना सीखे तो ऐसे विभाग के मंत्री को चुल्लू भर पानी में डूब जाना चाहिए ।
खैर, उत्तराखण्ड के पीएचडी धारकों को भी देर-सवेर न्याय मिल ही जाएगा राज्य से नहीं, केंद्र से और केंद्र से नहीं तो शायद कोर्ट से, अब उत्तराखण्ड की नियती भी यही हो गयी है, इस राज्य में जनता के सपनों एंव मुद्दों से बड़े राजनेताओं के अपने प्रोजेक्ट और सपने बड़े हो गये हैं, अब वही काम पहले होते हैं, जिनसे सीधे-सीधे राजनेताओं को व्यक्तिगत फायदा हो, उनके चमचे आबाद रह सके, हल्द्वानी मंडी क्षेत्र से लेकर राज्य सरकार तक ऐसे बहुत से उदाहरण भरे पड़े हैं, जहाँ जनता के सपनों की बेकदरी देखी जा सकती है !
ध्यानाकर्षण : डॉ. वीरेंद्र बर्तवाल
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