Sustain Humanity


Sunday, August 2, 2015

जयपाल सिंह मुंडा : महोदय, आदिवासी जमीनों के संरक्षण के सवाल को संविधान के मौलिक अधिकारों में विशेष तौर पर रखा जाना चाहिए. जमीन आदिवासी जीवन का केन्द्रक है. यह देश के 30 लाख आदिवासियों के भविष्य का प्राथमिक सवाल है और इसकी सुरक्षा की गारंटी हर हाल में सदन को करनी चाहिए. आदिवासी जमीन का सवाल हर बहस से परे है. इसे मौलिक अधिकार में शामिल किया जाए.

जयपाल सिंह मुंडा :
महोदय, आदिवासी जमीनों के संरक्षण के सवाल को संविधान के मौलिक अधिकारों में विशेष तौर पर रखा जाना चाहिए. जमीन आदिवासी जीवन का केन्द्रक है. यह देश के 30 लाख आदिवासियों के भविष्य का प्राथमिक सवाल है और इसकी सुरक्षा की गारंटी हर हाल में सदन को करनी चाहिए. आदिवासी जमीन का सवाल हर बहस से परे है. इसे मौलिक अधिकार में शामिल किया जाए.
केएम मुंशी:
बेकार की बात है. इसकी कोई जरूरत नहीं.
सोमनाथ लाहिड़ी:
जयपाल सिंह मुंडा ठीक कह रहे हैं. मैं इसका समर्थन करता हूं. आदिवासी जमीन की सुरक्षा को मौलिक अधिकारों में जोड़ा जाना चाहिए.
रोहिणी कुमार चौधरी:
आदिवासी लोगों को अलगाव में रखनेवाले अंगरेजों के कानून को जारी रखना ठीक नहीं होगा.
जवाहरलाल नेहरू:
मौलिक अधिकारों को किसी खास तात्कालिक समस्या से जोड़कर नहीं देखना चाहिए. मैं जयपाल सिंह मुंडा की बात से सहमत हूं लेकिन यह नहीं समझ पा रहा कि मौलिक अधिकारों से इसका क्या संबंध है.
वल्लभभाई पटेल:
यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि अगले दस सालों में ‘आदिवासी’ कहलानेवाला कोई इस देश में नहीं रहे. आदिवासी का मतलब क्या है? भारतीय सभ्यता में आदिवासी होना कहीं से भी ठीक नहीं. मैं मानता हूं कि आदिवासियों के साथ न्याय नहीं हुआ है. पर मैं जयपाल सिंह मुंडा से अपील करूंगा कि वे अपना भय निकाल दें. आदिवासियों की सुरक्षा के सभी कानूनों को पूर्ववत जारी रखा जाएगा. वे बस संविधान को केवल दस साल दें, हमारा वादा है कि इस देश में आदिवासी शब्द हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा.
(30 अप्रैल 1947 को मौलिक अधिकारों के अंतर्गत ‘स्वतंत्राता का अधिकार’ अनुच्छेद 8 पर हुई बहस की संक्षिप्त भावानुवाद प्रस्तुति.)

No comments:

Post a Comment