Sustain Humanity


Wednesday, January 11, 2017

यूपी के महाभारत में दांव पर संविधान,लोकतंत्र और भारत की जनता हालात संगीन हैं और इसीलिए यूपी वालों पर देश बचाने की जिम्मेदारी है। देश बचाने की अपील पर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद।बहस कृपया जारी रखें।संवाद जारी रखें। पलाश विश्वास

यूपी के महाभारत में दांव पर संविधान,लोकतंत्र और भारत की जनता

हालात संगीन हैं और इसीलिए यूपी वालों पर देश बचाने की जिम्मेदारी है।

देश बचाने की अपील पर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद।बहस कृपया जारी रखें।संवाद जारी रखें।

पलाश विश्वास

बीच सफ़हे की लड़ाई


"मुझे अक्सर गलत समझा गया है। इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि मैं अपने देश को प्यार करता हूँ। लेकिन मैं इस देश के लोगों को यह भी साफ़ साफ़ बता देना चाहता हूँ कि मेरी एक और निष्ठा भी है जिस के लिए मैं प्रतिबद्ध हूँ। यह निष्ठा है अस्पृश्य समुदाय के प्रति जिसमे मैंने जन्म लिया है। ...जब कभी देश के हित और अस्पृश्यों के हित के बीच टकराव होगा तो मैं अस्पृश्यों के हित को तरजीह दूंगा। अगर कोई "आततायी बहुमत" देश के नाम पर बोलता है तो मैं उसका समर्थन नहीं करूँगा। मैं किसी पार्टी का समर्थन सिर्फ इसी लिए नहीं करूँगा कि वह पार्टी देश के नाम पर बोल रही है। ...सब मेरी भूमिका को समझ लें। मेरे अपने हित और देश के हित के साथ टकराव होगा तो मैं देश के हित को तरजीह दूंगा, लेकिन अगर देश के हित और दलित वर्गों के हित के साथ टकराव होगा तो मैं दलितों के हित को तरजीह दूंगा।"-बाबासाहेब आंबेडकर

उत्तर प्रदेश  के महाभारत में मूसलपर्व के नतीजा चाहे कुछ है,संघ परिवार के कारपोरेट हिदुत्व के नस्ली नरसंहार के एजंडे के तहत यूपी दखल की नोटंबदी कैशलैस डिजिटल कार्यक्रम कामयाबी के करीब है।जबकि इस महाभारत में दांव पर हैं भारत के संविधान,लोकतंत्र औऱ भारतीय जनता।

नोटबंदी जरिये राममंदिर आंदोलन और आरक्षणविरोधी आंदोलन नये सिरे से शुरु हैं तो राज्यसभा में बहुमत यूपी दखल के बंद हो जाने के बाद आरक्षण तो खत्म होना ही है,बहुसंख्य आम जनता और बहुजनों का सफाया तय है।

गौरतलब है कि बाबासाहेब ने हिंदुत्व के अश्वमेध अभियान को रोकना सबसे अनिवार्य कहा है तो नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भी भारत छोड़ने से पहले अपने आखिरी भाषण में हिंदुत्व के फासिस्ट नरसंहारी कार्यकर्म से सावधान रहने को कहा था।नोटबंदी के कार्यक्रम से जो लोग बाबासाहेब को नत्थी कर रहे थे,वे देख ले कि बाबासाहेब के बनाये रिजर्व बैंक और आरबी आई एक्ट को फासिज्म के राजकाज ने कैसे ध्वस्त कर दिया है और पूरी बैंकिग प्रणाली दिवालिया है।अर्तव्यवस्था पटरी से बाहर है।

हस्तक्षेप पर लगा मेरा आलेख यूपीवालों,चाहे तो देश बचा लो,जनसंदेश टाइम्स में छपकर पूरे यूपी में यूपीवालों के हाथों में अखबार की शक्ल में पहुंच गया है।आज सुबह से यूपी वालों के फोन लगातार आ रहे हैं।

पहला फोन कल्कि अवतार के स्मार्ट शहर वाराणसी से आया तो बाकी फोन में सबसे उल्लेखनीय फोन जिला चंदौली के किसी गांव से 73 साल के फक्कड़ बाबा का आया।रात में हमारे मित्र एचएल दुसाध ने भी उसी आलेख पर लगातार टिप्पणी लिखकर फेसबुक पर शेयर किया है और उसपर लगातार प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।उन टिप्पणियों के लिए आभार।जो शेयर कर रहे हैं,उनका ज्यादा आभार।

इस बीच हमारे दिलोदिमाग में सबसे गहरा आघात समकालीन तीसरी दुनिया के बंद होने से लगा है।हम यह भी नहीं जानते कि कब तक समयांतर चल पायेगा।हमने आनंदस्वरुप वर्मा,पंकज बिष्ट,रणजीत वर्मा,अभिषेक श्रीवास्तव,प्रशांत भूषण,हिमांशु कुमार,आनंद तेलतुंबड़े,आनंद पटवर्द्धन,शम्शुल हक, विद्याभूषण रावत,बंगाल के सभी साथियों,बामसेफ के सभी पुराने साथियों और देशभर में सामाजिक कार्यकर्ताओं से लगातार वैकल्पिक मीडिया के बारे में चर्चा की है।

हम हस्तक्षेप के बारे में भी लगातार अपीलें करते हुए थक गये हैंं।अमलेंदु अपनी जिद पर हस्तक्षेप चला पा रहे हैं और हम उनकी कोई मदद नहीं कर पा रहे हैं।जो मदद कर सकते थे,ऐसे लोगों ने वायदा करके भी निभाया नहीं है।

हम शर्मिंदा हैं और अरसे से हमने अमलेंदु को फोन भी नहीं किया है।

हम लगातार यह कह रहे थे कि रियल टाइम में आम जनता तक जानकारी और उसका विश्लेषण पहुंचाने के लिए हम सोशल मीडिया का इस्तेमाल बखूब कर सकते हैं।लेकिन जब तक आम जनता के हाथों में मुद्रित सामग्री हम पहुंचा नहीं सकते तब तक इंटरनेट से बाहर बहुसंख्यक जनता को हम संबोधित नहीं कर सकते।

हम चाहते थे कि अखबार,पत्र पत्रिका,बुलेटिन,पंफलेट के मार्फत भी ज्वलंत मुद्दों को फेसबुक और पोर्टल से निकाल कर प्रकाशित करके हाथोंहाथ आम जनता तक पहुंचाने की कोई जुगत हम करें।

हम रिटायर हो चुके हैं।आय शून्य है और इकलौता बेटा बेरोजगार है।किराये के मकान में हैं  और पेंशन सिर्फ ढाई हजार हर महीने मिलती है।माफ करें कि अब हम कहीं भी कभी भी दौड़ने की हालत में नहीं है।

हमने बोधगया जाकर तमाम बौद्ध संगठनों से मिलकर बार बार कहा है कि तथागत गौतम बुद्ध ने सामाजिक क्रांति की है और उनका धर्म प्रवर्तन इतिहास में सबसे बड़ा और सबसे प्रभाव शाली परिवर्तनकारी जनांदोलन है।हमारे लिए इतिहास में सबसे बड़ा सामाजिक कार्यकर्ता तथागत गौतम बुद्ध है।उन्हींका पथ हमारा पथ है।

तमाम बुद्ध बिहार,मठ,स्तूप विश्वविद्यालय ज्ञान विज्ञान के केंद्र थे।

अब हिंदुत्व के एजंडे के प्रतिरोद में तथागत गौतम बुद्ध का मार्ग ही हमारे लिए सही विकल्प है बशर्ते कि हम तमाम बौद्ध संस्थानों को ज्ञान विज्ञान और सामाजिक सरोकार के केंद्रों में बदलें।

इस दिशा में उन बौद्ध संस्थाओं और बौद्ध संगठनों से लगातार संपर्क करने के बावजूद अभी सकारात्मक कोई पहल हुई नहीं है।बौद्ध संगठनों पर आरएसएस का शिकंजा बेहद मजबूत हो गया है,जैसे अंबेडकरी संगठनों पर हो गया है।

बंगाल में भी मतुआ आंदोलन,शरणार्थी आंदोलन और संगठन,बंगाल की पूरी राजनीति इस वक्त आरएसएस के शिकंजे में है।

बाकी देश के हालात भी कमोबेश यही है।

हमारे पास संसाधन नहीं हैं और मौजूदा हालात में संसाधन पैदा करने की स्थिति हमारी नहीं है जबकि देश के सामने भुखमरी और मंदी का संकट है और बहुसंख्य जनता की आजीविका छिन रही है।भूखों मरने की नौबत है।हमें अपने संसाधनों और संस्थाओं का बेहतर इस्तेमाल करना चाहिए।आगे भुखमरी ,मंदी है।

इस कयामती फिजां में हम अखबार,पत्र पत्रिकाएं या नया पोर्टल खोलने की हालत में नहीं हैं,इसलिए हमारे पास जो हैं,उसीको पूंजी और हथियार मानकर हमें आम जनता की हकहकूक की लड़ाई तेज करनी है।

हम लगातार अकेले होते जा रहे हैं।

सारे ख्वाब मरने लगे हैं।

हमने बंगाल के सामाजिक कार्यकर्ताओं से लगातार बंगाल के हिंदुत्वकरण के गहराते संकट पर लगातार चर्चा की है और बाकी देश के लोगों से भी हम विचार विमर्श कर रहे हैं।कल सुबह से हम विद्याभूषण रावत का कोलकाता पहुंचने का इंतजार कर रहे थे।वे देर रात सियालदह पहुंचे हैं।वहां से चंदननगर पहुंच गये हैं।उनके साथ कोलकाता के खास तमाम सामाजिक कार्यकर्ता कल बैठेंगे।

आज फोन पर उनसे बात हुई है।हिंदी में फिरभी हमारा लिखा किसी न किसी रुप में कहीं कहीं मुद्रित हो जाता है।लेकिन आनंद तेलतुंबड़े को छोड़कर किसी का अंग्रेजी या बांग्ला में लिखा प्रिंट में नहीं छपता।इससे अंग्रेजी या हिंदी के अलावा बाकी भाषाओं में आम जनता से संवाद के  रास्ते सिरे से बंद हैं।हम इसीलिए अंग्रेजी,बांग्ला या किसी दूसरी भाषा में इन दिनों लिख नहीं रहे हैं।विद्याभूषण भी अंग्रेजी में ही लिख रहे हैं।

बंगाल और बाकी देश की नजर यूपी पर है।

यूपी वालों के विवेक पर देश दांव पर लगा है।

नोटबंदी जैसा नरसंहार कार्यक्रम यूपी को जीतने के लिए संघ परिवार ने अपनाया है तो यह समझना चाहिए कि क्यों यूपी से हमारी किस्मत का फैसला हो जाना है।हमने अपने राजनीतिक मित्रों को भी बार बार चेताया है।वे बेपरवाह हैं।

गौरतलब है कि राज्यसभा में संघ परिवार का बहुमत नहीं है और इसलिए फासिज्म की सरकार न आरक्षण खत्म कर पा रही है और न संविधान के बदले सीधे मनुस्मृति लागू कर पा रही है।जो संघ परिवार का घोषित एजंडा है जिनका ध्वज राष्ट्रीय ध्वज नहीं,भगवा झंडा है।

मिथ्या हिंदुत्व,मिथ्या राममंदिर,मिथ्याधर्म की तरह यह भगवा झंडा भी हिंदुत्व का झंडा नहीं है।यह महाराष्ट्र में पेशवा राज का झंडा है।संघ परिवार पूरे भारत में पेशवा राज लागू करना चाहता है।संघ परिवार पूरे देश में पेशवा राज के फिराक में है।

नोटबंदी पर हम लगातार हस्तक्षेप में सारे ब्यौरे और विश्लेषणश् 8 नवंबर से लगातार लगा रहे हैं और उसे दोहराने की जरुरत नहीं है।

कालाधन निकालना नहीं,कैशलैस डिजिटल इंडिया भी संघ परिवार का असल कार्यक्रम नहीं है नोटबंदी का।सीधे मछली की आंख पर निशाना है।निशाने पर यूपी है।

यूपी में पिछले लोकसभा चुनाव में संघ परिवार ने बसपा का सफाया कर दिया है और समाजवादी भी हाशिये पर हैं।

योजनाबद्ध तरीके से यूपी जीतने के लिए बाकी देश को नकदी से वंचित करके संघ परिवार ने  अपनी सारी पूंजी,सारा कालाधन यूपी में झोंक दिया है।

यूपी की सत्ता से बड़ी चीज उसके लिए फिलहाल राज्यसभा में बहुमत के लिए जरुरी सीटें हैं,जो यूपी में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उसे आसानी से हासिल हो सकती है।समाजवादियों का मूसल पर्व के पीछे भी संघ परिवार का हाथ है।

अखिलेश को मुलायम से अलग करके अखिलेश के कंधे पर बंदूक रखकर बेलगाम चांदमारी की योजना है।

बंगाल में ममता बनर्जी के नोटबंदी के खिलाफ जिहाद की वजह से बांग्ला अखबारों और मीडिया में संघ परिवार के इस एजंडा को व्यापक पैमाने पर बेपर्दा किया जा रहा है।इसके विपरीत बाकी देश में मीडिया पर भक्तजन काबिज हैं।इसलिए बंगाल के सामाजिक कार्यकर्ता यूपी को लेकर बेहद चिंतित हैं।

बंगाल में आरक्षण संविधान लागू होने के 26 साल बाद लागू हुआ है।इसे लागू कराने का आंदोलन छेड़कर कामयाबी हासिल करने वाले मान्यवर कांशीराम जी के सहयोगी,वैज्ञानिक चेतना प्रसार आंदोलन में अग्रणी डा.गुणधर वर्मन की पुण्यतिथि पर मध्य कोलकाता के धर्मांकुर बौद्ध मंदिर में जमा बंगाल भर के कार्यकर्ता यूपी की इस निर्णायक लड़ाई पर लगातार बोलते रहे।उन्होंने भी यूपी वालों से संघ परिवार को शिकस्त देने की अपील की है।

यह सच का सामना करने की घड़ी है और यूपी की आम जनता पर निर्भर है कि राजनीतिक गोलबंदी गठबंधन हो या न हो,हर हाल में यूपी में हर कहीं भाजपा को हरानेवाले प्रत्याशी को दलमत निर्विशेष वोट करें और संघी फासिस्ट नरसंहारी कारपोरेट मंसूबे को कड़ी शिकस्त दें।

हम बसपा या समाजवादियों या कांग्रेस के लिए वोट नहीं मांग रहे हैं।

हम भारत में लोकतंत्र,संविधान बचाने और संघी फासिज्म के राजकाज से आम जनता को बाचाने और कारपोरेट एकाधिकार वर्चस्व के ग्लोबल हिंदुत्व के नस्ली बहुजन सफाया अभियान के अश्वमेधी घोड़ों की लगाम थामने के लिए यूपी वालों से देश बचाने की अपील कर रहे हैंं।

दुसाध जी ने जो फेसबुक पर हालात का बयान किया है और यूपी के पाठकों और फेसबुक की प्रतिक्रियाओं से जो कयामती फिजां की तस्वीर बनी है,हम उसका खंडन मंडन नहीं करते हैं।

हालात संगीन हैं और इसीलिए यूपी वालों पर देश बचाने की जिम्मेदारी है।

गौरतलब है कि संघ परिवार ने यूपी में आधी आबादी पर दांव लगाया है जबकि विपक्षी दलों को आधी आबादी की खास परवाह नहीं है।प्रदेश में परिवर्तन लाने की कवायद में जुटी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने विधानसभा चुनाव को लेकर खास रणनीति तैयार की है। इसके तहत जहां टिकट वितरण में युवाओं और महिलाओं को खास तरजीह मिलने की उम्मीद है, वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 'सबका साथ सबका विकास' के फार्मूले को अपनाये जाने के संकेत है।

भाजपा के लिए प्रदेश के होने वाले विधानसभा चुनाव न सिर्फ यूपी में सत्ता का वनवास खत्म करने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव की भी मजबूत बुनियाद तैयार करेंगे। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं इन चुनावों में दिलचस्पी ले रहे हैं और पूरा केन्द्रीय नेतृत्व उत्तर प्रदेश में सक्रिय है।

इस बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एक तरफ अपनी ही पार्टी के दंगल में फंसे हुए हैं तो वहीं दूसरी तरफ उनकी नजर चुनावों पर भी हैं। अखिलेश यादव और उनका खेमा ना सिर्फ पार्टी और परिवार में मचे बवाल पर ध्यान लगाए हुए हैं, बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस और राष्ट्रीय लोक दल के साथ गठबंधन करने पर भी है। अखिलेश खेमे के बड़े नेता जैसे रामगोपाल यादव पार्टी में मचे बवाल और चुनाव चिह्न को लेकर चुनाव आयोग में चल रहे मसले पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं तो वहीं सूत्रों से खबर है कि दूसरी तरफ अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ सीटों के फैसलों पर विचार-विमर्श में लगे हुए हैं।

जबकि भाजपा 50 प्रतिशत युवाओं और 25-33 फीसदी महिलाओं को टिकट देने की तैयारी में है।

अखिलेश यादव ने अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है. खबर है कि अखिलेश यादव के घोषणा पत्र में तमाम समाजवादियों के नाम हैं लेकिन उसमें मुलायम सिंह का नाम तक नहीं है। इस बीच आज लखनऊ में खुद मुलायम सिंह ने अखिलेश यादव की नई पार्टी और चुनाव चिन्ह की ओर संकेत कर दिया।

लखनऊ में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए मुलायम सिंह ने अखिलेश गुट के रामगोपाल यादव पर तो निशाना साधा ही अखिलेश की संभावित नई पार्टी तक के नाम का खुलासा कर दिया। मुलायम सिंह के मुताबिक अखिलेश की पार्टी का नाम अखिल भारतीय समाजवादी पार्टी और मोटरसाइकिल चुनाव चिन्ह हो सकता है। मुलायम सिंह यादव ने लखनऊ में कहा कि अखिल भारतीय समाजवादी पार्टी नाम और मोटरसाईकिल चुनाव चिह्न किसने लिख कर दिया?

लखनऊ में इमोशनल कॉर्ड चलने के बाद मुलायम सिंह अपनी अलग रणनीति बनाने के लिए दिल्ली लौट गये। उधर खबर के मुताबिक अखिलेश ने अपने घोषणापत्र से मुलायम सिंह का नाम ही गायब कर दिया है।

यदुवंश का मूसल पर्व थमने के बजायतेज होने लगा है और अमर सिंह आरएसऐश प्लान के मुताबिक  बाप बेटे को ठिकाने लगाने में कामयाब होते नजर आ रहे हैं।आजम खान की सुलह की कोसिश फेल हो जाने से यूपी के मुसलमान आखिर किसके साथ होगें।

ताजा खबरों के मुताबिक अखिलेश यादव ने अपने घोषणा पत्र में कहा है कि वे जेपी, लोहिया, चौधरी चरण सिंह जैसे समाजवादियों की विरासत को आगे बढ़ाएंगे लेकिन समाजवादियों की उस लिस्ट में नेताजी का नाम ही नहीं हैं। घोषणापत्र के साथ-साथ अखिलेश जल्द ही एक चुनावी वीडियो भी जारी करने वाले हैं और खबर है कि उस वीडियो से भी नेताजी नदारद हैं।

उधर चुनाव आयोग साइकिल चुनाव चिन्ह के मसले पर 13 फरवरी को सुनवाई करने वाला है और आज की खबर के बाद ज्यादा संभावना इसी बात की है कि इस चुनाव में साइकिल चुनाव किसी गुट को नहीं मिले।

गलतफहमी बहुजन खेमे में यह है कि मुसलमान वोटबसपा केपाले में आ जायेंगे और बहन मायावती चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री फिर बन जायेंगी।मुसलमान वोटों के बंटवारे से समाजवादी खेमों के सात साथ बहुजन समाज पार्टी को भी भारी नुकसान का अंदेशा है।इस फसाद से हमेशा की तरह फायदे में सिर्फ संघ परिवार है।

समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच की सियासी दूरियां बढ़ती ही जा रही है और अब यह पार्टी टूटने की कगार पर पहुंच गई है। इसके बावजूद कुछ लोग इस दल को टूटने से बचाने में लगे हैं।

मीडिया के मुताबिक इस कड़ी में राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अखिलेश और मुलायम के बीच समझौता कराने की कोशिश की। इसके लिए लालू ने खुद अखिलेश को फोन किया और उन्हें अपने पिता मुलायम सिंह यादव से सुलह करने को कहा।

हालांकि, अखिलेश ने बड़ी विनम्रता से 'नो थैंक्स' कहकर कुछ ही मिनटों में उनका यह प्रस्ताव ठुकरा दिया।अखिलेश को न आजम खान और न लालू की परवाह है।उनके सारे कारनामे आरएसएस के हक में हैं।उनकी जीत सबसे मुश्किल लग रही है,जिसका उन्हें पूरा भरोसा आरएसएस के कारिंदों ने दिलाया है और वे जाने अनजाने आरएसएस के सबसे बड़े हथियार बनकर तेजी से उभर रहे हैं तो मीडिया उन्हें भविष्य का नेता बनाने में लगा है।नरसिस महान के नक्शेकदम पर चलने लगे हैं अखिलेश।

बाद में लालू प्रसाद यादव ने मीडिया से बुधवार को कहा, 'मैंने अखिलेश को देर रात फोन कर सलाह दी थी कि वह मुलायम सिंह यादव से सुलह कर ले, लेकिन मुझे निराशा हाथ लगी।'

लालू ने माना कि यदि मुलायम और अखिलेश का गुट अलग-अलग चुनाव लड़ेगा तो इससे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को ही फायदा होगा।लालू जैसे पके हुेए राजनेता को जो अंदेशा है,उसपर यूपी वाले गौर करें तो बेहतर।

भाजपा की  ओर से मकर सक्रान्ति के बाद उम्मीदवारों की सूची जारी करने का ऐलान किया गया है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक इसमें 50 प्रतिशत युवाओं को टिकट दिए जाने की उम्मीद है। इसके अलावा 25 से 33 प्रतिशत तक महिलाओं को भी उम्मीदवार बनाये जाने की सम्भावना है।

राजनैतिक विश्लेषकों के मुताबिक भाजपा का यह दांव विरोधी दलों पर बहुत भारी पड़ सकता है। प्रधानमंत्री अपने भाषणों में हमेशा से युवा शक्ति को तरजीह देते आए हैं। ऐसे में भारी संख्या में युवाओं को मैदान में उतारकर पार्टी अखिलेश यादव को कड़ी चुनौती देने की तैयारी में है।

दूसरी तरफ,अखिलेश खुद को युवा नेता के तौर पर ही प्रोजेक्ट करते आये हैं, लेकिन न तो उनकी सूची और न ही मुलायम सिंह यादव की ओर से जारी प्रत्याशियों की सूची में इतनी बढ़ी संख्या में युवाओं को टिकट दिया गया। खास बात है कि भाजपा में टिकटों के लिए आये कुल आवेदनों में 75 प्रतिशत युवा शामिल रहे।

अपने फेसबुक वाल पर एच एल दुसाध ने लिखा हैः

यूपी वालों देश बचा लो!

आज जनसन्देश टाइम्स में फेसबुक पर बेहद सक्रिय मशहूर पत्रकार पलाश बिश्वास का उपरोक्त शीर्षक से एक लेख छपा है.इसमें उन्होंने यूपी के लोगों से संघी शासन के विरुद्ध लामबंद होने की कातर अपील करते हुए लिखा है-'यूपी में सामाजिक बदलाव की दिशा बनी है.यूपी ने ही बदलाव के लिए बाकी देश का नेतृत्व किया है.तो अब यूपी के हवाले देश है.देश का दस दिगंत सर्वनाश करने के लिए सिर्फ यूपी जीतने की गरज से अर्थव्यवस्था के साथ –साथ करोड़ों लोगों को बेमौत मारने का जो चाक चौबंद इंतजाम किया है संघ परिवार ने ,उसके हिंदुत्व एजेंडे का प्रतिरोध यूपी से ही होना चाहिए.यूपी वालों के पास ऐतिहासिक मौका है प्रतिरोध का.देश आपके हवाले है.'

वास्तव में इतिहास ने यूपी के कन्धों पर एक ऐतिहासिक जिम्मेवारी डाल दी है.यूपी का प्रतिवेशी राज्य 'बिहार' इस जिम्मेवारी का निर्वहन कर चुका है,ऐसे में हम यूपी वालों पर अतिरिक्त जिम्मेवारी आन पड़ी है.लेकिन लगता नहीं हम इसे सफलता पूर्वक अंजाम दे पाएंगे.महज 31 प्रतिशत वोट लेकर जबरदस्त तरीके से केंद्र की सत्ता पर काबिज संघ के राजनीतिक संगठन को त्रिकोणीय मुकाबले में मात देना बहुत कठिन है.इस बात को ध्यान में रखते हुए बिहार के दो बहुजन नेता परस्पर शत्रुता को तिलांजलि दे कर बिहार चुनाव को दो ध्रुवीय बना दिया थे.यही नहीं जिस अमोघ अस्त्र से सवर्णवादी संघ को ध्वस्त किया जा सकता है,उस सामाजिक न्याय के हथियार का भी वहां भरपूर इस्तेमाल हुआ था.

यूपी में बिहार जैसा कुछ होता दिख नहीं रहा है.यहां बहुजनों का परस्पर विरोधी दो विख्यात शत्रु खेमा अपने –अपने इगो और स्वार्थवश के ऊपर बहुजन भारत के हित को तरजीह देने के लिए तैयार नहीं है.इसलिए इनकी एकता के अभाव में चुनाव त्रिकोणीय ही नहीं,चतुष्कोणीय होता दिख रहा है,जो भाजपा के लिए बेहद मुफीद है.दूसरा,जिस एकमात्र सामाजिक न्याय के तीर से भाजपा को विद्ध किया जाता है,उसके इस्तेमाल की दूर-दूर तक कोई सम्भावना नहीं दिख रही है.सामाजिक न्याय शब्द यूपी के बहुजन नेतृत्व के शब्दकोष से पूरी तरह विलुप्त हो गया है.अपनी शत्रुता को नई ऊंचाई देने पर आमादा यहाँ के मुद्दाविहीन बहुजन नेतृत्व की रणनीति देखकर लगता है ,कुछ अज्ञात कारणों से यहां भाजपा के लिए रेड कारपेट बिछाई जा रही है.ऐसे में अब पलाश  बिश्वास जैसों की यूपी बचाने की मनोकामना सिद्धि की पूरी जिम्मेवारी जागरुक बहुजन मतदाताओं पर आन पड़ी है.लेकिन बहुजन मतदाताओं की सारी चिंता भी अपने –अपने नेताओं का चेहरा चमकाने तक सीमित हो गयी है,वह अपने नेताओं पर खौफनाक भाजपा को रोकने की रणनीति पर काम करने का दबाव बनाते नहीं दिख रहा है.ऐसे में पलास विश्वास जैसों को यूपी बचाने के लिए किसी चमत्कार पर निर्भर रहने से भिन्न कोई अन्य उपाय फिलहाल नहीं दिख रहा है.

हमने जबाव में लिखा हैः

Thanks!Dusadh ji!I am also afraid as both bahujan parties tend to fight each other at the cost of the people.If RSS gets UP,it would have majority in Rajya Sabha also.Which means that RSS would be able to deploy Parliament against the people of India.Only the people of Uttar Pradesh have the decisive mandate to defeat the governance of fascism ,free market ethnic cleansing global order,criminal mafia and the racist agenda of Hindutva.Whereas SP as well as BSP both seem to be interested to capture Power aligning with RSS.RSS whitewashed BSP and reduced SP in last Loksabha elections.It is nearly rather a cake walk for the Guillotine to cut throats of the bahujan humanity.UP needs a strong human chain to stop this disaster.If RSS wins UP and gets majority in both the houses of the Parliament,it would replace Indian Constiution drafted by Baba Saheb with Manusmriti.Demonetization is Ram Mandir Movement relauched disinvested in private and foreign capital racist hegemony as well as it is Anti Reservation,Anty Diversity,Anti Equality,Anti Justice,Anti democracy movement relaunched.I have put my stakes on the great hearts and minds of the people of Uttar Pradesh where I was born and brought up.I was born in Uttar Pradesh only for which I have sustained my spinal chord,heart and mind intact though bleeding very very badly.UP has done so many things for this nation and its people in history and I hope against hope that UP might repeat the history.


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