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Monday, October 14, 2019

नर्मदा डायरी

 नर्मदा डायरी
सरदार सरोवर बांध परियोजना के प्रतिकूल प्रभाव वाले लोगों के संघर्ष पर एक नर्मदा डायरी 1995 की डॉक्यूमेंट्री है। इसे आनंद पटवर्धन और सिमंतिनी धूरू द्वारा निर्देशित किया गया था और वर्ष 1995 में रिलीज़ किया गया था।  
हमने यह फिल्म हाल में देखी।कोलकाता जनसत्ता से रिटायर होने के बाद अपने पैतृक गांव बसंतीपुर,उत्तराखंड में इन दिनों हूं ,जहां पूरी तरह डिसकनेक्टेड हूं।
इस वर्ष सरकारी और गैरसरकारी दोनों तरफ से दुनियाभर में महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती मनायी जा रही है और सत्य,अहिंसा और प्रेम पर आधारित गांधी की विचारधारा,ग्राम स्वराज और रामराज्य पर व्यापक पैमाने पर चर्चा परिचर्चा हो रही है।
1985 से लगातार जारी नर्मदा बचाओ आंदोलन स्वतंत्र भारत में विशुद्ध गांधीवादी सत्याग्रह आंदोलन के सिद्धांतों के अनुसार चल रहा है। नर्मदा की जलधारा को बांधकर प्रकृति और पर्यावरण से छेड़छाड़ के अक्षम्य अपराध के अलावा इस बांध के डूब में शामिल गांवों के करीब दो लाख आदिवासियों के जबरन विस्थापन विकास के नाम पर हो रहा है,जिसका अहिसंक प्रतिरोध और विस्थापित मनुष्यता के जीने के संघर्ष का मानवीय डाक्युमेंटशन इस फिल्म में किया गया है। जिसमें गुजरात और अन्य राज्यों के विस्थापित आदिवासी गांवों की दिनचर्या,उनकी आजीविका,जीवन शैली अपने रंग रूप में इस फिल्म में उपस्थित है।
तीन दशक के नर्मदा बचाओ आंदोलन के देस के स्वतन्त्रता संग्राम में गांधी के नेतृत्व में चले मैराथन सत्याग्रह की समकालीन यथार्थ है। गांधी के सत्याग्रह के परिणामस्वरूप देश स्वतन्तर हुआ क्योंकि ब्रिटिश हुकूमत,ब्रिटिश सत्ता और ब्रिटिश संसद में कुछ तत्व इस सत्याग्रह से अव्शय ही प्राभावित हुए रहे होंगे। लेकिन विडंबना है कि स्वतन्त्र भारत में गांधीवादी सत्याग्रह की कोी सुनवाई न सरकार में है और न प्रशासन में । बांध की ऊंचाई लगातार बढ़ती ही जा रही है।
निर्देशक आनन्द पटवर्द्धन ने अपने इस वृत्तचित्र में तथ्यों,आंकड़ों को कालक्रमके अनुसार रखते हुए इस मानवीय संकट को यथार्थ के मुताबिक उपस्थित करते हुए वर्तमान समय में गांधी के सत्याग्रह के औचित्य पर बुनियादी सवाल खड़े किया है।
गौरतलब है कि नर्मदा घाटी के आदिवासी ही गांधीवादी सत्याग्रह के तहत जल जंगल जमीन की लड़ाई लड़ रहे हैं, जबकि बाकी देश में समूचे मध्य भारत और पूर्वोत्तर में आदिवासी प्रतिरोध सशस्त्र है। मधय भारत और आदिवासी भूगोल में िस प्रतिरोध को माओवादी कहा जाता है तो पूर्वोतत्र में मणिपुर,मिजोरम,नगालैंड,त्रिपुरा,असम जैसे राज्यों में उग्रवादी। मजे की बात यह है कि सिक्किम को छोड़कर पूर्वोत्तर में इस आदिवासी सशत्र प्रतिरोध के कारण गांव , हरियाली और प्रकृति की कीमत पर कहीं कोी विकास परियोजना नहीं चल पा रही है। इसके विपरीत नर्मदा घाटी में तीनदशक के आंदोलन के बावजूद आदिवासी अपने जल जंगल दमीन से बेदखल हो रहे हैं।
पलाश विश्वास
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