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Thursday, May 7, 2015

इंडियाइंक का बाजा बजाकर विदेशी पूंजी को सोने की चिड़िया बेचने का केसरिया बंदोबस्त? कॉरपोरेट जगत को दी गई टैक्स छूट से सिर्फ 62,398.6 करोड़ का चूना मीडिया में भइये गांजा भांग पीने का रिवाज तो है नहीं और न रोज रोज शिवरात्रि है।सारस्वत संप्रदाय ने खबरों और विश्लेषणों में जनता की आंखों पर परदा डालने के लिए मनोरंजन की चाशनी के साथ दिलफरेब मांसल तिलिस्म के साथ अब दिनदहाड़े तथ्यों की डकैती भी होने लगी है। आम जनता का तो बाजा बज ही गया है हुजूर ,भारतीय जो कारपोरेट घरानों का इंडिया इंक है,हिंदू साम्राज्यवादी एजंडा के तहत सीमाओं के आरपार आम लोगों का आशियाना फूंकने के केसरिया खेल के जरियेदुनिया पर राज करने का मंसूबा जिनका है,अब भी वक्त है कि होशियार हो जइयो भइये के भष्मासुर पैदा जब होये,हर बार विष्णु भगवान की मोहिनी मूरत उसे जला डालें,जरुरी भी नहीं है और अपने कल्कि अवतार तो भइये खुदै भष्मासुर होवै ठैरे। पलाश विश्वास

इंडियाइंक का बाजा बजाकर विदेशी पूंजी को सोने की चिड़िया बेचने का केसरिया बंदोबस्त?

मीडिया में भइये गांजा भांग पीने का रिवाज तो है नहीं और न रोज रोज शिवरात्रि है।सारस्वत संप्रदाय ने खबरों और विश्लेषणों में जनता की आंखों पर परदा डालने के लिए मनोरंजन की चाशनी के साथ दिलफरेब मांसल तिलिस्म के साथ अब दिनदहाड़े तथ्यों की डकैती भी होने लगी है।

आम जनता का तो बाजा बज ही गया है हुजूर ,भारतीय जो कारपोरेट घरानों का इंडिया  इंक है,हिंदू साम्राज्यवादी एजंडा के तहत सीमाओं के आरपार आम लोगों का आशियाना फूंकने के केसरिया खेल के जरियेदुनिया पर राज करने का मंसूबा जिनका है,अब भी वक्त है कि होशियार हो जइयो भइये के भष्मासुर पैदा जब होये,हर बार विष्णु भगवान की मोहिनी मूरत उसे जला डालें,जरुरी भी नहीं है और अपने कल्कि अवतार तो भइये खुदै भष्मासुर होवै ठैरे।

पलाश विश्वास
अफवाह जोरों पर है कि  वित्‍त मंत्री अरुण जेटली द्वारा आरबीआई गवर्नर की शक्‍ित को कम करना पीएम मोदी को रास नहीं आया. इसके चलते उन्‍होंने जेटली की इस योजना पर पानी फेर दिया. दरअसल अरुण जेटली चाहते थे कि मार्केट में आरबीआई की बढ़ती शक्‍ित को कम किया जाए, लेकिन मोदी ने फिलहाल इस योजना पर ब्रेक लगा दिया है.
रघुराम राजन को लेकर पीएम मोदी और अरुण जेटली में मतभेद
आंकड़े दगाबाज हैं।संसद में सच कहने के बहाने सच छुपाने की कला कोई कारपोरेट वकील अरुण जेटली से सीख लें।कारपोरेट टैक्स में पांच फीसद छूट, सिर्फ विदेशी निवेशकों को 6.4 अरब डालर का टक्स माफ,विदेशी पूंजी को पिछला कर्ज माफ और घाटा सिर्फ 62,398.6 करोड़ रुपये का

आम जनता का तो बाजा बज ही गया है हुजूर ,भारतीय जो कारपोरेट घरानों का इंडिया  इंक है,हिंदू साम्राज्यवादी एजंडा के तहत सीमाओं के आरपार आम लोगों का आशियाना फूंकने के केसरिया खेल के जरियेदुनिया पर राज करने का मंसूबा जिनका है,अब भी वक्त है कि होशियार हो जइयो भइये के भष्मासुर पैदा जब होये,हर बार विष्णु भगवान की मोहिनी मूरत उसे जला डालें,जरुरी भी नहीं है और अपने कल्कि अवतार तो भइये खुदै भष्मासुर होवै ठैरे।

विदेशी पूंजी बटोरो अभियान में मोदियापा में हद करते जा रहे भारतीय उद्योगपति जरा हिसाब जोड़कर भी देख लें कि सत्ता के गुलाबी हानीमून में बस्तर में कौन कौन हैं और कौन कहां कैसे कैसे सौदे करके उनका अपना धंधा चौपट किये जा रहे हैं।स्मार्ट सिटीज के ट्रिलियन डालर कारोबार में चीन के चैयरमैन अवतार में चीनी कंपनियों की खूब बल्ले बल्ले तो रक्षा सौदों में खासमखास की खास भूमिका।अमेरिकी,जापानी और इजराइली पूंजी के हवाले सोने की चिड़िया भइये,और खुदरा कारोबार में आम कारोबारियों के कत्लेआम का नतीजा यूं निकला कि दुनियाभर की कंपनियां देशी कंपनियों की ऐसी तैसी करके बाजार दखल कर लीन्है।

मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था की बागडोर केसरिया मनुस्मृति शासन के हवाले करने से देश में निनानब्वे फीसद जनगण के कत्लेआम के साथ साथ भारतीयउद्योग जगत के हाथों से बेदखल होने लगा है यह इमर्जिंग मार्केट।

अगर सच बोले हैं संसद में जेटली की भारतीय उद्योग जगत को सिर्फ बासठ हजार करोड़ की टैक्स छूट है विदेशी निवेशकों को 6.4 करोड़ की टैक्समाफी और अनंत टैक्स होलीडे के मुकाबले तो तमाम भारतीय कंपनियों के चेयरमैन और एमडी से विनम्र निवेदन है कि वे सबसे पहले अपने तमाम अर्थशास्त्रियों और विश्लेषकों को गुलाबी प्रेमपत्र के साथ अलविदा कहते हुए हम जैसे नाचीजों को अपनी सेवा में बहाल करें।

ज्यादा सर्वे वर्वे से इतरइयो नाही कि आम जनता के साथ भारतीय उद्योग जगत का सत्यानाश भी तय है और बुल रन का तमाशा एइसन के एक बालीवूडी हीरों को सजा हेने पर धड़ाम धड़ाम और आंकड़ें फर्जी तमाम।निवेश सगरा विदेशी निवेश।

फिरभी दिलहै हिंदुस्तानी कि सर्वे है भइये कि  विश्व की 200 सबसे बड़ी और शक्तिशाली सूचीबद्ध कंपनियों में से 56 भारत में हैं। यह बात फोर्ब्स की सालाना सूची में कही गई, जिसमें 579 कंपनियों के साथ अमेरिका शीर्ष पर है। मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज फोर्ब्स 2015 की 'ग्लोबल 2000' सूची में 56 भारतीय कंपनियों में अग्रणी है। इस सूची में विश्व की सबसे बड़ी कंपनियों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है और इससे स्पष्ट है कि मौजूदा वैश्विक कारोबार परिदृश्य में अमेरिका और चीन प्रभुत्व की स्थिति में है। लगातार दूसरे साल शीर्ष एक से 10 कंपनियों में दोनों देशों का ही स्थान रहा।

झूठ के पंख नहीं होते।सरकारी उपक्रमों में कारपोरेट चेयरमैन के जरियेउनका कायाकल्प और सरारी महकमों और सेवाओं का निजीकरण,इस पर तुर्रा सेबी को रिजर्व बैंक के हकहकूक।लगातार मेकिंग इन के खिलाफ चीखें जा रहे हैं राजन।रिजर्व बैक के निजीकरण के लिए उसके तमाम विभागों में कारपोरेट बंदे और मोदी कहते है कि जेटली को सबर सिखाने लगे हैं और रिजर्व बैंक के साथ हैं।

क्‍या था अरुण जेटली का मॉस्‍टर प्‍लॉन
मीडिया की खबर है कि पीएम मोदी के सबसे करीबी और वित्‍त मंत्री अरुण जेटली को उस वक्‍त जोरदार झटका लगा, जग मोदी ने उनके प्‍लॉन को रोकने पर मजबूर कर दिया. अरुण जेटली के नए प्‍लॉन के अनुसार, वह सरकारी बॉन्‍ड मार्केट और पब्‍िलक लोन को मैनेज करने की शक्‍ित रिजर्व बैंक से छीनना चाहते थे. लेकिन ऐसा हो न सका. सरकार से जुड़े एक सूत्र की मानें, तो गुरुवार को टॉप लेवल की बैठक हुई जिसमें जेटली को पीछे हटना पड़ा. वैसे यूरेशिया ग्रुप कन्सल्टेंसी के डायरेक्टर किलबिंदर दोसांझ के मुताबिक,  वित्त मंत्रालय आरबीआई और उसके बॉस की शक्ति में कटौती करना चहता है.  इसके साथ ही मंत्रालय इस शक्ति को अपने हाथ में रखने का प्रयास कर रहा है.

मोदी ने लिया राजन का पक्ष
अरुण जेटली और रघुराम राजन के बीच पीएम मोदी को आखिरकार हस्‍तक्षेप करना ही पड़ा. बीजेपी के सीनियर लोगों ने इस बात की पुष्‍िट करते हुए कहा कि, जेटली के प्‍लॉन के उलट पीएम मोदी ने राजन का पक्ष लेने में कोई कोताही नहीं बरती और वित्‍त मंत्री को इस योजना को रोकना ही पडा़. हालांकि इस पूरे मामले पर पीएमओ ऑफिस और वित्‍त मंत्री की ओर से कोई भी कमेंट सामने नहीं आया.

मीडिया में भइये गांजा भांग पीने का रिवाज तो है नहीं और न रोज रोज शिवरात्रि है।सारस्वत संप्रदाय ने खबरों और विश्लेषणों में जनता की आंखों पर परदा डालने के लिए मनोरंजन की चाशनी के साथ दिलफरेब मांसल तिलिस्म के साथ अब दिनदहाड़े तथ्यों की डकैती भी होने लगी है।

कॉरपोरेट जगत को रियायत देने के चक्कर में मोदी सरकार को खासी कीमत चुकानी पड़ी है। मोदी सरकार की ओर से वित्तीय वर्ष 2014-15 में कॉरपोरेट जगत को दी गई टैक्स छूट से सरकार के रेवेन्यू पर 62,398.6 करोड़ रुपये का असर पड़ा है । यह पिछले साल के मुकाबले आठ फीसदी ज्यादा है। यह जानकारी वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बुधवार को संसद में दी।

राज्यसभा में दिए एक लिखित जवाब में वित्त मंत्री ने बताया कि तमाम रियायत से केंद्रीय करों पर राजस्व प्रभाव की हर जानकारी 2015-16 के बजट डॉक्युमेंट में दी गई है। उन्होंने बताया, '2013-14 में कॉरपोरेट करदाताओं के मामले में रेवेन्यू इम्पैक्ट 57,793 करोड़ रुपये था।' जेटली ने कहा कि करदाता इनकम टैक्स की विभिन्न धाराओं के डिडक्शन क्लेम कर सकते हैं।

जेटली ने यह भी जानकारी दी कि केंद्रीय करों के तहत टैक्स में छूट और इन्सेंटिव्स निर्यात बढ़ाने, संतुलित क्षेत्रीय विकास, ग्रामीण विकास, साइंटिफिक रिसर्च बढ़ाने, इंफ्रास्ट्रक्चर सुविधाओं के सृजन, रोजगार सृजन और कोऑपरेटिव सेक्टर के लिए दिए जाते हैं। इसके साथ ही लोगों की सेविंग्स बढ़ाने और चैरिटी को बढ़ावा देने के लिए भी इनका प्रावधान है। इससे ही सरकार के लक्ष्य की पूर्ति होगी।

एक अन्य सवाल के जवाब में जेटली ने बताया कि 2015-16 बजट में अगले चार साल के लिए कॉरपोरेट टैक्स रेट को 30 फीसदी से घटाकर 25 फीसदी कर दिया गया है।

100 स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में विदेशी कंपनियां

मोदी सरकार के देश में 100 स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में विदेशी कंपनियां खासी दिलचस्पी दिखा रही हैं। चीन की प्रमुख सॉफ्टवेयर कंपनी जेडटीई सॉफ्ट ने अगले 5 सालों में इस प्रोजेक्ट में 600 करोड़ रुपये के निवेश का प्रस्ताव दिया है। कंपनी ये रकम मौजूदा शहरों को टेक्नोलॉजी के जरिए स्मार्ट बनाने पर निवेश करेगी।

चीन की मल्टीनेशनल सॉफ्टवेयर कंपनी जेडटीई सॉफ्ट देश में स्मार्ट सिटीज प्रोजेक्ट को बिजनेस के बड़े मौके के तौर पर देख रही है। चीन और साउथ एशिया में अब तक 40 स्मार्ट शहरों का विकास कर चुकी जेडटीई सॉफ्ट ने भारत में शहरों को आधुनिक तकनीक के जरिए स्मार्ट बनाने की इच्छा जाहिर की है।

कंपनी ने सरकार को अगले 5 साल में स्मार्ट ट्रांसपोर्टेशन, स्मार्ट होम, स्मार्ट कार्ड, स्मार्ट टूरिज्म और स्मार्ट नेटवर्क पर 600 करोड़ रुपये निवेश करने का प्रस्ताव दिया है। कंपनी ने देश में अपना रिसर्च ऑफिस भी खोल दिया है।

सरकार ने अगले 5 साल में स्मार्ट सिटीज प्रोजेक्ट पर 48,000 करोड़ रुपये के निवेश का लक्ष्य रखा है। इसके लिए सरकार विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने में भी जुटी हुई है। विदेशी कंपनियों की मांग है कि सरकार सिंगल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम को जल्द लागू करे।

स्मार्ट सिटीज के प्रस्ताव पर राज्यों से सरकार की बातचीत आखिरी दौर में है, और अब निवेशकों को इस मुद्दे पर अंतिम गाइडलाइंस का इंतजार है।


यह बुलेट रेलवे भी विदेशी पूंजी के हवाले जी

मोदी सरकार को एक साल पूरे होने वाले हैं। ऐसे में लोगों का फोकस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक सबसे पसंदीदा मंत्रालय रेलवे पर जरूरी रहेगा। रेल मंत्री सुरेश प्रभु रेलवे को पटरी पर लाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। लेकिन रेल मंत्रालय की चुनौतियों क्या हैं और आगे मंत्रालय की क्या प्राथमिकता होंगी इस पर सीएनबीसी आवाज़ ने सुरेश प्रभु से खास बातचीत की।

रेलवे को फास्ट ट्रैक पर लाने की कोशिश कर रहे सुरेश प्रभु का कहना है कि यात्रियों को अच्छी सेवा देना सबसे बड़ी प्राथमिकता है और सरकार का रेलवे के मॉर्डनाइजेशन पर बड़ा जोर है। रेलवे को आर्थिक रुप से मजबूत बनाना है और इसके लिए रेलवे में पारदर्शिता बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। रेलवे स्टेशनों का रीडेवलपमेंट किया जाएगा और कुछ स्टेशन रीडेवलपमेंट खुद करेंगे। वहीं कुछ स्टेशनों का रीडेवलपमेंट पीपीपी के माध्यम से किया जाएगा।

रेलवे की फंडिंग की योजनाओं में चालू साल के लिए पर्याप्त फंडिंग की व्यवस्था है। आगे चलकर विदेशी एजेंसियों से भी पैसा जुटाया जाएगा। रेलवे टैक्स फ्री बॉन्ड से भी पैसा उगाहेगा। रेलवे ने कोल इंडिया और एनटीपीसी से एमओयू किया है। रेल मंत्री के मुताबिक वो तुरंत लाभ देने वाले प्रोजेक्ट पर निवेश करेंगे और रूट कंजेशन को कम करने के लिए ट्रैक की क्षमता बढ़ाई जाएगी।

सुरेश प्रभु के मुताबिक बुलेट ट्रेन शुरु करने से पहले फिजिएबिलटी स्टडी जरूरी है। अगले दो महीने में बुलेट ट्रेन की फिजिएबिलटी स्टडी पूरी होगी और फिजिएबिलटी स्टडी की रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी। रेलवे में पोर्ट कनेक्टिविटी में निजी भागीदारी बढ़ाई जाएगी।

फ्रेट में तेजी पर जो कदम उठाए हैं उनके तहत डेडिकेटिड फ्रेट कॉरिडोर बनना बहुत जरूरी है। डेडिकेटिड फ्रेट कॉरिडोर बनने में देरी हो रही है और जमीन अधिग्रहण के कारण भी डेडिकेटिड फ्रेट कॉरिडोर में देरी हो रही है। सरकार फ्रेट कॉरिडोर के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम कर रही है।


अब मीडिया की खबर जोरदार है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ्ते वित्त मंत्री अरुण जेटली की उस योजना पर पानी फेर दिया, जिसमें वह आरबीआई की शक्ति को कम करना चाहते थे। सूत्रों ने कहा कि इस मामले में पीएम ने नया रुख अपनाया है और उन्होंने आरबीआई के मार्केट में प्रभाव को स्वीकार्यता दी है। मोदी के सत्ता में आने से महज एक साल पहले रघुराम राजन को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का गवर्नर बनाया गया था। इनकी नियुक्ति तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने की थी। ऐसे में राजन के भविष्य को लेकर संदेह की स्थिति बनी हुई थी।

पीएम मोदी की भारतीय जनता पार्टी के सीनियर सहयोगी हमेशा राजन को लेकर हमलावर रहे हैं। ब्याज दरों के प्रति राजन के रवैये से बीजेपी के कई नेताओं ने असहमति जताई है। राजन ने ब्याज दरों के मामले में प्रधानमंत्री की तरफ से इकनॉमिक ग्रोथ के संकल्प अधूरे रहने की चेतावनी दी थी। वहीं राजन ने मोदी सरकार की नीति 'मेक इन इंडिया' को लेकर भी आशंका जाहिर की थी। मोदी इस नीति के तहत निर्यात को बढ़ावा देना चाहते हैं।

पीएम मोदी के सबसे करीबी सहयोगी वित्त मंत्री अरुण जेटली सरकारी बॉन्ड मार्केट और पब्लिक कर्ज को मैनेज करने की शक्ति रिजर्व बैंक से छीनना चाहते थे। सरकार से जुड़े सीनियर सूत्रों का कहना है कि गुरुवार को इस योजना से जेटली को पीछे हटना पड़ा। सूत्रों का कहना है कि यह फैसला टॉप लेबल पर हुआ है। बीजेपी में सीनियर लोगों ने इस बात की पुष्टि की है कि मोदी ने जेटली और रघुराम राजन के मामले में हस्तक्षेप किया है। यहां मोदी ने राजन का पक्ष लिया। इस मसले पर प्रधानमंत्री ऑफिस और वित्त मंत्री ने कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

मोदी मैजिक खत्म, अब होगा हकीकत से सामना

इकनॉमिक टाइम्स| May 7, 2015


टी. के. अरुण
किसी नई सरकार के कामकाज का जायजा लेने के लिए एक साल का वक्त काफी कम होता है। वोटर्स आमतौर पर वर्तमान में जीते हैं और उन्हें चुनाव से ऐन पहले के कुछ महीनों में किए गए सरकार के काम ही मोटे तौर पर याद रहते हैं। तो मामला फैसला सुनाने का नहीं, समीक्षा करने का बनता है। अच्छी बात यह है कि किसी का नियंत्रण ही न होने की स्थिति नहीं रही।

अरुण शौरी ने कहा है कि पीएमओ का कंट्रोल बहुत ज्यादा बढ़ गया है, तो इसका यह भी मतलब है कि पीएम की हर चीज पर नजर है। इसका यह अर्थ भी है कि जो कुछ हो रहा है, उसकी जवाबदेही से पीएम बच नहीं सकते। नई सरकार के बारे में विदेशी निवेशकों का जोश ठंडा पड़ चुका है, हालांकि उन्होंने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है। यह कोई बहुत बुरी बात नहीं है, लेकिन अगर बिजनस करने की सहूलियत से जुड़े वर्ल्ड बैंक के इंडेक्स में इंडिया फिसलता रहा तो विदेशी निवेशकों का सेंटिमेंट नेगेटिव हो सकता है।

इस सरकार ने पड़ोसी देशों के साथ संपर्क बढ़ाया है। पाकिस्तान से जुड़ी पॉलिसी में भय का माहौल रहा है, लेकिन अब सीमा पर आतंकवादी हमलों पर सतर्कता बरतते हुए जो कुछ बेहतर हो सकता है, वैसा करने की वाजपेयी नीति पर कदम बढ़ रहे हैं। वेस्ट बंगाल की सीएम के सहयोग से बांग्लादेश के साथ भी यही नीति अपनाई जा रही है।

हालांकि उदार लोकतंत्र के रूप में इंडिया की साख को चोट लग रही है। ग्रीनपीस और फोर्ड फाउंडेशन पर हालिया कार्रवाई से कुछ फायदा नहीं होने वाला है। एनजीओ पर राष्ट्र विरोधी हरकतों का आरोप लगाना दुनियाभर में निरंकुश सरकारों की हरकतों में शामिल रहा है।

वहीं, धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाने पर लेने की घटनाओं के बारे में ताकतवर पीएम की चुप्पी से देश-विदेश में अच्छा संकेत नहीं गया है। यही वह पहलू है, जहां मोदी शासन से सबसे बड़ा फर्क पड़ा है। दुनिया में कोई पूर्ण लोकतांत्रिक देश नहीं है, लेकिन कुछ और लोकतांत्रिक होने की कोशिश करना अच्छा माना जाता है। मोदी की लीडरशिप में भारत के पीछे लौटने का खतरा दिख रहा है।

मोदी का विरोध करने वालों को पाकिस्तान भेजने की बात कहने वाले शख्स को केंद्र सरकार में जगह मिली है। अल्पसंख्यकों की मौजूदगी को भारत की संस्कृति पर दाग बताने की कोशिश हो रही है, जिसे घर वापसी से धुलने की कोशिश हो रही है।

आर्थिक मोर्चे पर देखें तो 2012-13 में 5.1% के बाद 2013-14 में 6.9% की ग्रोथ रेट हासिल करने का मोमेंटम अब भी बना हुआ है। इस सरकार को कई अहम मोर्चों पर निरंतरता बनाए रखने का श्रेय दिया जाना चाहिए। रघुराम राजन आरबीआई गवर्नर बने हुए हैं और वह रुपये में स्थिरता बनाए रखने और महंगाई पर काबू पाने की जंग छेड़े हुए हैं।

आधार को यूपीए से जुड़ा होने के कारण रद्द नहीं किया गया है। देश के सभी लोगों को बैंकिंग सर्विस से जोड़ने की यूपीए सरकार की पॉलिसी पर तेजी से काम किया गया है। स्किल मिशन बना हुआ है और ढाई लाख पंचायतों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने पर भी काम चल रहा है।

नई सरकार ने बीमा सेक्टर में एफडीआई बढ़ाने की बाधाएं खत्म की हैं और जीएसटी पर कदम बढ़ाए हैं। इसमें कोई मुश्किल थी भी नहीं क्योंकि यूपीए शासन में बाधाएं तो बीजेपी ने ही खड़ी की थीं। हालांकि जिस जादू की बातें की जा रही थीं, वह एक साल पूरा होते-होते खत्म हो चुका है। सरकार को अब हकीकत की खुरदरी जमीन पर काम करके दिखाना होगा।

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