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Sunday, May 3, 2015

दुनियाभर की मेहनतकश इंसानियत के कत्लेआम की तैयारी है हिमालय में जो उथल पुथल हो रहा है।उसका खामियाजा बदलते मौसम चक्र,जलवायु और आपदाओं के सिलसिले में हमें आगे और भुगतना है।इसलिए नेपाल के महाभूकंप को हम किसी एक देश की त्रासदी नहीं मान रहे हैं।यह मानवीयत्रासदी जितनी नेपाल की है,उससे कहीं ज्यादा भारत और समूचे महादेश की है। अभी अभी शुरुआत है,पूरी लड़ाई बाकी है मोदी सरकार ने संकेत दिया है कि यदि विवादास्पद भूमि अधिग्रहण विधेयक बजट सत्र में यदि राज्यसभा में पारित नहीं होता है तो संयुक्त सत्र बुलाया जा सकता है। अरुण शौरी वही अरुण शौरी है जिनने बाबासाहेब के खिलाफ छह सौ पेज की किताब लिखकर संग परिवार में दाखिला लिया और वे विश्वबैंक से पहले भारतीय मीडिया में अवतरित होकर सुपर आइकन बने इतना भयानक कि जब इंडियन एक्सप्रेस ने उन्हें हटा दिया तो एक ही दिन में दस हजार से ज्यादा सर्कुलेशन गिरा और वे इसके बाद अंबेडकर के खिलाफ मोर्चा जमाते हुए संघ परिवार में दाखिल होकर संपूर्ण निजीकरण का अश्वमेध अभियान शुरु किया और उन्हींके ब्लू प्रिंट के तहत ही भारत के मेहनतकश तबके का रोजी रोटी छिनी जा रही है। पलाश विश्वास

दुनियाभर की मेहनतकश इंसानियत के कत्लेआम की तैयारी है


हिमालय में जो उथल पुथल हो रहा है।उसका खामियाजा बदलते मौसम चक्र,जलवायु और आपदाओं के सिलसिले में हमें आगे और भुगतना है।इसलिए नेपाल के महाभूकंप को हम किसी एक देश की त्रासदी नहीं मान रहे हैं।यह मानवीयत्रासदी जितनी नेपाल की है,उससे कहीं ज्यादा भारत और समूचे महादेश की है।


अभी अभी शुरुआत है,पूरी लड़ाई बाकी है
मोदी सरकार ने संकेत दिया है कि यदि विवादास्पद भूमि अधिग्रहण विधेयक बजट सत्र में यदि राज्यसभा में पारित नहीं होता है तो संयुक्त सत्र बुलाया जा सकता है।
अरुण शौरी वही अरुण शौरी है जिनने बाबासाहेब के खिलाफ छह सौ पेज की किताब लिखकर संग परिवार में दाखिला लिया और वे विश्वबैंक से पहले भारतीय मीडिया में अवतरित होकर सुपर आइकन बने इतना भयानक कि जब इंडियन एक्सप्रेस ने उन्हें हटा दिया तो एक ही दिन में दस हजार से ज्यादा सर्कुलेशन गिरा और वे इसके बाद अंबेडकर के खिलाफ मोर्चा जमाते हुए संघ परिवार में दाखिल होकर संपूर्ण निजीकरण का अश्वमेध अभियान शुरु किया और उन्हींके ब्लू प्रिंट के तहत ही भारत के मेहनतकश तबके का रोजी रोटी छिनी जा रही है।

पलाश विश्वास


दुनियाभर के मेहनतकशों और सर्वहारा जन गण की एकता के जरिये वर्गविहीन समाज की शोषणमुक्त दुनिया बनाने वाले हमारे कामरेड अब किस दुनिया में हैं,इसका अता पता लगाना नेपाल के भूकंप से जख्मी हिमालय में मलबे और विध्वंस मध्ये दम तोड़ती मनुष्यता से ज्यादा कठिन है।


मई दिवस के दिन ही देश की तमाम ट्रेड यूनियनों की रण हुंकार के मध्य पहली मई को मिले पे पैकेज के साथ आईटी सेक्टर के हजारों बंधुआ मजदूरों को सेवामुक्ति का गुलाबी प्रेमपत्र मिल गया।तो अकेले बंगाल में छह छह जूट मिलें बंद हो गयींं।चालीस हजार कामगारों के हाथ पांव एक झटके के साथ काट दिये गये।


मोदी सरकार ने संकेत दिया है कि यदि विवादास्पद भूमि अधिग्रहण विधेयक बजट सत्र में यदि राज्यसभा में पारित नहीं होता है तो संयुक्त सत्र बुलाया जा सकता है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि राज्यसभा में पारित नहीं होने पर इस विधेयक को संयुक्त सत्र में रखना संवैधानिक जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के लिए नए भूमि अधिग्रहण कानून की दरकार है।
जेटली ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि उनकी सरकार इस विधेयक को राज्यसभा में पारित कराने का पूरा प्रयास करेगी क्योंकि यह ग्रामीणों के हित में है।गौरतलब है कि राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्यसभा में सभी अच्छे सुझावों को स्वीकार करने की कोशिश की जायेगी। ऊपरी सदन में गतिरोध बनने और विधेयक के पारित नहीं होने पर संयुक्त सत्र बुलाए जाने के बारे में पूछे जाने पर जेटली ने कहा कि यह वरीयता का सवाल नहीं है बल्कि संवैधानिक जरूरतों से जुडा मुद्दा है।
विधेयक के पारित करने की समयावधि के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि राजनीति के कैलेंडर में अंतिम दिन नहीं होता है। विपक्षी सदस्यों को अंतिम समय तक साथ देने की अपील की जाएगी।
इस विधेयक से मोदी सरकार पर अमीर और कॉर्पोरेट समर्थक होने का ठप्पा लगने और किसानों की आत्महत्या के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि आत्महत्याएं नए कानून की वजह से नहीं हो रही हैं। यह विधेयक संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2013 में ही पारित हुआ था। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार इस कानून में बदलाव करना चाहती है और किसान परिवार के लोगों के रोजगार देना चाहती है, इसलिए नया विधेयक लाया गया है।
गौरतलब है कि वाजपेयी सरकार में विनिवेश, संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालयों का प्रभार संभाल चुके शौरी ने कहा, 'इस तरह के दावे खबरों में बने रहने के लिए हैं, लेकिन इनमें दम नहीं है।' उन्होंने कहा, सरकार आर्थिक विषयों पर बड़ी-बड़ी बातें कर रही हैं। लेकिन जमीन पर कुछ नहीं हो रहा। कार्य निष्पादन नदारद है। वित्त मंत्री अरुण जेटली का स्पष्ट संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा कि सरकार के पास निवेशकों से निपटने में सुदृढ़ रुख की कमी है और ऐसे में वकीलों वाली दलीलें उन्हें नहीं मना सकतीं। उन्होंने कर संबंधी मुद्दों को संभालने के तरीके की भी आलोचना की जिसकी वजह से विदेशी निवेशक दूरी बना रहे हैं ।


अरुण शौरी वही अरुण शौरी है जिनने बाबासाहेब के खिलाफ छह सौ पेज की किताब लिखकर संघ परिवार में दाखिला लिया और वे विश्वबैंक से पहले भारतीय मीडिया में अवतरित होकर सुपर आइकन बने इतना भयानक कि जब इंडियन एक्सप्रेस ने उन्हें हटा दिया तो एक ही दिन में दस हजार से ज्यादा सर्कुलेशन गिरा और वे इसके बाद अंबेडकर के खिलाफ मोर्चा जमाते हुए संघ परिवार में दाखिल होकर संपूर्ण निजीकरण का अश्वमेध अभियान शुरु किया और उन्हींके ब्लू प्रिंट के तहत ही भारत के मेहनतकश तबके का रोजी रोटीछिनी जा रही है।


यह किसी संघ परिवार के कार्यकर्ता या आम भाजपा नेता का बयान नहीं है।इसलिए नीतिगत विकलांगता के महाभियोग के तहत 1991 तक 2014 तक भारत में आर्थिक विध्ऴसं के देवसेनापति इंद्रस्थानीय डां.मनमोहन सिंह को खारिज करके कल्कि अवतार की ताजपोशी की अमेरिकी पहल की रोशनी में देखें और विकास दर,वित्तीय घाटा,उत्पादन आंकड़े वगैरह वगैरह बुनियादी  आर्थिक प्रतिमानों के बजाय सेनसेक्स में बुलरन और सुधार जनसंहारी अभियान के तहत भारतीय अर्थव्यवस्था की रेटिंग देखें,विदेशी पूंजी की बहार देखें और भारतीय पूंजी की वैश्विक उड़ान देखें तो उनका यह बयान किसी सुनामी की ही चेतावनी है।


इसी बीच मोदी सरकार ने नए कारोबारियों की राह और आसान कर दी है। मोदी सरकार ने ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की दिशा में एक और कदम उठाया है।


अब नया कारोबार शुरू करने के लिए 8 की बजाय सिर्फ एक फॉर्म भरना होगा। ये नया फॉर्म अब आई-एन-सी-29 के नाम से कॉरपोरेट अफेयर्स मिनिस्ट्री की वेबसाइट पर मौजूद है। मोदी सरकार नई कंपनी के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को आसान बनाना चाहती है ताकि एक दिन में प्रक्रिया पूरी हो सके।


टैक्स नियमों में सफाई लाने के मकसद से बनी हाई लेवल कमिटी इस मुद्दे पर सुझावों के लिए उद्योग जगत के प्रतिनिधियों से मिलेगी। वित्त मंत्री ने पिछले साल 26 नवंबर को अशोक लाहिड़ी की अगुवाई में टैक्स नियमों में सुधार के लिए इस कमिटी का गठन किया था।


माना जा रहा है कि हाई लेवल कमिटी ट्रेड और इंडस्ट्री के नुमाइंदों से मिलकर टैक्स कानूनों में सफाई के लिए उद्योग जगत के सुझाव लेगी। अशोक लाहिड़ी की अगुवाई में बनी कमिटी ने व्यापार और उद्योग जगत के नुमाइंदों को बातचीत का न्यौता दिया है। इस हाई लेवल कमिटी में जीएएआर, मैट और रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स जैसे मुद्दों पर चर्चा हो सकती है।


वर्ल्ड बैंक के सालाना ईज ऑफ डूइंग बिजनेस सर्वे में 189 देशों में भारत का 142 नंबर था और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 50वें नंबर तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है।
सरकार को उम्मीद है कि अगले हफ्ते लोकसभा में जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक पास हो जाएगा। इस विधेयक के पास होने के बाद अप्रैल 2016 से पूरे देश में जीएसटी लागू होने का रास्ता भी साफ हो जाएगा। जीएसटी बिल दिसंबर में ही लोकसभा में पेश किया गया था, अब उम्मीद है कि मंगलवार को इस पर चर्चा होगी और इसे सदन से पारित करा लिया जाएगा।


सरकार ने जीएसटी को लेकर राज्यों की चिंताएं दूर करने की हरसंभव कोशिश की है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भरोसा दिलाया है कि जीएसटी लागू होने के बावजूद राज्यों को राजस्व का नुकसान नहीं होने दिया जाएगा। अगर जीएसटी लागू होता है तो ये देश में 1947 के बाद से सबसे बड़ा टैक्स रिफॉर्म होगा। पूरे देश में इनडायरेक्ट टैक्स के तौर पर सिर्फ जीएसटी रहेगा, बाकी सेंट्रल एक्साइज, वैट, ऑक्ट्रॉय या दूसरे टैक्स खत्म हो जाएंगे।


अगले हफ्ते ही संसद में काले धन से जुड़ा बिल भी पेश किया जा सकता है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने एंफोर्समेंट डायरेक्टोरेट के एक समारोह में इस बात के संकेत दिए हैं। वित्त मंत्री ने इसके साथ ही लोगों को चेतावनी भी दी कि गलत तरीके से जमा की गई जायदाद को छिपा पाना अब मुमकिन नहीं होगा।


सरकार ने मार्च में विदेशों से काला धन लाने के लिए कानून बनाने की बात कही थी, जिसमें विदेशों में काला धन छिपाने पर भारी जुर्माना और 10 साल तक की सजा हो सकती है। हालांकि इस कानून में इस बात का प्रावधान भी होगा कि जो लोग स्वेच्छा से अपने काले धन की जानकारी देंगे, उन्हें सिर्फ टैक्स और जुर्माना देना होगा, सजा से उन्हें बख्श दिया जाएगा।

दुनियाभर की मेहनतकश इंसानियत के कत्लेआम की तैयारी है


गौरतलब है कि ट्रेड यूनियनों की अपील पर बंगाल में तीस अप्रैल को बंद रहा अभूतपूर्व कामयाब रहा।इस कामयाबी में लेकिन कांग्रेस और संघ परिवार की भी भूमिका है।यह कामरेडों की कामयाबी या उनकी वापसी का सबूत नहीं है।इसी दिन परिवाहन हड़ताल भी देश व्यापी हो गयी।


अगले दिन मई दिवस पर जुलूसों के महानगर कोलकाता में लाल झंडों के साथ कोई जुलूस फिर भी नहीं निकला।शाम को शहीद मीनार पर ट्रेड यूनियनों की सभा में मेहनतकशों के हक हकूक के लिए लगातार लड़ाई की युद्ध घोषणा जरुर हुई,लेकिन मेहनतकश जनता की आजादी का नारा अब हमारे कामरेड लगाते नहीं है।जो दुनियाभर के वामपंथी बिरादरी का मुख्य नारा है। न वे राज्यतत्र में बदलाव या वर्गीयध्रूवीकरण पर संवाद कर रहे है ताकि फासिस्ट धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण को रोकने का कोई सिलसिला बाने और बाबा साहेब और उनके जाति उन्मूलन के एजंडे से तो उनका कुछ लेना देना है ही नहीं।


सुबह कोलकाता दखल करके सत्तादल तृणमूल कांग्रेस के मजदूर संगठन इंटक तृणमूल ने ट्रेड यूनियनों के बंद और हड़ताल तोड़ने की नाकामयाब कोशिश के मई दिवस की रस्म अदायगी में तब्दील कर दिया और लाल धागा बांधने की वैदिकी अनुष्ठान के साथ इस मजदूर संगठन की सभानेत्री सांसद दोला सेन के दस मिनट के वक्तव्य में मां माटी मानुष सरकार का मई दिवस निपट गया।


देशभर में पहलीबार कोलकाता में अंबेडकर के अनुयायियों ने संघ परिवार के बाबासाहेब के विरासत के हिंदुत्वकरण के प्रयासों के खिलाफ बाबासाहेब के जाति उन्मूलन के एजंडा के तहत उनके आर्थिक विचारों,उनके आंदोलन और मेहनतकश जनता,स्त्रियों और समूची मानवता के लिए उनके हक हकूक के लिए किये कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों,ट्रेड यूनियन आंदोलन में उनकी निर्णायक भूमिका को याद करते हुए कोलकाता मेट्रो चैनल से जुलूस निकालकर रेड रोड पर कूच करते हुए बाबासाहेब की प्रतिमा के समाने मेहनतकश जनता के हक हकूक बहाल करने के लिए मनुस्मृति शासन के जनसंहारी आर्थिक सुधारों के खिलाफ आजादी की लड़ाई शुरु करने का ऐलान कर दिया।


कारपोरेट मीडिया ने कोई सूचना नहीं दी लेकिन हमारे  वैकल्पिक मीडिया केजरिये देशभर के बहुजनों और अंबेडकर अनुयायियों में खबर हो गयी है।हमें देशभर के साथियों के संदेश और फोन मिल रहे हैं।वे अपने अपने क्षेत्रों में कोलकाता की इस शुरुआत को एक सिलसिला बनाने का वायदा भी कर रहे हैं।


उन सबके लिए विनम्र निवेदन है कि अभी अभी शुरुआत है,पूरी लड़ाई बाकी है।
कितना कठिन है हकीकत की जमीन पर खड़े होने की कवायद और सामाजिक यथार्थ की चुनौती का मुकाबला करना और कितना सरल है हवा में तलवारें भांंजना,चुनावी समीकऱण सहेजना,इसका जीता जागता उदाहरण है बंगाल।जहां छप्पन हजार कल कारखानों को खुलवाने के वायदे के साथगद्दीनशीं होने वाली ममता बनर्जी के राज काज में मेहनतकश तबकों पर दसों दिशाओं से कहर बरप रहा है।


हिमालय में जो उथल पुथल हो रहा है।उसका खामियाजा बदलते मौसम चक्र,जलवायु और आपदाओं के सिलसिले में हमें आगे और भुगतना है।इसलिए नेपाल के महाभूकंप को हम किसी एक देश की त्रासदी नहीं मान रहे हैं।यह मानवीयत्रासदी जितनी नेपाल की है,उससे कहीं ज्यादा भारत और समूचे महादेश की है।


केदार त्रासदी के तुरंत बाद हमने हिमालय को दक्षिण एशियाई देसों की साझा विरासत मानते हुए आपदा प्रबंधन की साझा ट्रांस नेशनल मेकानिज्म बाने की मांग की थी और तब हम बामसेफ में भी थे।हिमालयन वायस ने हामारा यह इंटरव्यू यूट्यूब पर प्रसारित किया थाः

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM
यूट्यूब पर यह वीडियो खुल नहीं रहा है और प्राइवेट मार्क है।हमने हिमालयान वायस के संपादक से निवेदन किया है कि वे इसे फिर अपलोड करें।हम इस मसले पर आगे संवाद जारी रखेंगे।


हम आदरणीय सुंदर लाल बहुगुणा के साथ साथ भूगर्भशास्त्री हमारे गुरुजी खड़गसिंह वाल्डिया और चिपको माता गौरादेवी की अगुवाई में हमारे हिस्से के पहाड़ की इजाओं और बैणियों से जो पर्यावरण का पाठ पिछले चार दशकों से लेते रहे हैं,उसके मुताबकि हिमालय की सेहत प्रकृति,पर्यावरण और पृथ्वी की सेहत के लिए उतना ही जरुरी है,जितनी मनुष्यता और सभ्यता के लिए।जिनपर एकाधिकारवादी कारपोरेट केसरिया हमला दिनोंदिन तेज होता जा रहा है।


हिमालय सबसे बड़ा एटम बम है,फटेगा तो पूरी कायनात कयामत में त्बील हो जायेगी।फासिज्म को रोकना कोई विधर्मियों और अल्पसंख्यकों के धार्मिक नागरिक और मानवाधिकार को बचाने की लड़ाई में सीमाबद्ध नहीं है,यह अस्पृश्य अनार्य अश्वेत मेहनतकशों की दुनिया को बचाने की लड़ाई है।


इसीलिए हम यथासंभव गुरखाली में नेपाल के अपडेटआप तक पहुंचाने की कोशिश में लगे हैं।


हम हस्तक्षेप पर ग्राउंड जीरो से लगातार रपटें लगा रहे हैं और लगातार बता रहे हैं कि इस कारपोरेट साम्राज्य की असली ताकत कारपोरेट मीडिया है।इस कारपोरेट कयामत के मुकाबले वैकल्पिक मीडिया खड़ा किये बिना हम कोई मोर्चा खोल ही नहीं सकते।इसलिए हम हस्तक्षेप के लिए आपसे बार बार मदद की गुहार भी लगा रहे हैं।
नेपाल पर अपडे़ के लिए कृपया हस्तक्षेप लगातारदेखते रहें और हो कें तो इसे जारी रखने में हमारी कुछ मदद भी करें।


नेपाल भूकंप पर विशेष #WithNepal




इस लड़ाई में जाहिर है कि सिर्फ देश बचाने से हम हिंदू साम्राज्यवाद और वैश्विक मुक्तबाजारी जायनी गठबंधन के फासिस्ट जनसंहारी तंत्र मंत्र यंत्र से मेहनतकश आवाम और बहुजनों को नहीं बचा सकते।हमें आर्थिक मोर्चे के अवलावा पूरे कायनात को बचाने की भी फिक्र करनी होगी।देश ही नहीं,इस महादेश को जोड़ना होगा कायनात और इंसानियत की बहाली के लिए।यही गौतमबुद्ध और बाबासाहेब का आंदोलन है दरअसल,जिसे हमने शुरु ही नहीं किया है।


बाबासाहेब संपूर्ण मानवता के नेता थे,जो मेहनतकश अस्पृश्य अनार्य अश्वेत दुनिया के एकच मसीहा हैं।इस दुनिया को बचाने की जवाबदेही अब हमारी है।इसके लिए अस्मिताओं और कारपोरेट केसरिया धर्मोन्मादी राजनीति को तोड़ने के वास्ते दुनियाभर की मेहनतकश आवाम की आजादी की लड़ाई में भी हमारी हि्सेदारी होनी चाहिए।क्योंकि राजनीतिक सीमाओं के आरपार विध्वंस का यह तांडव मुकम्मल मनुस्मृति शासन है जो अभी नेपाल को दखल किये है तो बाकी दुनिया दखल करने के लिए भी उसका ग्लोबल हिंदुत्व एजंडा है।जिससे इस कायनात की तमाम नियामतें और बरकतों का काम तमाम है।


अब अंबेडकरी आंदोलन को गौतम बुद्ध के आंदोलन की तरह दुनियाभर में विस्तार देकर ही इस कायनात को हम कयामत के इस केसरिया कारपोरेट सिलसिले से बचा सकते हैं।


उन विद्वान भाषाविदों से निवेदन है कि हमारी जल्दबाजी में तमाम मुद्दों को फौरन जनता के बीच संवाद बनाने की प्राथमिकता समझें,जो हमारी वर्तनी और व्याकरण से पीड़ित हैं।हमारे मुद्दों में अगर उनकी दिलचस्पी है तो हमारी अक्षमता या चूक को माफ करें और हमारा साथ दें।


मालूम हो कि जिस भूमि आंदोलन की नींव पर तामीर हुआ मां माटी मानुष का ममतामय बंगीय तिलिस्म,उसमें नंदीग्राम और सिंगुर में सेज पर देशी विदेशी पूंजी की सुहागरात मनाने के खिलाफ तेज जनांदोलन तो था ही,उसके साथ ही नंदग्राम के पास ही हरिपुर में परमाणु संयत्र लगाने का मुद्दा भी शामिल था।


सेज का नामकरण निजीकरण को विनिवेश और पीपीपी माडल में तब्दील करने की तरह बल ही रहा है।यह पूरी प्रक्रिया हिंदुत्व के जुलाब के साथ फासिज्म का बाबा रामदेव का पुत्र जीवक रसायन है और सेज अब औद्योगिक गलियारा से लेकर स्मार्ट सिटी के मुकाम पर है।भारत माला के जरिये बिल्डरों,प्रोमोटरों के हवाले की जारी हैं भारत की सीमाएं।रक्षाक्षेत्र में एफडीआई क जरिये देश की सुरक्षा विदेशी पूंजी और विदेशी हितों के हवाले करने वाले देश बेचो  हिंदू साम्राज्यवाद के धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद की यह लहलहाती सुनहरी केसरिया कारपरेट फसल है।


भूमि अधिग्रहण का विरोध करने वाली ममता बनर्जी लेकिन औद्योगिक गलियारा और स्मार्ट सिटी के खिलाफ नहीं हैं।न ही बंगाल के समुद्र तट को रेडियोएक्टिव बनाने वाले हरिपुर संयंत्र समेत देश के कुल दस नये परमाणु संयंत्रों को मंजूरी देने के फैसले पर उनने अभीतक कोई प्रतिक्रिया दी है।


इसके विपरीत भूमि अधिग्रहण के विरोध की रट लगाये,संघ परिवार के खिलाफ जिहाद के तेवर के साथ मुसलमान वोटरों को अपने पाले में रखकर अपराजेय चुनावी समीकरण साधने वाली दीदी जनसंहारी आर्थिक सुधारों के मोर्चे पर मोदी सरकार की सबसे कारगार सहयोगी बनकर उभरी हैं।राज्यसभा की बाधा दौड़ पार करने में तृणमूल कांग्रेस की संसदीयशक्ति संघ परिवार की पूंजी है।इसीलिए बंगाल में वाम वापसी के बजाय दिनोंदिन संघपरिवार का  हिंदुत्वकरण अभियान तेज हुआ जाता है।पालिका चुनावों में भी कोई पालिका जीते बिना तृणमूल कांग्रेस के अलावा में फायदे में है संघ परिवार।


मीडिया रपटों के मुताबिक पश्चिम बंगाल के नगर निकाय चुनाव होते ही राज्य के जूट मिल मजदूरों पर मुसीबतों का कहर बरपने लगा है। मजदूर दिवस और उसके दूसरे दिन शनिवार को राज्य की कुल पांच जूट मिलें बंद हो गई। जिनमें काम करने वाले करीब 25 हजार मजदूर बेरोजगार हो गए हैं।


बंद होने वाली जूट मिलों में कांकीनाड़ा, नाफरचंद्र, विक्टोरिया, इंडिया जूट मिल और महादेव जूट मिल शामिल है। नाफरचंद्र जूटमिल चार दिन पहले ही खुली थी। इसके साथ ही जूटमिल मजदूर न्यूनतम वेतन करार के बाद से राज्य में बंद जूट मिलों की संख्या 10 और बेरोजगार मजदूरों की संख्या करीब 40 हजार हो गई है।


नगर निकायों के चुनाव से पहले राज्य सरकार ने जूट मिल मजदूरों का न्यूनतम वेतन करार कर बंद जूट मिलें खुलवाई थीं। बंद हुए जूट मिलों में से तीन उत्तर 24 परगना जिले और दो हुगली जिले की हैं। दो अप्रेल 2015 को जूट मिल मजदूरों का न्यूनतम वेतन 157 रूपए से बढ़ा कर 257 रूपए किया गया था। करार होने से लेकर एक मई से पहले तक पांच जूट मिल बंद हो गई थी। इसमें से कमरहट्टी की प्रवर्तन जूटमिल चुनाव के दूसरे दिन ही बंद हुई थी।


मंत्री ने सोमवार को बुलाई बैठक
राज्य के श्रम मंत्री मलय घटक ने शनिवार को बताया कि दो दिन में पांच जूट मिल बंद होने की खबर परेशान करने वाली है, लेकिन मई महीने में जूट बैग का ऑर्डर नहीं मिलना जूट मिल मालिकों की बहुत बड़ी समस्या है। केन्द्र सरकार ने कोई ऑर्डर नहीं दिया है। इसे सुलझाने के लिए सोमवार को हमने मालिकों के साथ बैठक बुलाई है। बैठक में जल्द से जल्द मिल खुलवाने की कोशिश करेंगे।


मनमानी पर उतारू प्रबंधन
इंटक के वरिष्ठ नेता मास्टर निजाम और एटक के वरिष्ठ नेता अमल सेन ने कहा कि अधिकतर जूटमिल मालिक नया न्यूनतम वेतन देना नहीं चाहते हैं। वे कानून की परवाह किए बगैर मनमानी कर रहे हैं। इसलिए वे उत्पादन कम होने का बहाना बना कर मिल बंद कर रहे हैं। खाद्य और चीनी पैकेजिंग में जूट बैग का कोटा कम किए जाने से ऑर्डर कम हुए हैं जो जूट मिल बंद होने का कारण हैं। इसके साथ ही राज्य सरकार जूट मिलों पर ठीक से निगरानी नहीं कर रही है।


एक व दो मई को बंद हुई जूट मिलें
* कांकीनाड़ा जूट मिल (उ.24 परगना)
* नाफरचन्द्र जूट मिल (उ. 24 परगना)
* विक्टोरिया जूट मिल (हुगली, भद्रेश्वर)
* इंडिया जूट मिल (हुगली, श्रीरामपुर)
* महादेव जूट मिल (बेलुर मठ)
- दो अप्रेल के बाद हुई मिलें
* कलकत्ता जूट मिल
* कमरहट्टी जूट मिल
* प्रवर्तन जूट मिल
* डेल्टा जूट मिल
* नस्करपाड़ा जूट मिल


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