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Monday, May 4, 2015

दिल्ली के हुक्मरान भूले नहीं कि दिल्ली भी भूंकप क्षेत्र में है गनीमत है कि कल का हिंदू राष्ट्र नेपाल आज स्वतंत्र संप्रभू है और वह संघ परिवार के हिंदू साम्राज्य में शामिल होने से इंकार कर रहा है। भारतीय कारपोरेट मीडिया के जनविरोधी हिंतुत्ववादी मोदीयापे पर इस देश के खासोआम की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती।भूकंप से जख्मी हिमालयी इंसानियत खून से लहूलुहान चीख चीखकर कह रहा हैः #GoHomeIndianMedia पलाश विश्वास

दिल्ली के हुक्मरान भूले नहीं कि दिल्ली भी भूंकप क्षेत्र में है

गनीमत है कि कल का हिंदू राष्ट्र नेपाल आज स्वतंत्र संप्रभू है और वह संघ परिवार के हिंदू साम्राज्य में शामिल होने से इंकार कर रहा है।

भारतीय कारपोरेट मीडिया के जनविरोधी हिंतुत्ववादी मोदीयापे  पर इस देश के खासोआम की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती।भूकंप से जख्मी हिमालयी इंसानियत खून से लहूलुहान चीख चीखकर कह रहा हैः

#GoHomeIndianMedia


पलाश विश्वास
फोटोःइकोनामिक टाइम्स के सौजन्य से

हम लगातार नेपाल त्रासदी पर फोकस बनाये हुए हैं क्योंकि यह हमारे लिए नेपाल की त्रासदी है  नहीं,इंसानियत के खिलाफ मुक्तबाजारी फासिस्ट हमलों की वजह सा आन पड़ी कयामत है यह।

हिमालय हमारे लिए कोई भारतवर्ष या नेपाल तक सीमाबद्ध राजनीतिक भूगोल नहीं,यह मनुष्यता और सभ्यता के लिए अनिवार्य प्राकृतिक रक्षा कवच है जो तहस नहस है प्रकृति के विरुद्ध अप्राकृतिक ,धर्म के नाम पर अधार्मिक वाणिजियक दखलंदाजी के अखंड सिलसिले की वजह से,जिसे भारत की हिंदू साम्राज्यवादी सरकार और उसके गुलाम कारपोरेट मीडिया की दखलंदाजी ने,हिंदू राष्ट्र बहाली और हिंदू साम्राज्य के गठन की बेताबी ने एकबयक नंगा कर दिया है।

भारतीय कारपोरेट मीडिया के जनविरोधी हिंतुत्ववादी मोदीयापे  पर इस देश के खासोआम की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती।भूकंप से जख्मी हिमालयी इंसानियत खून से लहूलुहान चीख चीखकर कह रहा हैः

#GoHomeIndianMedia


हमारे लिए यह मामला शर्मिदंगी का उतना नहीं है बाहैसियत भारतीय नागरिक या बाहैसियत इस मीडिया के एक नगण्य कारिंदे ,जितना भारी फिक्र का मामला है कि बाजार के हितों,विदेशी पूंजी और विदेशी हितों और हिंदू साम्राज्यवादी एजंडा ने हमारे हुक्मरान और हमारे कारपोरेट मीडिया को इतना अंधा बना दिया है कि सर पर शुरु मृत्युतांडव का भय भी नही है।

केदार जलआपदा से पहले दिल्ली के हुक्मरान और दिल्ली केंद्रित कारपोरेट मीडिया के लिए हिमालय में तो जैसे इंसानों का कोई बसेरा ही नहीं रहा है।

केदार जलआपदा के दौरान भी हिमालयी इंसानियत के भूगोल के बजाय हुक्मरान और मीडिया का फोकस धर्मस्थलों और पर्यटन स्थलों के सीमेंट के जंगल को बचाने की प्राथमिकता से सराबोर रहा है।तब हमने इस पर सिलसिलेवार लिखा भी है और हमारे पाठकों को याद भी होगा।

हिमालयी उत्तुंग शिखरों,हिमालयी ग्लेशियरों,हिमालय से निकली अविराम जलधाराओं,हिमालय की गोद में बसी भौगोलिक राजनीतिक रेखाओं के आर पार इंसानियत के भूगोल के जख्मों,डूब में शामिल आबादियों,घाटियों और गांवों की कोई खोज खबर आज तक नहीं हुई।

नेपाल की त्रासदी और केदार जलप्रलय के पहले भी हिमालय भूंकप से बार बार थरथराता रहा है।लेकिन उन त्रसादियों ने चूकि मैदानों को स्पर्श किया नहीं,तो हिमालय के जख्मों को मलहम लगाने की सोची नहीं किसी ने।

यह वैसा ही है कि बंगाल की खाड़ी में इस महादेश का रक्षाकवच बने हुए सुंदरवन और भारतीय समुद्रतट को रेडियोएक्टिव मुक्तबाजारी विकास का आखेटक्षेत्र बनाते हुए मुनाफावसूली में बराबार के हिस्सेदार देस के हुक्मरान और कारपोरेट मीडिया को होश ही नहीं है कि इसके क्या भयंकर नतीजे हो सकते हैं।

गढ़वाल में आये भूकंप और पहाड़ों में रोज रोज के भूस्खलन और हिमस्खलन से न हुक्मरान का कुछ बिगड़ता है और न मीडिया का।

तमाम नदियां जो मैदानों को हरियाली नवाजती है और इंसानियत की प्यास बुझाती है,वे आखिरकार हिमालय की बेटियां हैं और गंगा कोई अकेली बेटी नहीं है हिमालय की।

न गंगा कोई अकेली पवित्र नदी है,कायनात के जनरिये से देखें,इंसानियत के नजरिया से देखें तो जल में चूंकि बसता है जीवन,जल में चूंकि आक्सीजन का बसेरा और जल से ही अन्न और जीवन है,तो जलधारा वहन करने वाली हर नदी पवित्र है।


लोग यह जानते भी नहीं है अब शायद की मानसून के बादल अगर हिमालय के उत्तुंग शिखरों से टकराकर इस महादेश की प्यासी धरती पर जल न बरसाये,तो मरुस्थल में तब्दील हो जाये राजनीतिक सीमाओं और अस्मिताओं में खंड खंड लहुलूहान इंसानियत का यह भूगोल।

हम नेपाल पर चर्चा करे हैं बारंबार तो हम उसी इंसानियत के भूगोल की बात कर रहे हैं क्योंकि हम जानते हैं कि जैसे उत्तराखंड में आयी हर आपदा की गूंज हिमालय के कोने कोने में सुनायी पड़ती है और जैसे उत्तराखंड के बाद नेपाल में भूकंप आया है तो कभी भी नेपाल के बाद उत्तराखंड में फिर भूकंप आ सकता है।

इसी इंसानियत के भूगोल को बचाने के लिए गौरादेवी और हिमालय में बसने वाली हमारी इजाओं और वैणियों ने पेड़ों को राखी पहनाने का आंदोलन शुरु किया कि भारतवर्ष और समूची मनुष्यता के लिए हिमालय की सेहत को कोई खतरा न हो।

इसी इंसानियत के लिए देहरादून में एक नब्वे साल के बूढ़े इसान सुंदर लाल बहुगुणा ने अन्न जल त्यागा हुआ है।

भारत को विदेशी पूंजी और विदेशी हितों का अनंत वधस्थल बनाने वाले हुक्मरान और मीडिया को इनकी क्या परवाह।

हो सकता है कि जैसे 1978 में गोमुख पर भूस्खलन से बने कृत्तिम जलाशय के फटने से गंगासागर तक जलप्लावन हो गया वैसे ही टिहरी बांध में जो समुंदर बांधा हुआ है पहाड़ में इसानियत की आबादी को डूब में शामिल करके अगले भूकंप में टिहरी भी चपेट में आ जाये और जैसी कि भविष्यवाणी है कि हिमालय में 9 रिक्टर स्केल का भूकंप फिर आना है तो सत्ताकेंद्र दिल्ली के अस्सी फीसद बहुमंजिली फाइव स्टार आबादी की भी शामत आ सकती है और टिहरी में बंधा वह समुंदर पता नहीं भूगोल के किस किस टुकड़े को समुंदर में तब्दील कर दें।

1978 के उस बाढ़ के वक्तगिरदा,शेखर और मैं गढ़वाल में गंगा के किनारे किनारे गंगोत्री की यात्रा पर अलग अलग जाते रहे हैं और उसकी रपटें सिलसिलेवार नैनीताल समाचार में प्रकाशित है.गढवाल के भूकंप पर उत्तरा टीम से जुड़ी हमारी बैणियों ने गांव गांव का दौरा किया है,उसकी रपटें भी उत्तरा में है

हम सिर्फ नेपाल को देख नहीं रहे हैं,अपने गृहप्रदेश के एक एक इंच बेदखल ऊर्जाप्रदेश उत्तराखंड के पहाड़ों को देख रहे हैं,बिजली का बिजनेस ,धर्म का बिजनेस,अध्रम का बिजनेस और राजनीति का बजनेस में जिसके शिराएं और धमनियां अब फटने वाली हैं कि तब फटने वाली हैं।

उस हिमालय के बिना हमारा कोई वजूद नहीं है,यह जितना सच है,उससे बड़ा सच यह है कि हिमालय के बिना न कायनात है और न इंसानियत है।

भारत में गोरखों को हम या तो रंगरुट समझते हैं या दरबान।भारत की गोरखा आबादी की तकलीफों पर देश के हुक्मरान ने गौर कब किया है बतायें।

बंगाल ,सिक्किम और उत्तराखंड के अलावा बाकी देश में जो गोरखे बसते हैं,या सारे पूर्वोत्तर के लोग जो बाकी देश में हैं या जो पूर्वी बंगाल के शरणार्थी जो सारे देश में पुनर्वासित हैं,या जो आदिवासी अपने ही घर गांव में रोज बेदखली अश्वमेध के शिकार हैं,उन सबको आर्यों का यह हिंदू साम्राज्यवाद गैरनस्ली प्रजाजन  ही समझता है।लेकिन भारत में सत्ता के खिलाफ आवाज बुलंद करने की हिम्मत हम नागरिकों की नहीं है।

गनीमत है कि कल का हिंदू राष्ट्र नेपाल आज स्वतंत्र संप्रभू है और वह संघ परिवार के हिंदू साम्राज्य में शामिल होने से इंकार कर रहा है।


  1. News about #Gohomeindianmedia

  2. bing.com/news
हस्तक्षेप और हमारे ब्लागों पर कल ही हमने यह स्टोरी लगायी है।देखेंः
भारतीय मीडिया की दादागीरी के विरुद्ध नेपाल उबला #GoHomeIndianMedia

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नेपाल संप्रभु राष्ट्र है और उसका आत्मसम्मान है- नेपाली जनता की प्रतिक्रियाएं

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भारतीय सेना को 200 लोगों की मौत का जिम्मेदार ठहरा रहा नेपाली मीडिया

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2015/05/03

Letter To Indian Media by Nepali People #GoHomeIndianMedia

2015/05/04 World 1 Comments
नेपाल भूकंप पर विशेष रिपोर्टिंग
Letter To Indian Media To Indian media, I would like to thank from the bottom of my heart for the help your country has provided at this time of crisis in my country, Nepal. All the Nepalese in and outside of the country are thankful to your country. However, me being a Nepali outside from my motherland, when saw your ... Read More »
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नेपाल संप्रभु राष्ट्र है और उसका आत्मसम्मान है- नेपाली जनता की प्रतिक्रियाएं

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नेपाल भूकंप पर विशेष रिपोर्टिंग
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