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Tuesday, August 4, 2015

फिर हर आदमखोर आखिर मारा जाता है कभी न कभी! अखबार के साथ रोटी फ्री बांटना शुरु करें अब।मांस का दरिया समेट लें। गौरतलब है कि हर पेट के लिए अगर रोटी हो मयस्सर तो समझ लो,सारे वाद विवाद गैरजरुरी है कि वहींच हो गयी क्रांति।समझ लो। पलाश विश्वास


फिर हर आदमखोर आखिर मारा जाता है कभी न कभी!

अखबार के साथ रोटी फ्री बांटना शुरु करें अब।मांस का दरिया समेट लें।

गौरतलब है कि हर पेट के लिए अगर रोटी हो मयस्सर तो समझ लो,सारे वाद विवाद गैरजरुरी है कि वहींच हो गयी क्रांति।समझ लो।

पलाश विश्वास

Fully Automatic Chapati Machine - YouTube

Video for chapati machine▶ 7:12

www.youtube.com/watch?v=Mtu4JnzKOS0

Sep 22, 2011 - Uploaded by MANOHARINTER

Capacity: 300 to 2000 Roti / Per Hour Type: Fully Automatic Chapati Roti Making Machine Latest ...

Fully Automatic Chapati Making Machine (2000 Chapatis ...

Video for chapati machine▶ 3:05

www.youtube.com/watch?v=6mBVv5RayJ0

Jul 8, 2011 - Uploaded by Ankur Arora

Capacity : 2000 Chapatis/hr For quote & all details please write to: sunshineindustries_007@yahoo.com ...

Sunrise Chapati Making Machine, - YouTube

Video for chapati machine▶ 3:54

www.youtube.com/watch?v=NBEs0c9UXTo

Oct 2, 2013 - Uploaded by Manoj Chourey

Sunrise Chapati Making Machine in operation at one of the outlet of Only-Roti, in Hyderabad.

Automatic Chapati Making Machine - YouTube

Video for chapati machine▶ 9:42

www.youtube.com/watch?v=_4BB379_OdI

Dec 26, 2012 - Uploaded by aarbeeengg

We have Fully automatic & semi automatic chapati makingmachines. Production capacity of our chapati ...


अमां यार,ये क्या गजब ढा दिया कि बोतली पुरानी बदल दी।नई बोतल है तो शैंपेन वैंपेन कुछ भी पिला देते कि जायका बदल जाता!

ये क्या कर दिया कि बोतल तो नई है और शराब वो पंजाब वाली भी नहीं है।देसी ठर्रा ठसाठस ठूंस दिया और नई बोतल को जहर का प्याली बना दिया!


अखबार अब बिक नहीं सकते चाहे कोई और जुगत कर लो क्योंकि अखबारों की रुह का कत्ल हो चुका है और कातिल भी वे ही हैं जो मसीहा भी हैं।


अब सारे अखबार मांस के दरियाओं में तब्दील ,जिनमें और जो कुछ मसाला साबूत या पिसा हुआ हो,रुह नहीं है।रुह हरगिज नहीं है।


अब चाहे कुछ भी कर लो।जिंदा गोश्त नत्थी कर लो,मुफ्त कंडोम बांट दो या राकेट कैप्सूल या वियाग्रा या जापानी तेल,कुछ भी टनटन टनाटन बोलेगा नहीं क्योंकि अब तो कटवा लेने का दस्तूर चाला है।बायोमैट्रिक के बाद अब डीएनए प्रोफाइलिंग मुल्क का कानून बन रहा है और रीढ़ भी रस्सी में तब्दील है।


भले राम की सौगंध खाकर कुछ भी जुगत कर लो,अंधियारा का कुल कारोबार कर लो,फरेब कर लो चाहे कुछ भी और हर पन्ने पर गोमाता ब्रांडिंग कर लो,कुछ होना नहीं है।


साख जो गिरी है,वापस नहीं होनी है।


फिरभी एक जुगत है,चाहें तो आजमा लें!


मुल्क अभी भूखा है।

हालात यह है कि किसी घर में अब इकलौता चूल्हा भी न जले हैं और किन्हीं हाथों में अब वह दम नहीं कि रोटी बनाकर परोस दें!

मौका जबर्दस्त है।

प्रिंटिंग प्रेस के बगल में कोई रोटी मेकिंग मशीन भी लगा लें।


अखबार भी छापें तो रोटी भी छाप दें!


फिर चाहे तो अखबार का दाम बढ़ा दें जितनी मर्जी या फिर रोटी का दाम जोड़ लें जैसा कि अब सेल का दस्तूर भी है।


यानी अखबार के साथ रोटी फ्री बांटना शुरु करें अब।

मांस का दरिया समेट लें।


गौरतलब है कि हर पेट के लिए अगर रोटी हो मयस्सर तो समझ लो,सारे वाद विवाद गैरजरुरी है कि वहींच हो गयी क्रांति।समझ लो।


कहां तो मुकाबला था शेक्सपीअर से,काफ्का वोल्तेअर से,दास्तावस्की और तालस्ताय गोर्की से या फिर शरत चंद्र से,प्रेमचंद से,मंटो से या इलियस नबारुण से,हम तो दो कौड़ी के संपादकों,दो कौड़ी के आलोचकों और दो कौड़ी के प्रकाशकों की सेवा में संडे का तेल बेचने लगे!अंडे सेंते लोगों के प्यादे हो गये।


कायनात का कारनामा भी खूब है।

सूरत सीरत किसी काम की नहीं है।

होते हम अपने चाचा की तरह हैंडसाम,स्मार्ट और जवान,या अपने ताउ की तरह संगीतबद्ध अगर होते या पुरखों की कद काठी पाये अपने टुसुवा के बराबर भी होते,या अपनी सगी मां के चेहरे का नक्शा छपा होता चेहरे पर,तो रोल हो न हो हीरो का भी मिला होता।


हम भी आखिरकार मुहब्बत होते सरसे पांव तलक कि मुहब्बत की खातिर हम भी कुर्बान हुए रहते!


यां तो किरदार हमारा बदल गया है वरना फिर न रसगुल्ला का साथ छूटता और न मधुमेह का सिलसिला यह होता।


बाप हमारे खासे बदसूरत थे खानदान के मुकाबले।

बौने थे वे।दिलोदिमाग भी अजब गजब पाया उनने।

हम भी शक्लोसूरत से अपने बाप पर गये हैं।

सिर्फ उनका जुनून ढो नहीं सका।


यकीनन कायनात ने हमारा किरदार कुछ सोच समझकर बनाया होगा कि मुहब्बत के सिवाय गम और भी हैं,हाल यह न होता।


मैंने आज टुसु महाराज से पूछ लिया कि क्या उसे याद है कि मेरठ में,बरेली में और कोलकाता में ही सहर होते ने होते उसे साथ लेकर हम खिलौने की दुकान पर खड़े हो जाते कि वहीं खिलौने उसे चाहिए होता था।


गनीमत है कि उसने कहा कि उसे याद है।राहत मिली हमें।


मेरे बाप का कहना था कि बचपन न छूटें कबहुं तो समझो,हालात कुछ भी हों,न ख्वाब बदलते हैं और न किरदार बदलता है।


संजोग से मेरा बचपन सही सलामत मेरे वजूद में अब भी बहाल है।

संजोग से मेरी मरहूम मां का बसंतीपुर जैसा बड़ा जिगर मेरे साथ है।


संजोग यह भी कि मेरे बाप का जमीर उनके साथ मरा नहीं है और हमने उसे बख्तरबंद तोपखाना बना लिया है ताकि गोलाबारी थमे नहीं कभी अपने मोर्चे से,जो सबसे जरुरी है।


मेरे बाप का कहना था,अपने लोगों के हक हकूक के लिए सारे किले फतह करने होंगे।


मेरे बाप का कहना था,अपने लोगों के हक हकूक के लिए सारे तिलिस्म तबाह तहस नहस करने होंगे।


मेरे बाप का कहना था,अपने लोगों के हक हकूक के लिए चक्रव्यूह में भी फंसो तो रास्ता निकालना होगा,कुरुक्षेत्र भी जीतना होगा चाहे मुकाबले में कोई कृष्ण हो या अर्जुन।


मेरे बाप का कहना था,अपने लोगों के हक हकूक के लिए जमीन आसमान एक कर देने का जज्बां अगर न हो तो पढ़ना लिखना तुम्हारा काला अक्षर भैंस बराबर है।समझो फिर जंदगी बेकार है।


मेरे बाप ने कहा था कि कुछ भी मत कमाओ।

कमाई के वास्ते कोई धंधा हरगिज न करो।


कमा सको तो मुहब्बत कमाओ।

कमा सको तो दोस्ती कमाओ।

कमा सको तो भाईचारा कमाओ।


उनने कहा थी कि नफरत का सौदा हराम है और नफरत का कारोबार दोजख है।


हमें भी कोई कमानेवाला बच्चा नहीं चाहिए।

हमें ऐसे बच्चे चाहिए जो अलख वही जगाता रहे जैसे मेरे पिता ने कहा कि अपने लोगों के हकहकूक के लिए सर कटवाने की नौबत हो तो भी पीछे न हटना।


हमारे बच्चे उसी विरासत के वारिश हैं और इसीलिए बुरे से बुरे अंजाम का हमें कोई खौफ भी नहीं है।


मुहब्बत कमाना अब भी सीख नहीं सका।

नैनीताल में पढ़ा लिखा हूं तो दोस्ती आ गयी है।

मेरी दोस्ती से इसलिए रिहाई किसी को मिलती नहीं है।

किसीको दोस्ती से फारिग होने का मौका देता नहीं हूं।


शरणार्थी हूं और शरणार्थी हर घर मेरा घर है।उतना मैं बंगाली हूं उतना मैं कुमांयुनी और गढ़वाली भी ठैरा।

उतना ही आदिवासी हूं जितना सर से पांव तलक अछूत।


जितना मैं हिंदू हूं उसी बराबर सिख हूं मैं और उतना ही मैं मुसलमान और बौद्ध और ईसाई भी।


मेरा मजहब हर मजहब का मजहब है।

कि मेरा इंसानियत के बजाय कोई मजहब है नहीं।


इस जहां की हर जुबान मेरी जुबान है।

हर मजलूम की जुबान मेरी जुबान है।

अब कोई मेरा जो उखाड़ सकै हैं सो उखाड़ लें।


मेरे बाप का कहना था,जमीन पर राज करने वाले बहुत हैं।

आसमान पर राज करने वाले भी बहुत होंगे।

लोग समुंदरों पर भी राज कर रहे होंगे।

हो सकें तो हर दिल पर अपना दस्तखत छोड़  जाना।


मेरी मां का जिगर सही सलामत है।

मेरे बाप का जिगर सही सलामत है।


बाकी जो मुल्क है,उसे सही सलामत रखना हमारा काम है।

अब कोई हमारा जो उखाड़ सकै हैं सो उखाड़ लें।


जिस कायनात ने पैदा किया है,उसने हमारे लिए भी कोई आखिरी तारीख बनायी होगी।मगर हमें यकीन है कि जो किरदार मेरा बना है,उसे निभाये बिना अलविदा हरगिज नहीं कहना है।


हो सकता है कि आते जाते,बैठे बैठे हमेशा के लिए उठ जाउं बहुत जल्द या दिमाग ही सुन्न हो जाये यक ब यक जैसे हमारे अजीज दोस्त जगमोहन फुटेला का हुआ है।


फिरभी यकीन मानना कि खत्म होने के लिए हम बने नहीं हैं और नहीं तो घूम फिरकर ख्वाबों में आउंगा और सोच भी बन जाउंगा कभी कभार।बहार बनेने का इरादा नहीं रहा है कभी।


दोस्ती निभाने की आदत है तो दुश्मनी निभाना भी हमने अपने पंजाब से सीखा है और इस मामले में हम किसी लाहौर अमृतसर वाले से कम नहीं हैं।


आखिर सिखों के बीच पला बढा हूं।जितना बंगाल, पंजाब, उड़ीसा, महाराष्ट्र मेरा है या देश का कोई हिस्सा ,उतना ही पंजाब और कश्मीर और मणिपुर भी मेरा है।


हम कब्र तक पीछा करने वाले हैं।

कब्र खोदकर हिसाब किताब बराबर करने वाले हैं या अगला इतना तंगोतबाह होगा कि कब्र फोड़कर जिंदगी से पनाह मांगें।


शौहर भी कोई कायदे का नहीं हूं।शौहर बनने की हैसियत नहीं थी और वाकया ऐसा हुआ ठैरा कि झट से शौहर बन भी गया।


तो हमने तय किया कि शौहर कायदे का बन नहीं सकें हैं तो क्या दोस्त तो बन ही सकते हैं,अपनी फरहा जान से पूछकर देखें कि मुहब्बत का इजहार कर पायें हो या नहीं,पल छिन पलछिन हमने उनसे दोस्ती निबाही है।


शरीके हयात से दोस्ती हो जाये तो मुहब्बत भी फेल है क्योंकि आखिरकार वे कोई मांस का दरिया हरगिज नहीं हैं और रुह से रुह के तार जोड़ना सबसे जरुरी है।


दोस्ती से पक्का कोई रिश्ता दरअसल होता नहीं है और हमने दोस्ती आजमाया,तो हम पछताये भी नहीं है।


बाकी मुहब्बत हो न हो,दोस्ती तो है ,जिसका रंग मुहब्बत से ज्यादा गाढ़ा है उतना ही गाढ़ा जितना लहू का है,मुंह लग गया तो सर चढ़कर बोले हैं।


अपनी अपनी फरहा से तनिको दोस्ती भी कर लीजिये,मुहब्बत अपने आप हो जायेगी।


उन्हें भी हाड़मांस का इंसान समझ लीजिये और मांस का दरिया न समझें उन्हें।फिर करिश्मा है।आजमा कर देखें।


हमारे लिए इसीलिए हर नासूर,हर मसले का हल फिर वहीं दोस्ती है और हम बखूब जाने हैं कि सीकरी दिल्ली से बहुत दूर है।


हम जानते हैं कि संतन को कोई काम नहीं है सियासत से।

हम यह भी जानते हैं कि संतन का कोई काम नहीं है मजहब से।


हमारे लिए जो सियासती मजहबी लोग हैं वे न मुश्किल आसान हैं कोई और न वे कोई संत हैं या फकीर हैं।अंधियारा के कारोबारी हैं वे।


बाकी किस्सा वही सूअर बाड़ा है।

जिसमें कोई असली सूअर है नहीं जो किसानों के खेत जोत दें।

नगाड़े रंग बिरंगे खामोश है।


टीवी पर काली पट्टियां खूब चमक दमक रही हैं।

शोर बहुत है और नौटंकी भी बहुत है।


फिर वहीं गिलोटिन हैं।जैसे गिलोटिन कानून बनावै हैं वैसे ही गिलोटिन सर भी उड़ाये हैं।


बाकी किस्सा राजधानियों का है।

बाकी किस्सा सियासत का है।

सियासती समीकरण का है बाकी किस्सा।

बाकी किस्से में दरअसल कोई किस्सा नहीं है।

जैसे कोई मसीहा का कागद कारे हुआ है,याद करें।


कि जलेबी है भाषा,रस टपकै खूब है और जनता भी खायेकेै लपकै खूब है।कांटेट फिर वही जाति है या फिर राजनीति है।


कांटेट फिर वही जलेबी है।

जलेबी की पेंचें हैं।

पंतगबाजी है।


लफ्फाजी है।

जनता के न मसले हैं और न असली मुद्दे हैं।


आपरेशन ब्लू स्टार का नंगा समर्थन है और हुकूमत की गायछाप ब्रांडिंग है।नरसंहारों की खुली वकालत है या फिर विशुद्ध हिंदुत्व की तर्ज पर विशुद्ध कारपोरेट लाबिइंग है।शत प्रतिशत हिंदुत्व है।


बोतल भले नई हो या फिर पुरानी शराब वहीं है जहरीला ठर्रा।

कोई चीख कहीं दर्ज नहीं होती।


न कोई अखबार अब जनता का दर्ज किया एआईआर है।

एकतरफा फतवों का जंगल है या फिर मजहबू तूफां है मुकम्मल

या फिर मांस का दरिया है मुकम्मल।सारा हकीकत गोपनीय है।


मुल्क है।मजहब है।

मुल्क है।जम्हूरियत है।

मुल्क है।कानून है।


सियासत भी होगी यकीनन।

तो हुकूमतबी होगी यकीनन।


सिर्फ इंसानित की खुशबू नहीं है।

सिर्फ कायनात की कोई परवाह नहीं है।


हर कोई किसी रब का बंदा है या फिर बंदी है।


हम हुए काफिर तो क्या, किसी मजहब पर ऐतराज नहीं है।


रब अगर है तुम्हारा उस रब का भी तनिको खौफ करो क्योंकि कयामत अब बेइंतहा है और रब किसी की हरकतों से नाराज है तो उसे कहीं पनाह भी नहीं है।


सियासत करो तो ईमानदारी से करो।

सियासत है तो ईमानदारी से सियासत के तहत जनता की नुमाइंदगी भी करो।


हकहकूक की लड़ाई में मजलूम जनता की रहनुमाई भी करो।

यह क्या तुम उड़ाओ मुर्ग मुसल्लम और जनता पेट तालाबंद रहे और रोटी भी मयस्सर नहीं है!


बंगाल में ममता भी मुकम्मल सियासती हैं।फिर भी राजधानी में कैद नहीं है हरगिज वह।कयामत झेल रही जनता के बीच हैं वह।तो सारी सियासत पर भारी उसकी सियासत है,चाहे कुछ भी कहें।


सियासत सिर्फ सूअरबाड़े का किस्सा नहीं है।

न अखबार कोई मांस का दरिया है।


अगर रोटी सबसे बड़ा मसला है तो क्या बुरा है कि अब अखबार के साथ रोटियां भी बांटे.यकीनन मानो कि हर घर में जायेगा अखबार अगर उसके साथ रोटी भी चस्पां करदिया जाये।


बाकी सियासत का हिसाब भी होगा किसी न किसी दिन।

बाकी सियासतका जो हो सो हो,सड़कों पर जब होंगे गिलोटिन तो सर दूसरों के भी कटेंगे।


जिस दिन सारे कातिल दरिंदों को पहचान लेगी जनता,उसी दिन सड़कों पर फिर गिलोटिन ही गिलोटिन होंगे।

कानून आदमी को उड़ाने वास्ते तब नहीं बनेंगे।

आदमखोर तब सीमेंट के जंगल में भी मारे जायेंगे।


फिर हर आदमखोर आखिर मारा जाता है कभी न कभी।


Automatic Roti-Making Machine Makers Zimplistic raises a whopping $11.5 Million investment

Roti-making Machine it is!

Roti-making Machine it is!

The News:

A few months ago, we reported the greatest invention since pizza. Yes – it was the Rotimatic, the one-minute roti making machine that churns out rotis like no ones business. It was the answer to the prayers of all chapathi lovers and we were super excited. The makers behind this beautiful machine is Zimplistic and we just heard that they received a whopping $11.5 Million in a second round of investment.

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The People:

The brains behind Zimplistic is a Singapore-based Indian couple – Pranoti Nagarkar and her husband Rishi Israni. Pranoti is a mechanical engineer from National University of Singapore. She came up with a prototype for an automatic roti maker which won her the "Start-Up Singapore" competition in 2009.

Nagarkar and her husband Rishi Israni, who came on board as a co-founder a couple of years later, floated a product design company named Zimplistic to promote the roti maker brand called Rotimatic.

The duo co-founded startup Zimplistic for the invention, a 17-kg breadmaker type device which combines 10 motors, 15 sensors and 300 parts to produce chapati.

As an initial round of investment Rishi helped raise $3 million from private investors. They have now announced an investment of $11.5 million from NSI Ventures and Robert Bosch Venture Capital (RBVC).

The Future:

"It has been an amazing year for us and these new partnerships will only help to improve what we see as a revolutionary product that enables families to eat healthier," said Israni, CEO Zimplistic.

"With this funding, Zimplistic plans to finish the Rotimatic beta, accelerate manufacturing rollout and set up operations in international markets to fulfil the big demand," Israni said.


The new round of funding has been secured just few months after raising the first round of investment worth more than USD 1 million from Southeast Asia-based NSI Ventures.

Within a week of the launch of its beta version last year, USD 5 million worth of roti makers priced at USD 999 each were sold and Zimplistic had to close pre-orders. Now, there's a waiting list for rotimakers amounting to over USD 72 million and over 5,000 requests for distribution partnerships around the world, the report said.

The Product:

Rotimatic is the world's first automatic roti making machine. It holds ingredients for up to 20 rotis. You even get to choose the consistency and oil you put into your roti, how soft you want it to be and all this in one-minute. It will also make you dough-sized balls and even poori shaped discs! Check out the super cool video explaining rotimatic below!

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