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Friday, August 14, 2015

छदम नैतिकता और हम – किशोर

छदम नैतिकता और हम – किशोर

Kishore
Kishore
पिछले दिनों “नैतिकता” का पाठ पढ़ाने के नाम पर मुंबई पुलिस ने होटलों में छापा मारा चालीस  जोड़ो को हिरासत में लेकर उन्हें तिरस्कृत किया, कई घंटे हिरासत में रखा और जुर्माना वसूल कर के ही उन हे रिहा किया. साथ ही उन्हें अपने घरवालों को फ़ोन करने करने के लिए भी मजबूर किया गया. गौरे तलब हैं कि इन होटलों में एक भी वह होटल नहीं है जहाँ समाज का कुलीन वर्ग ठहरता हैं क्योंकि यह वर्ग तो पहले से ही “नैतिक” है और इन्हें नैतिकता के पाठ की जरूरत नहीं है.
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“नैतिकता” के नाम पर लोगों की निजी जिंदगी पर हमला करने की यह कोई पहली घटना नहीं है.  दिसम्बर 2011 में मेरठ में चलाया गया “ऑपरेशन मजनू” शायद आपको याद होगा. इस अभियान में  पार्क जैसी सार्वजानिक जगहों में बैठे प्रेमी युगलों को साथ-साथ बैठने और घूमने पर अनैतिकता का   आरोप लगाकर और  सार्वजनिक रूप से सजा देकर अपमानित किया गया था. कई युवको पर थप्पड़ों की बरसात भी की गयी थी. कई जोड़ों को उठक बैठक लगाने को भी कहा गया था. इनमे से कुछ जोड़े शादीशुदा थे, कुछ मंगेतर और कुछ प्रेमी युगल. तीस जोड़ों पर इस अभियान का इतना गहरा सदमा लगा था कि वह दो दिन तक अपने घर ही नहीं लौटे थे. बाद में इनका क्या हुआ इसकी भी कोई खबर नहीं है.
इस अभियान में शहर की  अलग-अलग जगहों पर लगभग 200 युवकों को पकड़ा गया और उन्हें “मजनू का पिंजरा” नाम के वाहन में बैठा कर शहर के अलग अलग हिस्सों में घुमाया गया. यह पिंजरा एक ट्रक में बनाया गया था और देखने में एकदम जानवरों के पिंजरे जैसा था. जिससे बाहर से पकड़े गए युवकों को साफ़-साफ़ देखा जा सके. इनमे से कुछ युवक चाय की दुकान में चाय पी रहे थे तो कुछ किसी चौराहे पर गपशप मार रहे थे. पुलिस के हिसाब से ये सब लड़के ही लड़कियों को छेड़ते हैं और इसीलिए पकड़ के उन्हें पिंजरे में बंद किया गया था. एक लड़के को तो तब पकड़ा गया जब वो अपनी बहन को कॉलेज के गेट पर छोड रहा था. जिन युवकों ने इसका विरोध किया उनके साथ मार पिटाई भी की गयी.
पुलिस की गुंडागर्दी का ये नंगा नाच दिनदहाड़े शहर के बीचो-बीच तमाम टी.वी. चैनेलों की रिकॉर्डिंग के साथ किया गया था. ये सब करने में पुलिस को किसी तरह की शर्मिंदगी का अहसास नहीं था क्योंकि ये सब तो वह समाज को नैतिक पतन से बचाने के लिए कर रहे थे . पिंजरे में बंद करने की ये कार्यवाही कानून की कौन सी धारा के तहत की गयी थी , ये स्पष्ट नहीं है पर पुलिस के अनुसार “मजनूओं” को  सजा देने के लिए ये सामंती तरीका वाजिब था. उसके अगले दिन, ये अभियान महिला पार्क में चलाया गया और युवतियों को पकड़ के अपमानित किया गया. पुलिस का कहना था कि वो ये देखने आये थे कहीं लड़कियां छुप-छुप के लड़कों से तो नहीं मिल रही. गौरे तलब है कि ये पार्क सिर्फ महिलाओं के लिए है और यहाँ कोई लड़का नहीं आ सकता था.
लगभग इसी तरह के अभियान गाज़ियाबाद, ग्वालियर , कानपुर और इलाहाबाद में भी चलाये गए थे. कहा जा रहा था कि ये सब कार्यवाहियां नैतिक पतन को रोकने के लिए की जा रहीं थी. पुलिस का कहना था कि इस तरह के प्रेम संबंधों में लड़कों की मंशा लड़कियों का शारीरिक शोषण करने की होती है और वो लड़कियों को इससे बचाना चाहतें है.
सर्वविदित है की मेरठ और गाज़ियाबाद, अपराधों के मामले में देश के अग्रणी जिलों में से हैं, ख़ासकर महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के मामले में. नैतिक उत्थान के नाम पर महिलाओं के खिलाफ फ़तवे जारी करने वाली खाप पंचायतें भी इसी क्षेत्र में लगती हैं, जहाँ लड़कियों के मोबाइल प्रयोग करने पर रोक लगाने से लेकर वो क्या पहने, क्या खाए, किसके साथ घर से बाहर जाए जैसे फ़तवे जारी किये जाते है. सब जानते है कि इस तरह के गैर कानूनी फतवे जारी करने वालों के खिलाफ पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की है. मुंबई में भी यह वही पुलिस है जिसके कई अफसर पिछले दिनों गैर कानूनी शराब की खरीद फरोख्त के मामले में निलंबित हैं जिसके कारण सैंकड़ो लोग मारे गए थे.
नैतिकता के यह  ठेकेदार यह प्रवचन भी देते सुने गए कि प्रेम करना और लड़के-लड़कियों का इस तरह साथ साथ घूमना “अच्छे घर“ के बच्चों को शोभा नहीं देता. यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि हमारे समाज में  प्रेम संबंधो को हिकारत की नज़र से देखा जाता है और इस तरह के संबंधों को सामाजिक मान्यता प्राप्त नहीं है. इसी कारण युवक-युवतियां अपने प्रेम संबंधो को जग जाहिर नहीं करते और मिलने के लिए ऐसी जगह ढूँढ़ते हैं जहाँ कोई उन्हें देख ना ले. उन्हें लगातार ये अहसास दिलाया जाता है कि वो कुछ गलत काम कर रहें हैं और एक कुंठा हमेशा उन्हें घेरे रहती है. इसी कुंठा का फायदा उठा कर पुलिसकर्मी, जो खुद इस कुंठा का शिकार हैं, युवक-युवतियों को धमकाते हैं. ऐसे में पकड़े जाने पर प्रेमी युगलों की ये कुंठा और गहरी हो जाती है और कोई इसका विरोध नहीं कर पाते.
इस तरह के तमाम अभियान गैर कानूनी है जिन्हें पुलिस कानूनी तौर पर अंजाम दे रही है. इस तरह की घटनाएँ और पुलिस की ज़्यादतियां हमारे बीमार समाज के ही लक्षण है और संविधान द्वारा दी गयी  स्वतंत्रता और निजता के अधिकार के विरुद्ध हैं. हमारा समाज हमेशा से व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता को हिकारत की नज़र से देखता आया है और सामाजिक मूल्यों और नैतिकता के नाम पर इसका दमन करता आया है. और अगर मामला लड़कियों की स्वतंत्रता का हो तो ये व्यवस्था और दमनकारी हो जाती है.  सबसे दिलचस्प पहलू ये है कि ये सब समाज को नैतिक पतन से बचने  के नाम पर ही किया जा रहा है .
ऊपर दी गयी घटनाओं से स्पष्ट है कि हमारे पुलिस-थाने भारत के संविधान के अनुसार नहीं बल्कि बीमार समाज की घिसी पिटी मान्यताओं और पितृसत्ता के मूल्यों के अनुसार सामाजिक नैतिकता को देखते है. उनके हिसाब से प्रेमी युगलों के प्रेम-प्रसंग नैतिक पतन का मुख्य कारण है . अक्सर माँ-बाप जब अपनी गुमशुदा लड़कियों की रिपोर्ट दर्ज कराने जाते है तो पुलिस यह कह कर लौटा देती है की लड़की अपने आशिक के साथ भाग गयी होगी. लड़की को ढूँढने के बजाय परिवार को अपनी “इज्जत” बचाने की सलाह दी जाती है और परिवार को यह अहसास  दिलाया जाता है कि उसने कैसे एक “कुलक्षणी” को जन्म दिया है.
ऐसा नहीं है कि ‘नैतिकता” के यह ठेकेदार पहली बार सर उठा रहे हैं और समाज पर अपनी “छदम नैतिकता” थोप रहें हैं. यह ठेकेदार हमारे समाज में हमेशा से रहें है. तमाम पार्टियाँ और सरकारें अपने राजनैतिक गणित के चलते इस तरह की “नैतिकता” के सामने  घुटने टेकती रहीं हैं. पर आज की तारिख में मुश्किल यह है कि वर्तमान सरकार मात्र राजनैतिक गणित के लिए इन पर छुप्पी साधे  नहीं बैठी पर वह खुद इस “छदम नैतिकता” में अटूट यकीन रखती है. यह केवल इस तरह की घटनाओं को नज़रंदाज़ ही नहीं करती बल्कि इनका मूक समर्थन भी करती है. दुसरे शब्दों में कहे तो तमाम कट्टरवादी ताकतों को इससे गुंडागर्दी करने की शह मिली हुई है .
बॉलीवुड में बनने वाली ९०% फिल्मे प्रेम प्रसंगों पर आधारित होती है पर वास्तविक जीवन में अपनी पसंद का लड़का चुनना किसी अपराध से कम नहीं ही. पुलिस का ये रवैया ये सन्देश देता है कि निजी स्वतंत्रता और सुरक्षा एक साथ सुनिश्चित नहीं की जा सकती. अगर समाज को नैतिक पतन से बचाना है तो युवक युवतियों को अपना साथी चुनने की स्वतंत्रता का त्याग करना होगा और घर की दहलीज़ के दायरे में रहना होगा.
इस नैतिक समाज के घर की दहलीज़ के अंदर किस तरह का शोषण होता है ये पुलिस की कल्पना से बाहर है. साथ ही पुलिस का ये भी मानना है कि परिवार में होने वाले लैंगिक और अन्य तरह के शोषणों को परिवार के भीतर ही रहना चाहिए और परिवार में ही उनका निपटारा होना चाहिए. संविधान में मुहैया कराई गयी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का इनके लिए कोई मोल नहीं है. प्रेमी युगल प्रेम-प्रसंगों में पड़कर अपनी स्वतंत्रता का दुरूपयोग कर रहें हैं और उसे रोकना चाहिए. मजनू के पिंजरे में बिठा कर शहर में घुमाने जैसे सामंती सज़ा के तरीके का इस्तेमाल बदस्तूर जारी है. पर इस तरह के सामंती व्यवहार में इतना हैरान होने कि बात नहीं है. हमारा संविधान तो प्रगतिशील और लोकतान्त्रिक है पर उसे लागू करने वाली कार्यपालिका सामंती मानसिकता से ग्रसित है. अगर दायित्व-वाहक सामंती होंगे तो उनके तौर-तरीके सामंती होना लाज़मी है. शिकायत करने आने वाली महिलाओं को घंटो थाने में बैठाए रखना और उनके साथ दुर्व्यवहार करना भी इसी मानसकिता का परिचायक है और उनकी शिकायत दर्ज़ ना करना भी उसी मानसिकता का. प्रगतिशील संविधान और घिसी-पिटी मान्यताओं  का द्वन्द भी जारी है और लोकतान्त्रिक और सामंती मूल्यों का भी. साथ ही साथ सड़े-गले समाज में बदलाव की हमारी लड़ाई भी जारी है.

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