Sustain Humanity


Saturday, August 15, 2015

Urmilesh Urmil कुछ भी ऐसा नहीं था, जिससे प्रभावित हुआ जा सके। मुझे तो कोई नया विजन नहीं दिखा। कुछ पुराने, पहले ही छप चुके आंकड़े थे, कुछ रैलियों में बोले जाने वाले जुमले थे और बिहार चुनाव के मद्देनजर गरीबों के हमदर्द होने के कुछ दावे थे। कारपोरेटपरस्त सरकार होने के आरोपों को झटकने की कोशिश थी। और क्या था?


कुछ भी ऐसा नहीं था, जिससे प्रभावित हुआ जा सके। मुझे तो कोई नया विजन नहीं दिखा। कुछ पुराने, पहले ही छप चुके आंकड़े थे, कुछ रैलियों में बोले जाने वाले जुमले थे और बिहार चुनाव के मद्देनजर गरीबों के हमदर्द होने के कुछ दावे थे। कारपोरेटपरस्त सरकार होने के आरोपों को झटकने की कोशिश थी। और क्या था?
Like   Comment   
  • Pervaiz Alam So right! Cheers.
    Like · Reply · 1 · 6 hrs
  • Urmilesh Urmil एक्सटेम्पोर स्पीच 90 मिनट। निस्संदेह, पिछले पीएम से भाषण के मामले में तो आगे हैं ही। पर कुछेक जगह शब्द-चयन अटपटा सा लगा(हांलांकि तक्षशिला के बिहार में होने जैसी बात नहीं कही!) या पता नहीं सुनियोजित हो? जैसे एक जगह, जातिवाद का 'जहर' कहा, संप्रदायवाद की ...See More
    Like · Reply · 4 · 6 hrs · Edited
  • Shiv Kumar Yadav सही बात है साब,चुनावी रैली में तो चुटकुलेबाजी ठीक है पर प्रधानमंत्री की गरिमा को सारगर्भित और सोद्देश्य भाषण ही शोभा देता है...
    Like · Reply · 1 · 4 hrs · Edited
  • DrChandramani Jha आप निष्पक्ष पत्रकार हैं ही नहीं।
    Like · Reply · 5 hrs
    • Urmilesh Urmil आप बिल्कुल सही हैं। मैं 'निष्पक्ष पत्रकार' न कभी था, न होना चाहता था। निष्पक्ष का क्या मतलब होता है, जिसका कोई पक्ष न हो। मेरा हमेशा एक पक्ष रहा है, मैं पीडि़त मानवता के पक्ष में खड़े रहने की हमेशा कोशिश करता रहा। इस कोशिश में अपना निजी तौर पर काफी कुछ...See More
      Like · Reply · 2 · 2 hrs · Edited
  • Ram Kumar आप ने सही कहा.
    Like · Reply · 1 · 4 hrs
  • Abhiranjan Kumar लगता है सर मेरी तरह आप भी उन्हीं लोगों में से हैं, जिन्हें निराशा की बातें किए बिना रातों को नींद नहीं आती।
    Like · Reply · 1 · 3 hrs
  • Girijesh Vashistha प्रधानमंत्री वाली गरिमा भी नहीं थी. राजनीतिक रैली वाली शैली थी.
    Like · Reply · 2 · 3 hrs
  • Deepak Goswami ऊंची दुकान थी और फीके पकवान smile emoticon
    Like · Reply · 1 · 3 hrs
  • Chandra Bhushan मोदी जी के बारे में तो यही कहेंगे कि एक (अटल जी) कविता सुनाते थे, दूसरे कहानी सुनाते हैं।
    Like · Reply · 1 · 2 hrs
  • Neeraj Rai और इनसे पहले वाले न सुनाते और ना ही सुनते थे। बस देखते रहते थे ....चाहे कुछ भी होता रहे।
    Like · Reply · 1 · 2 hrs
  • Vishnu Rajgadia क्या वो नमरूद की खुदाई थी।
    बंदगी में मेरा भला न हुआ।
    Like · Reply · 1 hr
  • Lalit Tewari Purana ek geet hai.. .hum honge kaamyaab ek din.. .lekin wo din kab aayega
    Like · Reply · 1 hr
  • Lalit Tewari Agar modi Fidel castro ko hi follow kar le to naiyya paar lag jaayegi.. .
    Like · Reply · 1 hr
  • Shravan Shukla क्या 2013 तक भी यही ख्यालात थे?
    Like · Reply · 28 mins

No comments:

Post a Comment