कुछ भी ऐसा नहीं था, जिससे प्रभावित हुआ जा सके। मुझे तो कोई नया विजन नहीं दिखा। कुछ पुराने, पहले ही छप चुके आंकड़े थे, कुछ रैलियों में बोले जाने वाले जुमले थे और बिहार चुनाव के मद्देनजर गरीबों के हमदर्द होने के कुछ दावे थे। कारपोरेटपरस्त सरकार होने के आरोपों को झटकने की कोशिश थी। और क्या था?
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