उत्तराखण्ड में जल जंगल जमीन कारपोरेट कम्पनियों को सौंपने का एक और कारनामा। अपने ही खेत पर कम्पनियों के लिए बंधुआ खेती करेंगे किसान।
इसीतरह बंगाल के महान मनीषियों ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के राज में नील की खेती को किसानों के लिए लाभदायक बताने में भारत से लेकर इंग्लैंड में महारानी के दरबार तक में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। किसान अनाज तक उगा नहीं सकते थे।
निलकर साहबों की वापसी धूम धड़ाके से हो रही है।
इस बंधुआ खेती के खिलाफ नील विद्रोह से भारत मे
किसामन विद्रोह औऱ आन्दोलनपन का सिलसिला शुरू हुआ जो आज भी जारी है। उत्तराखण्ड के रंग बिरंगे हुक्मरान इतिहास शायद नहीं पढ़ते। कमाने से फुर्सत नहीं मिलती।
इसीतरह बंगाल के महान मनीषियों ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के राज में नील की खेती को किसानों के लिए लाभदायक बताने में भारत से लेकर इंग्लैंड में महारानी के दरबार तक में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। किसान अनाज तक उगा नहीं सकते थे।
निलकर साहबों की वापसी धूम धड़ाके से हो रही है।
इस बंधुआ खेती के खिलाफ नील विद्रोह से भारत मे
किसामन विद्रोह औऱ आन्दोलनपन का सिलसिला शुरू हुआ जो आज भी जारी है। उत्तराखण्ड के रंग बिरंगे हुक्मरान इतिहास शायद नहीं पढ़ते। कमाने से फुर्सत नहीं मिलती।
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