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Saturday, May 23, 2015

Satyendra Murli आईआईएमसी में हॉस्टल और अटेंडेंस की लड़ाईः सामाजिक न्याय V/S लिंगभेद की नीति


आईआईएमसी में हॉस्टल और अटेंडेंस की लड़ाईः 

सामाजिक न्याय V/S लिंगभेद की नीति
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भारतीय जन संचार संस्थान में लगाई गई आरटीआई से मिली सूचनाओं और एप्लीकेशन के बदले मिले जबावों के आधार पर नई एप्लीकेशन लगाई...संस्थान को असंवैधानिक गतिविधियों में लिप्त बताते हुए महानिदेशक को अवगत कराया कि संस्थान ने लिंगभेद की नीति बनाकर सामाजिक न्याय को दरकिनार कर दिया है...सभी हॉस्टल्स को सिर्फ लड़कियों तक ही सीमित कर दिया गया है...हॉस्टल्स में रूम खाली पड़े होने के बावजूद लड़कों को नहीं दिये जा रहे हैं...जबकि इन हॉस्टल्स में दिल्ली-एनसीआर की लड़कियों की भी कोई कमी नहीं है...एक कमरे में एक ही लड़की रह रही है, जबकि दो आराम से रह सकती हैं...और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन हॉस्टल्स में अनुसूचित जाति से हिंदी पत्रकारिता की एक भी लड़की नहीं है...अनुसूचित जाति/जनजाति के स्पेशल कंपोनेट प्लान की सरासर अवहेलना भी की जा रही है...ऐसे में, एससी-एसटी के छात्रों को हॉस्टल जरूर दिया ही जाना चाहिए...इस पर महानिदेशक ने संस्थान कमिटी की मीटिंग बुलाकर इन सभी मुद्दों पर बातचीत की...इसके बाद हॉस्टल्स का सर्वे किया गया...संस्थान कमिटी ने महानिदेशक को बताया कि अभी इतने कमरे खाली नहीं हैं कि सभी लड़कों को हॉस्टल्स में रखा जा सके और बीच सेशन के दौरान लड़कियों को डिस्टर्ब नहीं किया जा सकता...तो इस पर कम कमरों वाला एक हॉस्टल लड़कों को दिया जाना तय हो गया और इसकी प्राथमिकता पर थे एससी-एसटी छात्र...तब कुछ सवर्ण लड़कियों के हवाले से कहा गया कि उन्हें लड़कों से ड़र लगता है, ऐसे में हॉस्टल में लड़कों को नहीं रखा जाना चाहिए...इनमें वे लड़कियां भी शामिल थीं, जो रात-रात भर हॉस्टल से गायब रहती थीं...धूर्त और ब्राह्मणवादी-जातिवादी लोगों ने क्लासरूम में आकर दिल्ली-एनसीआर तक की लड़कियों को हॉस्टल्स के खाली कमरों में भर दिया, ताकि अगली चिट्ठी में जबाव दिया जा सके कि हॉस्टल में पर्याप्त रूम खाली नहीं है...महानिदेशक को इस पूरी घटना से अवगत कराया तो उन्होंने वादा किया कि अगले साल से छात्रों को हॉस्टल जरूर दिया जाएगा और फिर बाद में दिया भी गया...इसके बाद एक अन्य ब्राह्मणवादी-जातिवादी घटना से अवगत कराते हुए महानिदेशक को ये बताया कि अटेंडेंस की रेबड़ी अनुसूचित जाति के छात्रों को नहीं दी जा रही है और कहा जा रहा है कि इसका जबाव वेद-पुराणों में जाकर ढूंढ़ों...तो महानिदेशक ने कहा कि संस्थान में ऐसा कुछ भी नहीं होता है...इसके बाद हुआ ये कि पहले टर्म की परीक्षा में तीन अनुसूचित जाति के छात्रों को परीक्षा से बाहर कर दिया गया...जबकि जो सवर्ण स्टूडेंट जो कि संस्थान में न क बराबर ही दिखाई दिये थे, उन्हें अटेंडेंस की रेबड़ी दी गई और उन्होंने परीक्षा भी दी...तब फिर से महानिदेशक से जाकर मिला और इसका जबाव मांगा, लेकिन उनके पास कोई जबाव नहीं था...फिर उन्होंने दूसरे टर्म की परीक्षा के लिए संस्थान की कक्षाएें बढ़वाई गईं, ताकि स्टूडेंट परीक्षा से वंचित न रहें. (अगली किस्त आईआईएमसी में फीस और प्लेसमेंट की लड़ाई)
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