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Saturday, May 2, 2015

महोदय! नेपाल कम से कम अभी तक सार्वभौमिक राष्ट्र है

महोदय! नेपाल कम से कम अभी तक सार्वभौमिक राष्ट्र है


नई दिल्ली। एक विशेष बात का जिक्र करना बहुत जरूरी है, कि भूकंप के दो दिन बाद नेपाल सरकार द्वारा गुपचुप तरीके से देश में ‘राष्ट्रीय आपातकाल’ लगा दिए जाने और काठमांडू में विदेशी भारतीय सेना बुला लिए जाने की जानकारी देश के राष्ट्रपति डॉ. राम बरन यादव तक को नहीं दी गयी, जबकि अंतरिम संविधान 2006
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नेपाल भूकंप पर विशेष रिपोर्टिंग
के अनुसार, वे देश के राष्ट्र प्रमुख भी हैं। बिना उनकी और सलाह और प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति व विपक्षी दलों की आम राय लिए बगैर भूकंप के आने वाले दिन में शाम को मानवीय राहत कार्य के नाम परकाठमांडू एअरपोर्ट में भारतीय आर्मी के सैन्य हेलीकाप्टर व जहाजों का बेड़ा उतर पड़ता है, काठमांडू एअरपोर्ट को भारतीय सेना के 9 बडे हरकुलिस जहाज लैंड करके कब्जे जैसी स्थिति में ले आते हैं। क्योंकि काठमांडू एअरपोर्ट में मात्र इतने जहाजों को लैंड करने की क्षमता है। उसी शाम से अगले दिन तक लगातार चीन द्वारा भेजी गयी राहत सामग्री को लेकर आने वाला जहाज को लैंड नहीं करने देने के पीछे आखिर कौन सी रणनीति है। केवल चीन ही नहीं बल्कि थाईलैंड, अजरबैजान, स्पेन के जहाजों को भी काठमांडू एअरपोर्ट में लैंड करने से मना कर दिया गया। फलतः चीन से आये राहत सामग्री (खाद्य व औषधि), मेडिकल दल और आपदा प्रबंधन के लिए विशेष रूप से निर्मित दर्जनों रोबोट मशीनों से भरे जहाज को तिब्बत के केरुंग एअरपोर्ट में लैंड करना पड़ा।
भारतीय सेना द्वारा काठमांडू के अंतर्राष्ट्रीय एअरपोर्ट को कब्जे में लेने के बाद उस पर मुहर लगाने के लिए नेपाल सरकार के प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करायी जाती है। इस बात पर नेपाली राष्ट्रपति ने नेपाली मीडिया में सरेआम नाराजगी जाहिर की और कम्युनिस्ट गृह मंत्री बाम देव गौतम को भी तलब किया, जिस पर मंत्री महोदय राहत कार्य में फँसे होने का बहाना बना कर बात को टाल गए। फलतः इस नाफ़रमानी पर राष्ट्रपति स्वयं सिंह दरबार स्थित गृह मंत्रालय गए; लेकिन उसी शाम प्रधानमंत्री कोइराला के विदेश भ्रमण से वापस आने के बाद मामला रफा-दफा कर दिया गया। लेकिन भारतीय मीडिया में से किसी भी चैनल और अखबार ने इसको बताना जरूरी नहीं समझा।
इसी बीच 27 अप्रैल को चीन सरकार ने कम्युनिस्ट गृह मंत्री बामदेव गौतम को 24 घंटे के भीतर भूकंप से सबसे ज्यादा प्रभावित पहाड़ी जिले सिन्धुपालचौक के सबसे विकट क्षेत्र अरनी में अवरुद्ध सड़क मार्ग को खोलने का प्रस्ताव दिया, जिससे छोटे-छोटे हेलीकॉप्टरों की मदद से सुदूर इलाकों में तत्काल राहत और बचाव कार्य शुरू हो सके और मानवीय क्षति कम से कम की जा सके, लेकिन 4 दिन बीत जाने के बाद भी मंत्री गौतम ने कोई जवाब नहीं दिया।
बात यहीं तक नहीं रूकती, भारतीय सेना के जनरल रैंक के अधिकारी की अगुवाई में देश के उत्तरी छोर पर स्थित दूसरे बडे विमान स्थल जो एक बड़ा पर्यटकीय क्षेत्र भी है, पोखरा एअरपोर्ट पर भी भारतीय सैन्य जहाज राहत व आपदा प्रबंधन के नाम पर उसे अपने कब्जे में ले लेते हैं। यहाँ से राहत और बचाव कार्य के नाम पर भारतीय सैन्य जहाज चीन की सीमा पर स्थित भूकंप प्रभावित पहाड़ी जिले रसुवा में दर्जनों उड़ाने भरते हैं, जिस पर चीन सरकार के विदेश मंत्रालय ने रोष जताते हुए नेपाल सरकार से इस पर आपत्ति जताई। नेपाल सरकार ने भारत सरकार को चीन के इस आपत्ति जाहिर करने की प्रक्रिया से मामला सतह पर आया, जिसकी नेपाली मीडिया ने विशेष तौर पर चर्चा की, लेकिन भारत में इस मामले को दूसरा रूप देकर यह कहा गया कि भूकंप के बाद राहत और बचाव कार्य को लेकर चीन और भारत में किसी किस्म की प्रतिद्वंदिता नहीं है। यह बात अब जग जाहिर हो चुकी है कि नेपाल के प्रधानमंत्री कोइराला को दोपहर 11.56 को देश में आये भूकंप की जानकारी भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ट्वीट से मिली, वो भी मोदी ने इस त्रासदी पर अपना ट्वीटर सन्देश शाम को लिखा।
यह पूरी परिघटना यह सिद्ध करती है, कि भूकंप परिघटना के बाद नेपाली शासक वर्ग ने भारत सरकार के सामने कितने नंगेपन के साथ आत्म समर्पण किया है। नेपाल कम से कम अभी तक सार्वभौमिक राष्ट्र है; राहत व बचाव के बहाने से देश के राष्ट्रीय एअरपोर्ट पर सैन्य जहाज बिठाकर भारत ने केवल नेपाल की सार्वभौमिकता को ही नहीं कुचला, इसके अलावा बिभिन्न देशों से आ रही सहायता को काठमांडू एअरपोर्ट में जगह न होने का बहाना बनाते हुए बाधित ही नहीं बल्कि मानवीय राहत कार्य खाद्य और औषधि सामग्री को जरुरतमंद लोगों तक समय पर न पहुँचने देने का प्रयास किया। भूकंप से राहत प्रबंधन का पूरा श्रेय भारतीय सैन्य दल को मिले, इसके लिए बाकायदा एअरपोर्ट में “मोदी सरकार जिंदाबाद! नेपाल सरकार हाय हाय!!” जैसी नारेबाजी लगभग सभी भारतीय टीवी चैनल में प्रसारित करने के पीछे आखिर और क्या वजह हो सकती है।
भारतीय टीवी चैनल एबीपी व एएनआई और मोदी सरकार की करतूतों पर भारतीय पत्रकार निमेश श्रीवास्तव द्वारा किया गया सन्देश (जिसका स्क्रीन शॉट सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है) यह साफ़ दिखाता है।
इस सन्दर्भ में आजकल विपक्ष में बैठे कैश माओवादी के नेता व भूतपूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड और कल तक उनके गुरु पर अब उनकी पार्टी से टूट चुके डैश माओवादी नेता किरण ने भारत पर भूकंप के बाद मानवीय राहत प्रदान करने के बहाने देश में विदेशी सेनाओं की उपस्थिति (इशारा भारतीय आर्मी) ‘सार्वभौमिकता के संकट में पड़ जाने’ की बात दोहराई है। इसी सन्दर्भ में नेपाल मजदूर-किसान पार्टी के नेता नारायण मान बिजुक्छे ने देश में राहत कार्य में तैनात एक भारतीय ब्रिगेडियर की पत्नी की नेपाली नौकरशाहों को दी गयी एक धमकी का उल्लेख किया है, जिसमे कहा गया है कि इस भारतीय ब्रिगेडियर का परिवार भूकंप से पीड़ित 5 परिवारों को राहत प्रदान करने के लिए गोद लेने की जिम्मेवारी लेने को तैयार हैं, लेकिन यदि शीर्ष नेपाली अधिकारी इस पर राजी न हुए तो काठमांडू में तैनात महामहिम भारतीय राजदूत से इसकी वे शिकायत करेंगे।
इतनी बड़ी मानवीय त्रासदी से उपजे दुख व पीड़ा के बीच भी भारतीय सत्ता धारी (नेपाल में भूकंप को कवर करने गए भारतीय मीडिया समूह इसकी एक मुख्य धुरी बन कर उभरे हैं) वर्ग का वर्चस्ववादी चेहरा जिसे वहां कि लगभग सभी कम्युनिस्ट पार्टियाँ ‘विस्तारवादी भारत’ के रूप में समझती आयीं है (भले ही ‘संसद-संसद खेलने के बाद’ भारत मित्र हो जाय)। इस त्रासदी पर लगभग सभी नेपाली अखबार और पत्रकार रोष में है, और वे यह सवाल लगातार कर रहे हैं कि एक गरीब पर अभी तक सार्वभौम देश नेपाल के 80 लाख लोगों के दुख से भारत के प्रधानमंत्री मोदी वाकई द्रवित हैं, अथवा मात्र प्रचार कर रहे हैं?
इसी बीच भारतीय विदेश सचिव की कल की नेपाल यात्रा का सन्देश यह है कि भारत अपने ‘छोटे भाई’ नेपाल को इस तबाही से वापस उबारने (इसमें 15 से 20 साल लग सकते हैं) और सड़क यातायात को पटरी पर लाने के लिए वर्तमान नेपाली सरकार (कांग्रेस व माले-कम्युनिस्ट) व विपक्षी दलों को को ‘कमीशन’ के जादुई हथियार से मनाकर भारतीय कंस्ट्रक्शन कंपनियों को टेंडर दिलाने में लगा हुआ है। इसी सन्दर्भ में 1 मई को नेपाली पत्रकार सुनीता शाक्य द्वारा ‘भारतीय मीडिया को एक खुला पत्र’ जारी करना तो एक बानगी बस है। इस पत्र में उन्होंने 10,000 से भी कहीं ज्यादा की मानवीय क्षति से उत्पन्न असीम बेदना के साथ भारतीय राज्यसत्ता के मोदी संस्करण के भोंपू बन भूकंप के बाद बचाव व राहत से जुडी खबरें लेने आये भारतीय मीडिया पर देश की सार्वभौमिकता को लतियाने और घूमने-मौज कर पर्यटकीय सम्बेदना दिखाने का आरोप लगाया है।
पवन पटेल

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About The Author

पवन पटेल, लेखक जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में पीएचडी हैं और आजकल वे ‘थबांग में माओवादी आन्दोलन’ नाम से एक किताब पर काम कर रहे हैं; वे भारत-नेपाल जन एकता मंच के पूर्व महा सचिव भी रह चुके हैं।

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