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Saturday, May 2, 2015

कहीं, दुश्मनी में न बदल जाए ये ऑपरेशन मैत्री !!!

कहीं, दुश्मनी में न बदल जाए ये ऑपरेशन मैत्री !!!


ऑपरेशन मैत्री की जमीनी सच्चाई कुछ और ही है

नई दिल्ली। नेपाल भूकंप में राहत व बचाव कार्यों को लेकर नेपाली जनमानस में भारत विरोधी माहौल बन रहा है, जिसके लिए भारतीय मीडिया और सरकार की हिंदुत्ववादी राजनीति जिम्मेदार मानी जा रही है। नेपाली मीडिया भारतीय वर्चस्व की शिकायत कर रहा है। इस रपट में  पवन पटेल नेपाल के ताजा हालात पर प्रकाश डाल रहेहैं।
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This is reported in Chitwan district main city
 यह एक तथ्य है कि भारत और नेपाल के रिश्ते सामाजिक व सांस्कृतिक धरातल पर एक भारत व नेपाल के ‘दोस्ताना सामाजिक-सांस्कृतिक’ संबंधों के बीच चीन एक ऐसा पेंच है, जिसको लेकर नेपाली कुलीन वर्ग और आम जनता में कोई असमान ग्रंथि नहीं है, जबकि नेपाली शासक वर्ग विगत के 65 वर्षों से भारत के स्वतंत्र हो जाने बाद से ही, दबी जुबान से ही सही, भारतीय वर्चस्व के ‘बिग ब्रदर मानसिकता’ की शिकायत करता रहा है। वहीं इसके बरअक्स आम जनमानस के सोशियोलॉजिकल इमेजिनेशन में देश के ब्रिटिश भारत के साथ 1816 के युद्ध में हार से उपजी अपमानजनक सुगौली संधि के बाद से अर्ध-उपनिवेश और फलतः संरक्षित राज्य बन जाने के कारण ‘गुलाम हो जाने’ की पीड़ा। नेपाल में 25 अप्रैल को आया भूकंप एक ऐसा अवसर है जो भारत-नेपाल के सदियों पुराने असमान रिश्ते को और भी खुले रूप में प्रगट करता है।
नेपाल में भूकंप की त्रासदी एशिया के सन्दर्भ में मानव इतिहास की एक बड़ी आपदा में से एक के रूप में दर्ज हो गयी है। अभी तक संसार भर के 54 देशों की टोलियाँ राहत और आपदा प्रबंधन में लगी हुई हैं। भारत और चीन भूकंप के तत्काल बाद से त्वरित गति से प्रतिक्रिया देने और राहत/बचाव कार्य में टोलियाँ भेजने वाले नेपाल के सबसे निकटतम पडोसी साबित हुए हैं। नेपाली सरकार त्रासदी के पहले दिन से लेकर अभी तक बिलकुल अक्षम साबित हो रही है। एक हफ्ते हो गए हैं और अभी तक भूकंप से जबरदस्त रूप से प्रभावित काठमांडू के बाहर के ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों तक सरकार की पहुँच न के बराबर ही हो पायी है। कुछ इलाकों में हेलीकॉप्टरों से खाद्य पैकेट गिराने तक यह मिशन सीमित है। हाँ यह जरूर है, नेपाली सेना और सशत्र पुलिस बलों के 90 प्रतिशत जवान इस राहत और बचाव कार्य में मुस्तैदी से लगे हुए हैं।
भारत ने 26 अप्रैल से ही नेपाल में मानवीय कार्य के लिए ‘ऑपरेशन मैत्री’ शुरू किया है। भारतीय मीडिया के अनुसार, इस आपरेशन मैत्री के तहत भारत सरकार ने 14 मेडिकल टीमें (हर एक में करीबन 20 डॉक्टरों का समूह), 16 राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन दल, 12 आर्मी के इंजीनियर दल और भारतीय सेना, वायुसेना, नेवी, और सीमा सशस्त्र बल के करीबन 1000 जवान राहत कार्य के लिए भेजे हैं। साथ में राहत सामान और घायलों को लाने ले जाने के लिए 3 ट्रांसपोर्ट सैन्य हवाई जहाज, 17 हेलीकॉप्टर और सशस्त्र सीमा बल की कई दर्जन गाड़ियाँ भेजी हैं। नेपाल को लेकर भारतीय शासक वर्ग कितना चिंतित है, उसका इशारा प्रधानमंत्री मोदी के आल इंडिया रेडियो से प्रसारित कार्यक्रम ‘मन की बात’ से जाहिर होती है, जिसमे उन्होंने कहा कि नेपाल के इस संकट की घड़ी में भारत के 125 करोड़ लोग साथ में खड़े हैं, क्यूंकि नेपाल हमारे लिए अपने परिवार जैसा है’।
लेकिन ऑपरेशन मैत्री की जमीनी सच्चाई कुछ और ही है। नेपाली मीडिया की कई खबरों के मुताबिक, भारत से मात्र 180 लोग का सैन्य दस्ता ही बचाव कार्य में लगा हैं, और इन सब का केंद्र काठमांडू ही है। काठमांडू से बाहर के इलाकों में भारतीय दलों ने जाने में रूचि नहीं दिखाई है, फलतः नेपाली सैन्य बल चीन, ब्रिटेन, नार्वे, कनाडा, फ्रांस, अमेरिका, जर्मन, स्पेनिश, स्विस, पाकिस्तान इत्यादि देशों व कई अंतरराष्ट्रीय बचाव दलों के साथ काठमांडू से बाहर के इलाकों में अभियानों में लगी हुई है। गोरखा, सिन्धुपाल चौक, नुवाकोट, धादिंग, काभ्रे, ओखलाढुंगा, दोलखा, रसुवा और सोलुखुम्बू जैसे जबरदस्त प्रभावित पहाड़ के जिलों के अलावा और कम से कम दर्जन भर दुर्गम पहाड़ी जिलों में गाँव के गाँव जमीदोंज हो चुके हैं, लोग अभी तक खुले आसमान के नीचे रहते हुए बिलकुल बेबसी वाली जिन्दगी जीने को मजबूर हैं। लेकिन भारत से आया हरकुलिस जहाज और हेलीकॉप्टर केवल नेपाल में फंसे भारतीय नागरिकों को वापस लाने में लगे हुए हैं। 25 अप्रैल की शाम 1400 कम्बल लेकर आया यह भारतीय जहाज केवल और केवल पर्यटन के लिए आये भारतीय नागरिकों को घर वापस पहुँचाने में लगा हुआ है।
नेपाली अख़बारों में यह तथ्य बड़े पैमाने पर चर्चित हुआ है, जिसे एक प्रमुख नेपाली दैनिक नागरिक (जिसे भारतीय सरकार के बहुत करीब बताया जाता है) ने भी कल 1 मई की अपनी बड़ी खबर ‘भारतीय सेना: उड़ान बढ़ी, उद्धार कम’ बनायीं थी। यानि मानवीय उद्धार के लिए भेजे गए भारतीय सेना के जहाज तथा हेलीकाप्टर सुदूर इलाकों में खाद्य पदार्थ बांटने में काठमांडू एअरपोर्ट से सबसे ज्यादा उड़ाने भर रहे हैं, लेकिन सुदूर इलाकों में ध्वस्त हुए मकानों में फँसे घायल लोगों को सुरक्षित निकालने में वे बिलकुल भी सक्रियता और चिंता नहीं दिखा रहे।
नागरिक दैनिक की इस रिपोर्ट के मुताबिक, नेपाल के सुदूर इलाकों में गुरुवार तक भारतीय सेना के 6 हेलीकॉप्टरों ने अब तक 111 उड़ाने भरी हैं। भारत से आये हेलीकॉप्टरों की संख्या 17 है, जिसमें से 2 तत्काल वापस भारत भेज दिए गए, बाकि के 9 हेलीकाप्टर ख़राब होने की वजह से भारतीय सेना ने ठीक करा कर राहत कार्य में लगाने में कोई रूचि नहीं दिखाई है। प्रत्येक हेलीकॉप्टर में चालक सहित 6 से 7 लोग सवार हो सकते हैं, जिनमे से भारतीय हेलीकॉप्टरों ने 88 नेपाली और 62 विदेशी नागरिकों को सुरक्षित निकाला है, और इसी अवधि तक नेपाली सेना ने 64 उड़ानें भर कर 199 नेपाली और 17 विदेशी नागरिकों को सुरक्षित जगह पहुँचाया। राहत व बचाव कार्य के नाम पर भारतीय सेना के हेलीकॉप्टर, भारतीय मीडिया चैनल व पत्रकारों को लेकर सुदूर इलाकों की ‘एक्सक्लूसिव रिपोर्ट’ करवाने का काम कर रहे हैं। लेकिन भारतीय मीडिया में हर कहीं नेपाल में जगह-जगह पर उसके बचाव कार्य में लगे होने का ढिंढोरा पीटा जा रहा है, यहाँ तक कि अपने को ‘निष्पक्ष’ कहने वाली लोकप्रिय बीबीसी हिंदी रेडियो तक में। 
पवन पटेल
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About The Author

पवन पटेल, लेखक जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र बिभाग में पीएचडी हैं और आजकल वे ‘थबांग में माओवादी आन्दोलन’ नाम से एक किताब पर काम कर रहे हैं; वे भारत-नेपाल जन एकता मंच के पूर्व महा सचिव भी रह चुके हैं।

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