पलाश विश्वास
यूजीसी के कार्यक्रम में साहित्य,सामाजिक यथार्थ,हाशिये के लोग और प्रेरणा अंशु के मिशन पर संवाद के लिए देश विदेश के अंग्रेजी साहित्य के प्राध्यापकों का आभार।
आज बेहद थका हुआ हूँ। अरविन्द और अभिजीत के निधन के बाद ज्योतिनाथ भी नहीं रहे।
कल जयपुर से प्रेरणा अंशु आये हिंदी के 85 साल के प्रसिद्ध साहित्यकार हेतु भारद्वाज जी से लम्बी बात हुई।एक दो दिन में शेयर करता हूँ।
ज्योतिनाथ की अंत्येष्टि शुरू होते ही मुझे दफ्तर लौटना पड़ा। यूजीसी के कार्यक्रम के तहत देश विदेश के अंग्रेजी प्राध्यापकों को सम्बोधित करने के लिए।
इधर अंग्रेजी में संवाद का अभ्यास नही है। शुरू में थोड़ी हिचक और जड़ता थी।
अकादमिक भाषण था और ग्लोबल ऑडिएंस, इसलिए नाप तौलकर बोलना पड़ा।
हमारे मिशन और सरोकार से लेकर पुलिनबाबू के जीवनसंघर्ष, साहित्य की चुनौतियाँ,सामाजिक यथार्थ के बदलते रूप,जाति, नस्ल,वर्ग,पितृसत्त्ता,बोली ,भाषा, रेनेसां,बंगाल का नवजागरण, यूरोप,अमेरिका की क्रांतियों,रूस चीन की क्रांतियों,आदिवासी विद्रोहों और किसान आंदोलनों के संदर्भ में साहित्य की भूमिका पर विस्तार से बातें रखीं।
हमने सामाजिक यथार्थ के साथ अर्थव्यवस्था, पर्यावरण,ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु न्याय को भी जोड़ने की दलीलें रखीं। अभिव्यक्ति के संकट,असहमति और असहिष्णुता,असमानता,अन्याय,दमन और शरणार्थी,विस्थापन पर भी अपनी बातें रखीं।
आदिवासी,स्त्रीमुक्ति,पिछड़ा और दलित साहित्य की भी चर्चा की।
प्रेरणा अंशु के हमारे मिशन और महत्वपूर्ण अंकों के साथ वंचितों की हिस्सेदारी पर भी प्राध्यापकों ने धैर्य से हमारी बात सुनी। प्रश्नोत्तर सेशन घण्टेभर चला।
दिनेशपुर जैसी छोटी सी जगह में चल रहे हमारे प्रयास का अंग्रेजी विद्वत समाज और यूजीसी,मुम्बई विश्व विद्यालय ने इतना महत्व दिया,यह प्रेरणा अंशु परिवार की संस्थागत उपलब्धि है।
हिंदी समाज में और खासतौर पर हिंदी पट्टी में हमें इतनी ही वरीयता मिले और आप सभी का सहयोग जारी रहे,तो शायद हम बेहतर काम कर सकेंगे।
इस कार्यक्रम का वीडियो मुम्बई विश्वविद्यालय से मिलते ही शेयर करूँगा ताकि इस पर हिंदी में भी संवाद किया जा सके।
आज इससे ज्यादा लिख नहीं सकता।
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