Sustain Humanity


Monday, June 29, 2015

वैदिकी देवभाषा समय में राजकरण का नग्नता सौंदर्यशास्त्र और अखंड बलात्कार संस्कृति प्रजाजनों को नंगेपन का अभ्यास है बलात्कार अभ्यस्त हैं प्रजाजन फिर क्यों चीखें? पलाश विश्वास

वैदिकी देवभाषा समय में राजकरण का नग्नता सौंदर्यशास्त्र

और अखंड बलात्कार संस्कृति

प्रजाजनों को नंगेपन का

अभ्यास है

बलात्कार अभ्यस्त हैं

प्रजाजन

फिर क्यों चीखें?


पलाश विश्वास

यकीन कर लो दोस्तों

कि बंधी नदियों में जल नहीं कहीं

कि प्यास जिस तरल से बूझाते हम

वह भी आखेर पानी नहीं यकीनन


जो मानसून मूसलाधार

वह भी बरसाता खून

खून सींचे हैं राजमार्गे सारे

राजपथ खून से लथपथ

स्त्री योनि खुन से लबालब

स्त्री आखेट वैदिकी संस्कृति

वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति


हम जानते हैं झूठ के

कारोबार के जन्नत सारे

वे सारे हसीन नजारे

जहां हर मसीहा चूजों का

सप्लायर है या फिर खुदै

चूजों के शौकीन

शक्लो सूरत जलहस्ती का

गुलाब को मसले हैं


हिमालय के अंतःस्थल में

समुंदर कोई खौल रहा है

खबर किसी को नहीं है

ज्वालामुखी तमाम भूमिगत

खबर किसी को नहीं है

मरे हुए ख्वाब फिर

जिंदा होते हैं कभी न कभी

बारुद की पैदाइश होती है

आखिर खुदकशी के लिए


बोलांगीर खामोश है फिर

खामोश दंतेवाड़ा

खामोशी का जलजला है

कश्मीर से कन्याकुमारी तक

जो जल रहा है कश्मीर

जो जल रहा है असम

जो पिघल रहा है हिमालय

जो डूब में तब्दील सारा देश

आखेटगाह की कोई

खबर लेकिन कहीं नहीं है


सुर्खियां हैं महज

चुनावी समीकरण वास्ते

विज्ञापनों के सिलसिले में

दफन लेकिन सच का जलजला

खबरों में नहीं नागौर कहीं

और खबरों में है पुरखौती

और सलवाजुड़ुम

और आफसा



या फिर आईपीएल कैसिनो

या फिर लंदन से जारी

ट्वीट का सिलसिला

असल खबरे सिरे से लापता है

बाकी मंकी बातें हैं

गोपनीयता कानून है

आधिकारिक झूठ है


गोपनीयता के कानून

देवभाषा और दस दिगंती

नग्नता का सौंदर्यशास्त्र

बहुआयामी इंद्रधनुष

सिर्फ आधिकारिक झूठ

का सिलसिला बेइंतहा


सिर्फ राजधानियों की

खबरें और जी हलकान

जो पूरा सच होता नहीं कभी

आधा सच आधा फसाना

वो तरन्नुम वो तराना


सच के वादियों में

कोई भूलकर रखे ना कदम

और झूठ के कारीगर गढ़ते

जम्हूरियत के ताजमहल

सबसे बड़ा डर यह कि

फिर सेंसरशिप होगी

या आपातकाल का गोल्डन एरा

संगीतबद्ध,आखिर में खत कोई

अनुरोध की रस्म अदायगी

यही है राजकरण नंगा


आदिम गंध से महकती

तानाशाह सभ्यता

बलात्कार का सिलसिला

यह मुक्त बाजार

थमता नहीं खैरांजिल

का सिलसिला



उनके नाम नहीं छपते

जो होते शिकार

ताकि आखेट का मकसद

हो नहीं उजागर और

पता भी न चले कि

वर्ग वर्ण की

किस दहलीज का कौन सांढ़

छुट्टा कि बंधा कहां कहां

रौद रहा इज्जत की जमीन


फिर वही राजधानियों की

खबरे सनसनीखेज

तख्तोताज के नंगे किस्से

जिनमें दाने दाने को मोहताज

आम लोगों का सच दफन

जिसमें दाने दाने का हिसाब दफन

अस्मत का हिसाब किताब दफन

और फिर वहीं गोपनीयता

हत्याओं और बलात्कारों का सच छुपाने खातिर


वियतनाम लातिन अमेरिका

अफ्रीका और मध्यपूर्व

मध्यबिहार या मध्यभारत

या फिर कश्मीर

रंगभेदी नरसंहार का

यह भूगोल अकंड महाभारत

अबाध मनुस्मृति शासन

अबाध अखंड पूंजी प्रवाह

अबाध अखंड दमन तंत्र के हक में

अधं धर्म राष्ट्रीयता

और शत प्रतिशत एजंडा।


वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति।

देवभाषा समय है और राजकरण नंगा है,

एकदम आदमजात नंगा।

इसमें शर्म काहे की।

शिकायत काहे की।

अखंड बलात्कार संस्कृति के

अखंड महाभारत के

हम हुए प्रजाजन

प्रजाजनों को नंगेपन का

अभ्यास है

बलात्कार अभ्यस्त हैं

प्रजाजन

फिर क्यों चीखें?


अभी हम महानगर के बाहर कामवास्ते आते जाते हैं।

शाम ढलते न ढलते रवानगी।

देर रात को घर वापसी।

कल तक हम थे

महानगर के बीचोंबीच

जहां आधी रात के बाद

जागता है सिर्फ सोनागाछी


वे बेबस लड़कियां

मुकद्दर की मारियां

उतनी नंगी नही होतीं

कहीं भी,न सोनागाछी में

और न जीबीरोड पर

और न फाकलैंड में

जितन नंगी बेनकाब है

वह सत्ता जिसके गुलाम हम

आजादी और जम्हूरियत के जश्न मनाते


पारदर्शी कपड़ों मे है हर कोई

हर किसीकी सूटदेखो जी

हर किसी का बूट देखो जी

अमेरिकी चीनी टोपी देखो जी

खींसे में बिलियनों देखो जी


किसका किससे लिवइन है

कौन करें किसके साथ हानीमून

कौन किसके साथ भागे हैं

जनता को मालूम हैं सारे किस्से


फिरभी लाचार है जनता

क्योंकि चुप्पियों में खामोश

ज्वालामुखी तमाम

जो फटेंगे कभी न कभी

फटेंगे यकीनन फटेंगे


No comments:

Post a Comment