प्रथम गोलमेज सम्मेलन के अंत में, 4 नवम्बर, 1931 को, डा.अम्बेडकर ने अपने पूरक प्रतिवेदन में स्पष्ट शब्दों में लिखा, 'दलित वर्ग' के लोगों को इस 'दलित वर्ग' नाम पर सख्त आपत्ति है। इसलिए नए संविधान में हमें 'दलित वर्गों' की बजाय 'गैर-सवर्ण हिन्दू' या 'प्रोटेस्टेंट हिन्दू' या 'शास्त्र-बाह्य हिन्दू' जैसा कोई नाम दिया जाए।
पुन: 1 मई, 1932 को लोथियन कमेटी को एक प्रतिवेदन में उन्होंने लिखा कि 'आपकी कमेटी के सामने अधिकतर नेताओं ने इस नाम पर आपत्ति की है। यह नाम भ्रम पैदा करता है कि 'दलित वर्ग' कहलाने वाला समाज पिछड़ा और बेसहारा है, जबकि सच यह है कि प्रत्येक प्रांत में हमारे बीच खाते-पीते और सुशिक्षित लोग भी है...इन सब कारणों से 'दलित वर्ग' शब्द प्रयोग बिल्कुल अनुपयुक्त और अवांछित है।'
पुन: 1 मई, 1932 को लोथियन कमेटी को एक प्रतिवेदन में उन्होंने लिखा कि 'आपकी कमेटी के सामने अधिकतर नेताओं ने इस नाम पर आपत्ति की है। यह नाम भ्रम पैदा करता है कि 'दलित वर्ग' कहलाने वाला समाज पिछड़ा और बेसहारा है, जबकि सच यह है कि प्रत्येक प्रांत में हमारे बीच खाते-पीते और सुशिक्षित लोग भी है...इन सब कारणों से 'दलित वर्ग' शब्द प्रयोग बिल्कुल अनुपयुक्त और अवांछित है।'
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