भारतीय पत्रकारिता ज्यों दिखती है, उससे कुछ अधिक है। इसे ढोल पीटने वाले अपने नायकों को महिमामंडित करने के लिए कलम घिसते हैं । नायक पूजा के प्रचार के लिए कभी भी देशहित को इतनी बेवकूफी से दांव पर नहीं लगाया गया । कभी भी भारत में नायक पूजा इतनी अंधी नहीं बनी जितना आज हम भारत में देख रहे हैं । मुझे यह बात कहते हुए खुशी है कि इसके अपवाद भी हैं । पर ऐसों की संख्या बहुत कम है और उनकी आवाज कभी सुनी नहीं जाती ।
-भीमराव आंबेडकर
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