Ashutosh Kumar
सच्ची बात यह है कि नाना पाटेकर से मुझे इस विस्मय की उम्मीद बिलकुल नहीं थी . मुझे हमेशा उनके काम में थोड़ी-सी अतिनाटकीयता लगती थी . जो भी हो , यह तो अब साफ़ है कि नाना के अभिनेता को "नटसम्राट" की इस क्लासिक भूमिका के लिए ही बनाया गया था !इस फ़िल्म में वे पिछले जमाने के लोकप्रिय सिद्ध अभिनेता की भूमिका में हैं. यहां थोड़ी-सी अतिनाटकीयता वरदान बन जाती है .
कुसुमाग्रज के इस प्रसिद्ध नाटक की कथावस्तु से तो सभी परिचित हैं , फिल्म उसे एक नये मंच पर ले जाती है . नाटक में बुजुर्गों और उनेक बच्चों के बीच के जटिल रिश्ते की कथा है. महेश मांजरेकर की इस फिल्म में वह कलाकार और सच्चे इंसानदोस्त इंसान के अनिवार्य अकेलेपन , अवसाद और त्रासदी की महागाथा बन जाती है .
मराठी सिनेमा के जारी वसंत की यह नई करवट है . एक -एक दृश्य आँखों के लिए एक उत्सव है . न देख पाईं हो तो जल्दी कीजिएगा . यह फिल्म शहर में बहुत दिन नहीं रह पाएगी.
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