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Sunday, June 7, 2015

खुल्ला ताला अनाड़ी हलवाहे जमीन की फजीहत

खुल्ला ताला

अनाड़ी हलवाहे

जमीन की फजीहत

पलाश विश्वास

खुल्ला ताला

अनाड़ी हलवाहे

जमीन की फजीहत

मेरे दिवंगत पिताजी पुलिनबाबू यूं तो समाजसेवा के मामले में फुलौफूल होलटाइमर थे बिना वेज के और स्वयंसेवक भी न थे।फिरभी घर पर जितनी देर उनके पांव ठहरने होते थे,वे सीधे खेतों में चले जाते।


कैंसर से रीढ़ की हड्डियां गल रही थीं।

किसी को कानोंकान खबर होने नहीं दी।

न डाकदर और न इलाज।

दौड़ते रहे देशभर और सतात्तर साल की उम्र में भी खेत जोतते रहे।


पिताजी खुद को पक्का हलवाहे कहा करते थे।जबकि बसंतीपुर वाले हम बच्चों पर बेहद बेरहम थे।


ख्वाबो देखते जरुर थे कि पढ़ लिखकर होनहार हम जरुर बनें ,पर नौकरी चाकरी उनकी भैंसोलाजी में न थी और उनहें कतई भरोसा न था कि सचमुच कभी हम किसी काबिल बन सकते हैं।


दस्तखत करना सीख जायें और काम चलाने लायक हिसाब किताब जोड़ लें और भद्रलोक के गुण हों न हों,इंसान जरुर बनें ताकि इंसानियत के खिलाफ कोई जुर्म हम कर न बैठे,हमें पढ़ाने का उनका कुलो मकसद इतना सा था।


तो पढ़ाई हमेशा नंबर दो की प्राथमिकता और खेत खलिहान के आम अव्वल।


हमें तो मार पड़ती थी हमारी शरारतों की वजह से या किसी के पांव न छूने की जिद की वजह से या फिर कामकाज के वक्त पढ़ते लिखते रहने की वजह से।


पिताजी बार बार एक बेहतर हलवाहा बनने के नायाब तरीके बताते रहते तो ताउजी खेत मजदूर के हर गुर सिखाने के लिए अढ़े रहते।


बाकीर गांव वाले कहते रहते,अनाड़ी हलवाहे और जमीन की फजीहत।


एमए पास करने के बाद भी मैंने अपने खेत में हल जोते हैं लेकिन मेरे घरवालों और गांववालों ने कभी नहीं माना कि मैं हल चलाने काबिल भी हूं।


होता भी कैसे,मैं हल चलाता तो बैलों के पांव हल से जख्मी हो जाते।दंराती चलाता तो पांव मेरे अपने जख्मी हो जाते।


खीझ कर वे अक्सर कहते,अनाड़ी हलवाहा,जमीन की फजीहत।

तो हमने भी जिद पकड़ ली कि जमीन की फजीहत न करबे करेंगे और न किसीको करने देंगे।


फिर नौबत ही न आयी कि हम हल चलाते और खेती दक्खिन हो जाती।


किस्सा यह इस वास्ते ताने हैं कि राजकाज भी अनाड़ी चला न सकै हैं और देश की फजीहत हुी जावै है।


अब देखिये कि कैसे फेंकू महाराज लौटकर घर को आवै और फिर कइसन बाहर को धावै।उनका धावा मतबल कि कटकटेला अंधियारा और फिर रेडियोएक्टिव खुल्ला बाजार का सहारा।


जमीन की फजीहत तो हुइबे करै हैं।


अब उन्हें कौन समझावै कि हलवाहे के काम क्या क्या हुआ करै हैं और ससुरा खेत मा हल काहे और कैसे चलावै हैं।


उ महाराज तो बड़का भारी कल्कि महाराज हुआ करै हैं और करे हैं अंधियारे का कारोबार।ख्वाब जगाकर जगमग जगमग रोशन कर दें।बड़ा ही तेज बत्ती का कारोबार है उनरका।


फिर खुल्ला ताला घर हुआ जाये।बाढ़ सुनामी जो कहिये सो हुई जाये।खिड़कियों में ग्रिलो ना हुइबै करै हैे।


विकास का घास खिवायै मुवे को जिंदा करने का करतब जो जानै है तो देख लीजिये कि कंबंध कइसन हरिबोल किये जाये हैं।ससुरे जानते नहीं कि हरिबोल बोल हरिबोल है।


विकास का घास खिवायै मुवे को जिंदा करने का करतब जो जानै है तो देख लीजिये कि बातोबात राम की सौगंध खाते हैं और चारो तरफ खिल जावै कमल कमल।


लाल नील सुसरा हर रंग हो जाये केसरिया और कमाल यह कि रामायण का राम नाम कब  हे राम बनकर जुबान पर आ जावै,घात लगाये बैठी मौत को ही मालूम हुइबे करै हैं।


राम नाम सत्य है,सत्यबोलो गत्य है।


हम सारे लोग अब जनाजे में शामिल हैं।खुल्ला ताला का कमाल ई कि सिर्फ फायदा खासमखास को होवै है।


बाहर जहां जहां संतन ने पांव धरि दियो कयमत आयी रहि।कयामत जो दुआरे बैठी ताना बाना बुन रहिस,घर वालों को नजरै न आवै।


केकर फायदा,केकर नुकसान,पढ़ लिख मुआ गइलन,पोथी पढ़ पढ़कर कोटा मार्फते किन्हीं बाबासाहेब की किरपा से बड़का बड़का अफसर अफसरा बाड़न, समझ न सकौ ह।


बुरबक हम जो रहेला,वोट जोट के बावजूदो वहींच बुरबको रह गइलन।


तनि अंबानी अडानी से सीखै होत अंधियारा का कारोबार इह तो परलोक इहलोक सुधर जाइ वइसन ही जइसन पुणे करार की संतानों की हुई रहै ह।


मारे के मारे सारे फटीचर धकाधक करोड़पति अरबपति एको चुनाव जीतै के हुई गइलन ,अबहुं ट्रिकलिंग ट्रिकलिंग ख्वाब बेचके खावै हैं मालपुआ मलाई तमामो।


जुलुमो की हद ह कि हम भूख के मारै चीखे तो देशद्रोही।


जुलुमो की हद ह कि हम प्यास के मारे चिल्लाये तो देशद्रोही।


हम जल जंगल जमीन और इस कायनात के साथे इंसानियत को बचावै गरज से आवाज उठायें तो हम ससुरे देशद्रोही।


आउर उ महाराज घूम घूमकर देश बेचे जाये कि वही धर्म कर्म ह।


आउर उ महाराज घूम घूम कर नफरत बांटै कि दंगा भड़के के मुनाफावसूली हो और धकाधक सनेसेक्स सेक्सी उभारौं कयामत बरपावै कि वही हिंदू राष्ट्र ह।


आउर उ महाराज आउर उनर तमामो संतन उधम काटै ह के जुबानों पर लगाम नइखै के शत प्रतिशत हिंदुत्व विसुध चाहि कि हउ भी चाहि कि ङु न चाहि कि विधर्मी रह सकै न कोई और नर्क मा अछूतों का बेड़ा गर्क हुी जाये फिर भी घर वापसी चाहि।


उनर खातिर जो देश चलावै किला तामीर किये केसरिया कहीं और,चौबीसों घंटे खातिर सबसे बेहतरीन साठ साठ कमांडो चाहि।

हमउ ससुर मांगे न कर सकबे के छतो नाही सर छुपाने को कि कइसन कहां कहां कमांडो बिठाइबो आपण पिछवाड़ा धरैके वास्ते जो जमीन हुईबै करै है,उ भी छीन लीन्हैं।


चियारिये चियारिनों के जलवे का गोरापन झलकावै खूब कि सारा जहां जहर पीवै ह।


आदरणीय तमाम सितारे झकाझक चमके कि का कहि ब्रांडिंग ह,कि का कहि मार्केटिंग ह कि का कहि खुल्ला ताला ह कि फारिग होवै खातिर खेत जावै को मनाही,पण घर मा लूटमचावै को आजादी ह।


अड़ोस पड़ोस फजीहत हुई रही खूबो,कौण समझावै कि मदमस्त हाथी हैं के कहीं रौंदे न दें कि रेवड़ी अपने अपने को बांटे हैं और टैक्सव हम बुरबको कंबोंधों पर लादै ह।


चेहरा जो नइखे।


जुबान नइखे।


अंखिया नको नको।कानौ नइखै।


तनि खैनी भी नइखै।


जीवैकि छत्तू भी महंगो हुई गयो।


कहत रहे कि दाल रोटी खाओ,प्रभू के गुण गाओ,राजा का बाजा एइसन बजाइले बाड़न की जमीन की फजीहत हुई गइलन और हरवाहे तमामो अनाड़ी,फजीहतो फजीहत।


न अनाजो है और न पानी कि हिमालयो पर धर दियो तमामो एटम बम और एचमो बम का जखीरा हुआ जाये हवा पानी ससुरा सबकुछो रेडियोएक्टिव ऐसी एफोडीआई ह।


धरम करम करते जाओ।

रामधुन गाते जाओ।

बजरंगी बनते जाओ।


बाकीर मनुस्मृति इंताजाम मा बंधुआ मजदूरी है।

पगारो न मिलबे करै है।


ऊ जो बाबासाहेब संविधान न कौन चीजै लिख दीहिस,उ रफा दफा ह।


सगरे कायदा कानून रफा दफा ह।

कटकटेला अंधियारा ह।

अंधियारा का कारोबार ह।


तेज बत्ती धरम करम बिरगेड धमाधम चलावै अश्मवमेध,कलि कलि चुन लीन्है,अब हमरी बारी।


घर फूक सकौ न कोय।

न कोय कबीरा खड़ा बाजार।

दसों दिशाओं में हाहाकार।

का कहि,खुल्ला ताला मुक्त बाजार।


सगरा कायदा कानून मुआ दिहिस।

इंसानियत ह के कायनात ह,सब दांव पर ह।


के शेयरबाजार के सांढ़ दौड़बै करै ह आउर दसो दिशाों में रेडियोएक्टिव बिजुरी चमकै चाहि।


बनिया पारटी का राजकाज ह कि मुनाफावसूली खातिरो जमीन की फजीहत चाहि।


टोटल प्राइवेटाइजेशन की सुनामी बा।

टोटल एफडीआई अंबानी अडानी राज बा।

त घर की मुरगी हलालै में चैन नइखै।

अडानी अंबानी खातिर देश देश भटकै बेचैन आत्मा ह।

मेहरारु हुइबे करै तो आरटीआई लगावै पूचथ रहि कि किरपया उनर हैसियत बतायी जाई।


मेहरारु नइखै तो लगाामो लगावै कौण कि काहेको घूम घूमकर बेगानी शादी मा अब्दुल्ला दीवाना बन रहियो कि देश दक्खिन हुआ जावै कि का न का समझ लीजै परदेशी तमामो कि किससे का रिश्ता का मालूम।कानून त बन गइलन सब जायज बा।


किसका राज कौन कमीशन खावै,किसका खेत कौण जोतै,किसकी कोठी कौण असल मालिक आउर किसका कालाधन सफेद हुआ जाये,न कंबंधों को कोई मतबल हुआ करै आउर न बजरंगियों को।

मुये को कौण मार सकै हो।


बोलो हिटलर बाबा की जै।

बोलो अंबानी बाबा की जै।

बोलो अडानी बाबा की जै।

उनकी भी जै जयकारा।

जो तमामो खुल्ला ताला हरकारा।


सबकुछ कारा कारा ।

बाकी कटकटेला अंधियारा।

बूस्टर खाइ खाइ कै रीढ़ो गायब ससुरा।

क्रीम घिसि कै चेहरा गायब ससुरा।


बाकीर जो सितारे ह।

जनता खिलाफे दुस्मन ह।

सबसे बड़ा सितारा जो आसमान पे चमके सबसे उजियारा।

समझ लिज्यो कि उसीने हमउ को मारा।

बाकीर अंबानी अडानी सहारा।

रामराज का आसरा।

जनम जनम का ठीकरा।



खुल्ला ताला

अनाड़ी हलवाहे

जमीन की फजीहत




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