साथियों,याद करें जब मजीठिया की लड़ाई में पत्रकारों की अगुवाई करने वाले भड़ास के यशवंत को मालिकों की रंजिश की वजह से जेलयात्रा करनी पड़ी,तो हमने सभी साथियों से आग्रह किया था कि हमें एकजुट होकर अपने साथियों पर होने वाले हमले के खिलाफ मजबूती से खड़ा होना चाहिए।
हम शुरु से पत्रकारिता के मूल्यों की रक्षा के लिए निरंतर वैकल्पिक मीडिया के हक में लामबंदी की अपील करते रहे हैं।हम लामबंद होते तो हमारे साथी रोज रोज मारे नहीं जाते।
एक फीसद से भी प्रभु वर्ग के सारस्वत पत्रकारों के लिए कारपोरेट पत्रकारिता का मायामहल भले ही पांचसितारा मौजमस्ती का मामला है,हकीकत की जमीन प निनानब्वे फीसद पत्रकारों की हालक कूकूरदुर्गति है,ऐसा हम बार बार लिख कह रहे हैं।
जाति व्यवस्था का भयंकर चेहरा मीडिया का सच है तो नस्ली वर्ण वर्चस्व यहां दिनचर्या है।
वैसे भी पिछले वेज बोर्ड के बाद तेरह साल के इंतजार के बाद जो मजीठिया आधा अधूरा मिला,उससे पहले तमाम अखबारों में स्थाई कर्मचारी ठिकाने पर लगा दिये गये।बाकी भाड़े पर बंधुआ फौज हैं।
इलेक्ट्रानिक मीडिया के पांच सितारा लाइव चकाचौंध में परदे पर उजले जगमगाते चेहरों के कार्निवाल के पीछे हमारे भाइयों साथियों का दमन उत्पीड़न शोषण का अटूट सिलिसिला है।
सितारा अखबारों और समूहों में तो नस्ली भेदभाव ही पत्रकारिता को जोश है और तमामो मीडिया महाजन मसीहा वृंद आंदोलन के नाम पर चूजे सप्लाई करते रहने वाले या चूजों के शौकीन महामहिम हैं।
जिलों और देहात में उमेश डोभाल हत्याकांड का सिलसिला जारी है।पत्रम् पुष्पम् के बपदले दिन रात सिर्फ नाम छपने की लालच में जो पत्रकारिता के शिकंजे में फंसकर मुर्गियों की तरह हलाल कर दिये जाते हैं,भड़ास और मीडिया से जुड़े तमाम सोशल साइटों के कारण उनका किस्सा भी अब सभी जानते हैं।
राजनीति के साथ महाजनों,मठाधीशों और आंदोलन चलानेवालों के अविराम हानीमून का नतीजा यह है कि पकत्रकारिता मिशन या जनमत या जन सरोकार से कोसों दूर हैं।
हमारी मीडिया बिरादरी आकाओं की अय्याशी का समान जुटाने के लिए ही खून पसीना एक किये जा रहे हैं।
महाजनों के सत्ता संबंधों की वजह से ही आम पत्रकारों और कासकर जिलों,गांवों और कस्बों में जनता की आवाज उठाकर सत्ता से टकराने वाले पत्रकारों की हत्या का यह उत्सव है।
कानून का राज कैसा है और झूठ के पंख कितने इंद्रधनुषी हैं,मोदियापा समय के जनादेश बनाने वाले केसरिया कारपोरेट प्रभुओं की कृपा से हम सारे लोग इस जन्नत का हकीकत जानते हैं,जो सिरे से हाशिये पर हैं।
हमें अपनी ताकत का अंदेशा नहीं है और गुलामी की जंजीरों को पहनकर हम मटक मटककर सत्ता गलियारे की जूठन की आस में हैं जो थोक भाव से प्रभू वर्ग का वर्चस्व है।निनानब्वे फीसद को तो वेतन,भत्ता,प्रोमोशन सबकुछ जाति और पहचान और सत्ता संबंधों के आधार पर मुटियाये चर्बीदार पांच सितारा लुटियन तबके के मुकाबले कुछ भी नहीं मिलता।
पत्रकारोें के संगठन अब तक मालिकों के साथ ट्रेड यूनियन आचरण के तहत सौदेबाजी करते रहने के लिए मशहूर है और मीडिया में सामंतवादी साम्राज्यवादी तंत्र मंत्र के किलाफ बगावत अभी शुरु ही नहीं हो सकी है।
एक मजीठिया मंच से ही मालिकान के खेमे में नानियां खूब याद आ रही है।
बहुसंख्य बहुजन उत्पीड़ित पत्रकार अगर एकजुट हो जायें और जंग लगी कलम और उंगलियों को ही हरकत में लाकर महामहिमों के सत्ता संबंधों के खिलाफ उठ खड़े हों तो हत्याओं का यह सिलसिला रुक सकता है,वरना नहीं।
समझ लीजिये कि केंद्र और सूबों में जो बाहुबलि धनपशुओं का वर्गीय वर्णीय जाति वर्चस्व लोकतंत्र के नाम पर जनसंहार राजकाज अबाध पूंजी में लोटपोट चला रहे हैं,भ्रष्ट राजनेताओं के साथ साथ भ्रष्ट पत्रकारों की हिस्सेदारी उसमें प्रबल है।
अरबपति बन गये भूतपूर्व पत्रकारों की एक अच्छी खासी जमात भी अब तैयार है।
मंत्री से संत्री तक की असली ताकत इन्ही विभीषणों की कारगुजारी है।
जिलों,कस्बों और गांवों के पत्रकार साथियों के हक हकूक की लड़ाई में राजधानियों और महानगरों के मीडिया बिरादर जब तक शामिल न होंगे,हत्याकांड होते रहेंगे और निंदा की रस्म अदायगी के साथ हम फिर हत्यारों का साथ देते रहेंगे और याद रखियें रोज रोज मौत की यह जिंदगी हम ही चुन रहे हैं।
साथियों,अपनी ख्वाहिशों और ख्वाबों की तमाम तितलियों को पकड़ने के लिए अपने साथियों के साथ खड़े होने के कला कौशल भी तकनीक की तरह सीख लीजिये वरना खामोश मजा लीजिये कार्निवाल का।
भाई अरुण खोटे की अपील पर भड़ास जुबान से उंगलियों तक संक्रमित हो गयी है,किन्हीं साथी को चोट पहुंचाना हमारा मकसद नहीं है क्या करें कि हकीकत बयां करते हुए दागी चेहरे बेनकाब हो ही जाते हैंं।
पलाश विश्वास
Arun Khote | June 10 at 4:37am |
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