हर किसी के लिए अब फांसी का फंदा तैयार
वरना वफादार खुद को साबित कर दें
हुकूमत हर किसी को कुछ भी बनाने लगी है
मजबूर हैं हम इतने कि अपने रब के सिवाय किसी को किसी पर भरोसा नहीं
हर वक्त खतरे के साये में हैं हम,मौत हर दिशा पर घात लगाये बैठी
कैसी कयामत है कि किसी को किसी पर यकीन नहीं
हवाओं में शक के कांटे चुभ रहे हैं बहुत
कोई यकीन नहीं कि पानियों में आखिर है क्या
रेगिस्तान में बाढ़ें आने लगी हैं इन दिनों
अब डीएनए कार्ड भी देशभक्ति का कोई सबूत नहीं है।बाकायदा संवैधानिक पदों से भी राष्ट्रद्रोह का फतवा जारी होने लगा है।
अब हिंदुस्तान भी अमेरिका होने लगा है।
पलाश विश्वास
दशभर में मूसलाधार हादसों का वक्त है यह।कोलकाता समेत पूरे बंगाल से लेकर राजस्थान और महाराष्ट्र तक जलजला है।
फिर पूरा मुल्क दहशतजदा है और हर आदमी और औरत शक के दायरे में है।
फांसी जिसकी हो गयी है,वह रिहा हो गया है,बाकी लोग अपनी रिहाई के लिए क्या क्या सबूत दें,हुकूमत यह तय नहीं कर पायी है।
क्योंकि अब डीएनए कार्ड भी देशभक्ति का कोई सबूत नहीं है।
बाकायदा संवैधानिक पदों से भी राष्ट्रद्रोह का फतवा जारी होने लगा है।
अब हिंदुस्तान भी अमेरिका होने लगा है।
आतंक के खिलाफ युद्ध भी अब महाभारत है और पूरा मुल्क कुरुक्षेत्र हैं जहां कोई ईश्वर चीख चीखकर कह रहा है,सबको मार डालो।
सबको मार डालो।
कोई बच नहीं पाये।
सारे मरे हुए हैं।
मरे हुए को मारने का पाप नहीं होता।
अपराध भी नहीं होता।
जैसे भोपाल गैसत्रासदी नियतिबद्ध है और पूर्व जनम का फल है इसीलिए नरकयंत्रणा गैसपीड़ितों के लिए अनुदान वरदान है।
दुनियाभर के सिख पांडवों के कुछ नहीं लगते तो आपरेशन ब्लू स्टार भी जायज है और इस खातिर किसी को कटघरे में खड़ा करे की जुर्रत जो करें वह राष्ट्रद्रोही है।
इस लिहाज से सिखों का कत्लेाम भी जायज है क्योंक सिख अब हिदू भी नहीं हैं।न्याय की गुहार सिखों की वह भी नाजायज है।
कश्मीर घाटी में हिंदू नहीं है तो उसपर तमाम जुल्मोसितम न कानून के दायरे में हैं और न न्याय के दायरे में है.वह सेना के हवाले हैं।
इसीतरह,इसी दलील से आदिवासी चूंकि हिंदू नहीं हैं,सलवाजुड़ुम के किलाफ हर बात राष्ट्रद्रोह है।पूर्वोत्तर भी इसीलिए सेना के हवाले है।
दंगों में जो मारे जाते हैं ,यह उनका कर्मफल का असर है।वर्ग वर्ण जाति वर्चस्व भी किस्मत का मामला है।जनमजात किस्सा है।जनमजात हिस्सा है।किस्मत कौन बदल सकै हैं।
गुजरात का नरसंहार नरसंहार इस लिए नहीं है क्योंकि जिनका कत्लेआम हुआ वे गैरहिंदू थे और उनका वध हिंदूराष्ट्र के लिए वैदिकी हिंसा का पाठ है जो अनिवार्य भी है और वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति।इसी लिए उस नरसंहार के हत्यारों को क्लीन चिट है।
ईश्वर के वे ही चीखें हवाओं में गूंज रही हैं वे ही चीखें पानियों की लहरें हैं।बाकी तमाम चीखें न पैदा हो रही हैं और न उसकी कोई इजाजत है।
चोरी छिपे किसी चीख का हो गया जन्म तो राष्ट्र की सारी सैन्यशक्ति पूरी मुश्तैद के साथ जमींदोज कर देती हैं वे तमाम चीखें।
चीखों का दफनाने का तंत्र ही हमारा लोकतंत्र है।
यही हमारा राज्यतंत्र है।
यही कुल तंत्र मंत्र यंत्र है।
भरत किस तरह इराक और अफगानिस्तान या लीबिया की तरह किसी गैरमुल्क को अमेरिकी तर्ज पर तहस नहस कर पायेगा,हम नहीं जानते,लेकिन यह हिंदू राष्ट्र राष्ट्र के ताने बाने को तबाह कर रहा है,इसमें अब शक की कोई गुंजाइश नहीं है।
हम तुरंत राष्ट्रद्रोही करार दिये जायेंगे, अगर हम यह कह दें कि भारत न कभी राष्ट्र था और न भारत आज कोई राष्ट्र है।
हम तुरंत राष्ट्रद्रोही करार दिये जायेंगे, अगर हम यह कह दें कि भारत हजारों सालों से रियासतों का जमावड़ा था जो आज भी वहीं रियासतों का जमावड़ा बना हुआ है और सारी सियासत उन्हीं रियासतों को बहाल रखने की है।
उन्हीं रियासतों के हुक्मरान अब भी हम पर राज कर रहे हैं और हम वे ही प्रजाजन हैं जो नागरिक नहीं हो सकते तो जाहिर है कि नागरिकों के हक हकूक भी रियासतों के प्रजाजनों को मिल नहीं सकते।यही कानून है।यही न्याय है।मुक्त बाजार भी वही।
हम रियासतों का जमावड़ा न होते तो हम मुकम्मल वतन के बारे में सोच रहे होते और वतन के हर हिस्से से उतना ही प्यार करते जितना कि अपनी अपनी रियासतों से।
हमारा वतन टुकडा़ टुकड़ा है।किसी टुकड़े का दर्द किसी टुकड़े को महसूस होता नही है इसीलिए।बंटवारे का दर्द बी नहीं है कोई।
हम तुरंत राष्ट्रद्रोही करार दिये जायेंगे, अगर हम यह कह दें कि कोई सूबा भी मुकम्मल कोई सूबा नहीं हैं।
हर सूबे के अंदर रियासतें हैं जतो जमींदारियां भी हैं।
हम तुरंत राष्ट्रद्रोही करार दिये जायेंगे, अगर हम यह कह दें कि मुकम्मल वतन की क्याकहें ,हम तो किसी मुकममल सूबे की बात भी नहीं कर सकते कि सूबे के अंदर अनेक सूबे हैं और सूबेदार भी अनेक हैं।
सिपाहसाालर कोई एक कहीं नहीं हैं और मनसबदार तो थोक हैं।जमींदार बहाल तबीयत हैं तो उनके कारिंदे किसी बाघ से आदमखोर कम नहीं है।
प्रेमचंद की 135वीं सालगिरह है आज और उनकी लिखी देखी दुनिया के दुःख दर्द का किस्सा तनिको बदला नहीं है भले ही जमाना बदल गया हो और हुकूमत भी बदली बदली सी दीखती रही हो हर चुनाव के बाद।कुछ भी नहीं बदला है लेकिन कोई दूसरा प्रेमचंद के पासंग बराबर हुआ नहीं है अभीतक।
कल रात बहुत घूमकर घर लौटे हम रात के करीब पौने चार बजे।रास्ते में सुमीत को घर उतारा।उसने अपने घर के दो घरों बाद उस धोबी की दुकान को भी दिखाया,जिसने कपड़े लौटाने के लिए आधार,पैन या वोटर कार्ड के जेराक्स मांगे।
जिस मुल्क में शक का दायरा फांसी के फंदे की तरह वजूद को खाने लगे,उस मुल्क में कायनात को भी तबाही में तब्दील हो जाना है।
कयामत यही है कि हर तीसरा शख्स शक के दायरे में है।
हालात अजब गजब हैं कि हर किसी के लिए फांसी का फंदा तैयार।
वरना वफादार खुद को साबित कर दें।
हुकूमत हर किसी को कुछ भी बनाने लगी है।
मजबूर हैं हम इतने कि अपने रब के सिवाय किसी को किसी पर भरोसा नहीं।
हर वक्त खतरे के साये में हैं हम,मौत हर दिशा पर घात लगाये बैठी।
कैसी कयामत है कि किसी को किसी पर यकीन नहीं।
हवाओं में शक के कांटे चुभ रहे हैं बहुत।
कोई यकीन नहीं कि पानियों में आखिर है क्या।
रेगिस्तान में बाढ़ें आने लगी हैं इन दिनों।
राम चंद्र गुहा हम जहां तक जानते हैं,कोई राजनेता नहीं हैं।उनसे निरपेक्ष कोई इतिहासकार फिलवक्त देश मेंकोई दूसरा है कि नहीं,मुझ जाहिल को मालूम नहीं है।
अपने मित्र आनंद तेलतुबंड़े की ताजा किताब का प्लैप लिखने के लिए हमने उनसे आवेदन किया तो वे तुरंत तैयार हो गये और आनंद ने उन्हें तुरंत पांडुलिपि मेल से भेज दिया है।
इसपर उनका जवाब आया कि वे बूढ़े हो गये हैं और प्रिंट के सिवाय परदे पर कुछ भी पढ़ना उनके लिए मुश्किल है।फिर उन्हें प्रिंट भेजा गया।
किस्सा यू है अब कि किसी एक नागरिक को फांसी हो गयी।सर्वोच्च अदालत के भोर साढ़े चार बजे दिये आखिरी फैसले के बाद उसे फांसी दे दी गयी।लाश उसके परिवार के सुपुर्द कर दी गयी।
कानून ने कानून के मुताबिक काम किया और न्याय जैसे होता रहा है,हूबहू न्याय उसी तरह हो गया।
तथागत राय सिर्फ राजनेता नहीं हैं।
सिर्फ गवर्नर भी नहीं हैं तथागत राय।
बांग्ला की सबसे प्रतिष्ठित पत्रिका देश में यशस्वी संपादक सागरमय घोष के जमाने में मुख्य आलेख उनके तमाम छपते रहे हैं।उनके बजरंगी हो जाने की हमें कोई खबर न थी हालांकि वे बंगाल भाजपा के अध्यक्ष भी रहे हैं और लगातार हिंदू हितों की बात भी करते रहे हैं।
उन तथागत राय को देश के वाणिज्यिक महानगर में एक जनाजे में शामिल चेहरों के आतंकवादी होने का शक है और बाकायदा त्रिपुरा के गवर्नर होने की हैसियत से उनने ट्वीट भी कर दिया कि उस जनाजे में शामिल तमाम लोगों की निगरानी होनी चाहिए।उनमें से अनेक आतंकी हो सकते हैं।वे इस पर अब भी बहाल हैं।
इस पर बूढ़े रामचंद्र ने उस ट्वीट के जवाब में लिख दिया कि राजनेता और सरकारेंं बकवास के लिए मशहूर हैं लेकिन कोई गवर्नर ऐसी बात करें तो यह बहुत खतरनाक है।
हमें अभी मालूम नहीं है कि रामचंद्र गुहा को पाकिस्तान चले जाने या मुसलमान होने का फतवा जारी हुआ है नहीं।
संघ बिरादरी में से जिन जिनसे हमारी बातचीत संभव होती रही है,हम कई दिनों से उनसे यही बहस कर रहे हैं कि किसी को फांसी दे देने से आतंक के खिलाफ युद्ध जीता नहीं जाता।
हम उनसे कह रहे ते कि जिस न्यापालिका ने किसी नागरिक को मोत की सजा बहाल रखी है ,उसी अदालक ते पूर्व न्यायाधीश उसी सजाेमौत के खिलाफ अपील कर रहे हैं,तो आप उन्हें राष्ट्रद्रोही साबित करने लगे हैं तो आप ही इसका खुलासा कर दें कि जिस न्यायपलिका के कल तक अंग रहे जस्टिस सावंत,जस्टिस काटजू जैसे तमाम न्यायाधीश अगर राष्ट्रद्रोही हैं,तो अब तक जो न्याय हुआ है,उसपर नागरिकों का भरोसा कितना होना चाहिए।
फिर न्यायप्रणाली के अंग रहे लोग अगर राष्ट्रद्रोही हैं,तो फिर राष्ट्रभक्त संघ परिवार से जुड़े जो लोग नहीं हैं ,उनमें से कौन कौन देश भक्त हैं और कौन कौन देशद्रोही हैं।
जाहिर है कि संघपरिवार से जुड़े लोगों की राष्ट्रभक्ति पर सवालिया निशान लगाने वालों को इस मुल्क में रहने की कोई इजाजत तो मिलेगी नहीं।
हम लोग जो खास भी नहीं हैं और वे लोग जो आम हैं खालिस और खासतौर पर जो विशुद्ध हिंदू नहीं है या सिरे से गैरहिंदू हैं उनकी देशभक्ति साबित करने की कोई गुंजाइश तो है नहीं।
अब एक गवर्नर के इस फतवे के बाद एक आम आदमी ,सुमीत के धोबी के उस शक के मिजाज से समझिये कयामत से फासला।
मामला बस इतना है कि हुकूमत तो बहुत बड़ी चीज है ,रोजमर्रे की जिंदगी में आम लोगों की नजर में शक के दायरे से बाहर निकलने के लिए आधार,वोटर,पैन,राशन कार्ड के अलावा देशभक्ति का कोई कार्ड या डीएनए कार्ड के साथ असंदिग्ध कोई कार्ड बनाने का ठेका फिर किस निजी कंपनी को दिया जाना है।किसका हो गया छेका,समझें।
देख लीजिये,उनने दुनियाभर को झांसे में लेकर आतंक के खिलाफ युद्ध जीतने के लिए सरेआम सद्दाम हुसैन का कैसे अंत किया है।
जिस मीडिया के भरोसे हमारे दिलोदिमाग हैं,उसका जनम न्यूयार्क के ट्वीन टावर गिराये जाने के हादसे में हुआ और भारत में भी लोगों ने देखा कि कैसे किसी खास नागरिक को नही,बल्कि पूरे के पूरे मुल्क को सजाएमौत दे दी गयी।
इराक ईरान लीबिया के बाद लातिन अमेरिका,एशिया,अफ्रीका और यूरोप में भी करोडों लोग अबतक आतंक के खात्मे के लिए मौत के घाट उतार दिये गये हैं।
फिरभी खुद अमेरिका में वह आतंक फिर फिर लौट रहा है।बाकी दुनिया की बात तो रहने दें।सारा भारत युद्धस्थल इसीलिए।
उस तंत्र की बात कोई नहीं करता है जहां आतंक के कारखाने थोक भाव से लगते हैं।जहां आतंकवादी बनाये जाते हैं।
सारे लोग इस सिलसिले में खामोश हैं।
वह तंत्र लेकिन पल चिन पल छिन मजबूत होता जा रहा है।
अब 3 अगस्त को हिंदू महासभा मुसलमान मुक्त हिंदुस्तान की मुहिम चालू करने जा रहा है और आरएसएस ने खुल्ला ऐलान कर दिया है कि 2021 तक विधर्मियों से मुक्त होगा भारत।
अब समझ लीजिये कि इस ऐलाने जंग का अंजाम फिर क्या होने वाला है।कहां कहां दहशत का दायरा बढ़ने वाला है।
इस दरम्यान या तो सारे विधर्मियों की घर वापसी हो जानी चाहिए,नहीं हुई तो वह विकल्प क्या है,जिसके तहत भारत विधर्मी मुक्त होगा,इसका भी खुलासा कर दें हुकूमत तो कुछ खुलासा हो। क्योंकि गैरहिंदुओं का सफाया जिस आरएसएस का कार्यक्रम है खुल्लमखुल्ला है,उसीकी हुकूमत है।राजधानी नागपुर है।
उस अवधि तक जो न बनेंगे हिंदू तो क्या उन्हें किसी नये ग्रह उपग्रह या नक्षत्र में भेजने का कोई वैदिकी विज्ञान है,हमें चूंकि मालूम नहीं है।या किस योग बल से फिर आवाम की अदला बदली होगी।
हम इतना ही जानते हैं कि बाजार जितना मुक्त है ग्लोबल,पूंजी जितान अबाध है,सरहदें उतनी मुक्त कहीं नहीं है।
न सरहदों पर आावागमन अबाध है।
क्या हिंदुस्तान के गैरहिंदुओं के लिए किसी नोमैंस लैंड पर कोई उनका होमलैंड बनाने की तरकीब किसी साइंटिस्ट ने ईजाद की है या स्टीफन हाकिंग से कोई ऐसा समझौता भी हुआ है कि किसी और दुनिया का पता चले तो वहीं बसा दिये जायेंगे हिदुस्तान में अवांछित गैर हिंदू लोग।
Pl see my blogs;
Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!
No comments:
Post a Comment