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Tuesday, July 21, 2015

रंगशाला के लिये संस्कृतिकर्मियों का संघर्ष.नैनीताल में रंगकर्म की परम्परा सवा सौ वर्ष से भी अधिक पुरानी है। बताते हैं कि अंग्रेजों के शासन काल में ग्रीष्मकालीन सचिवालय कर्मियों ने सन् 1889-90 में ‘बंगाली एम्योचोर ड्रेमेटिक क्लब’ की स्थापना कर स्थानीय कलाकारों के साथ 1890-91 में ऐतिहासिक नाटक ‘शाहजहाँ’ तथा धार्मिक नाटक ‘महाभारत’ का मंचन किया। ब्रिटिश हुकूमत ने 1858 में झील के किनारे एक भव्य एसेम्बली हॉल का निर्माण कर लिया था, जो अब ‘रिंक हॉल’ कहलाता है और जीर्ण-क्षीण हालत में है।


रंगशाला के लिये संस्कृतिकर्मियों का संघर्ष

लेखक : विशेष प्रतिनिधि :::: वर्ष :: :

theater_hall'नैनीताल रंगशाला संघर्ष समिति' की 9 मई को नगरपालिका सभागार में सम्पन्न आम बैठक में मुख्यमंत्री की घोषणा हो चुकने के बावजूद रंगशाला निर्माण के लिए कोई कार्यवाही शुरू न होने पर संस्कृति कर्मियों ने नाराजी व्यक्त की। बैठक में संस्कृतिकर्मियों ने नैनीताल में रंगकर्म की सशक्त परम्परा एवं बेहतर पृष्ठभूमि को देखते हुए तय किया कि रंगशाला की स्थापना के लिए आंदोलन किया जाय। बैठक की अध्यक्षता महेश जोशी ने की।

बैठक का संचालन करते हुए मंजूर हुसैन ने बताया कि विगत माह मुख्यमंत्री हरीश रावत के नैनीताल आगमन पर यहाँ के रंगकर्मियों ने उन्हें विधायक सरिता आर्या के साथ रंगशाला की स्थापना के लिए एक ज्ञापन दिया था। तब विधायक ने मुख्यमंत्री को रिंकहॉल को रंगशाला निर्माण के लिए उपयुक्त भी बताया था। इससे पूर्व शरदोत्सव के दौरान भी मुख्यमंत्री ने नैनीताल में सिने अभिनेता स्व. निर्मल पांडे के नाम से सभी सुविधाओं से युक्त ऑडिटोरियम बनाने की घोषणा की थी। लेकिन इस बीच कोई कार्यवाही न होने पर रंगकर्मियों ने 4 मई को एक आम बैठक कर 'नैनीताल रंगशाला संघर्ष समिति' का गठन किया और सभी संस्कृतिकर्मियों को एकजुट करते हुए मुख्यमंत्री को सम्बोधित एक ज्ञापन विधायक व जिलाधिकारी के माध्यम से प्रेषित करने का निर्णय लिया। 7 मई को जिलाधिकारी, विधायक व नगरपालिका को ज्ञापन सौंपने के बाद दूसरे दिन आयुक्त कुमाऊँ, नैनीताल को भी ज्ञापन सौंप कर शीघ्र ही रंगशाला निर्माण करने की माँग की।

बैठक में बड़ी संख्या में संस्कृतिकर्मियों ने हिस्सेदारी की। चर्चा में डॉ. नारायण सिंह जन्तवाल, राजीव लोचन साह, जहूर आलम, इदरीस मलिक, मिथिलेश पांडे, सुरेश गुरुरानी, अनिल घिल्डियाल, डॉ. संतोष आशीष, राजा साह, हरीश राणा, दिनेश कटियार, हर्षवर्धन वर्मा, मदन मेहरा, मुकेश धस्माना, विनोद पांडे, कौशल साह, प्रदीप पांडे, शालनी शाह, अजय कुमार, पवन कुमार, रितेष सागर, जितेन्द्र बिष्ट, भाष्कर बिष्ट, नवीन बेगाना, नीरज डॉलाकोटी, दिव्यंत साह, एम. दिलावर, डॉ. मोहित सनवाल, भुवन बिष्ट, बी.डी. घिल्डियाल, सुरेश पन्त, मनोज टोनी, असलम खान, के.सी. उपाध्याय, दिनेश उपाध्याय, हरीश बिष्ट, अनवर रजा, रोहित वर्मा, अशोक कुमार, दीक्षा फत्र्याल, हेमा आर्या, शोभा, मुहम्मद जुल्फिकार, कमल जोशी, जावेद हुसैन आदि शामिल थे। अधिकांश लोगों की दृष्टि में रंगशाला के लिए रिंकहॉल सबसे उपयुक्त माना गया। नगरपालिका की सम्पत्ति होने के साथ ही यह केन्द्रीय स्थान पर होने के कारण सुविधाजनक भी है। यहाँ ब्रिटिश काल से ही नाटक व अन्य सांस्कृतिक गतिविधियाँ होती रही हैं। नगरपालिका के पीछे के घोड़ा स्टेंड, जहाँ वर्तमान में कार पार्किंग है, को भी ऑडिटोरियम के रूप में विकसित किया जा सकता है। बैठक में यह स्पष्ट किया गया कि रंगशाला निर्माण के लिए किसी की जमीन या रोजगार नहीं छीना जायेगा, बल्कि इससे कई लोगों के लिये रोजगार सृजित होगा। नगर में साहित्यिक, सांस्कृतिक व रंगकर्म से सम्बन्धित गतिविधियों के लिए एक स्थान उपलब्ध होगा, जहाँ से प्रतिभाएँ आगे बढ़ेंगी।

बैठक में चरणबद्ध आंदोलन चलाने के लिए एक सलाकार मंडल और संचालन समिति का गठन किया गया। तय किया गया कि पर्चा, पोस्टर, जनगीत, नुक्कड़ नाटकों के साथ जनता के बीच सम्वाद बनाया जायेगा और जल्दी ही एक प्रतिनिधिमंडल पुनः मुख्यमंत्री हरीश रावत से मिलेगा। इस पर कोई कार्यवाही न होने पर धरना-प्रदर्शन किया जायेगा।

नैनीताल में रंगकर्म की परम्परा सवा सौ वर्ष से भी अधिक पुरानी है। बताते हैं कि अंग्रेजों के शासन काल में ग्रीष्मकालीन सचिवालय कर्मियों ने सन् 1889-90 में 'बंगाली एम्योचोर ड्रेमेटिक क्लब' की स्थापना कर स्थानीय कलाकारों के साथ 1890-91 में ऐतिहासिक नाटक 'शाहजहाँ' तथा धार्मिक नाटक 'महाभारत' का मंचन किया। ब्रिटिश हुकूमत ने 1858 में झील के किनारे एक भव्य एसेम्बली हॉल का निर्माण कर लिया था, जो अब 'रिंक हॉल' कहलाता है और जीर्ण-क्षीण हालत में है। 1950 के दशक से शरदोत्सव के दौरान नाटक प्रतियोगिताओं का एक लम्बा सिलसिला चला। यहाँ से निकल कर न सिर्फ बी.एम. शाह नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के निदेशक बने, बल्कि बाद में निर्मल पाण्डे बरास्ता थियेटर फिल्मों के लोकप्रिय अभिनेता बने। इस दौर में दर्जनों युवा एन.एस.डी में प्रवेश पा कर फिर थियेटर या फिल्मों में स्थापित हुए। आज भी यहाँ न रंगकर्म से जुड़ी संस्थाओं की कमी है और न ही कलाकारों की। मगर राज्य बन जाने के बाद कहाँ तो ऐसी प्रतिभाओं के लिये सुविधायें बढ़नी चाहिये थीं और कहाँ अब रंगकर्मी रिहर्सल के लिये भी स्थान को तरसते दिखाई देते हैं। आर्य समाज के बगल में स्थित पार्क को 'बी. एम. शाह पार्क' का नाम देकर वहाँ कुछ मंचीय गतिविधियाँ हो जाती हैं, लेकिन वह स्थान जाड़ों तथा वर्षा के लिये कतई उपयुक्त नहीं है। डॉ. नारायणसिंह जन्तवाल ने अपने विधायक रहते भी नैनीताल के रंगकर्मियों की समस्या को विधानसभा में उठाया था, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।

अब नैनीताल के रंगकर्मियों ने स्वयं ही पहल कर रंगशाला स्थापित करने के आन्दोलन की शुरूआत कर दी है।

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