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Saturday, July 4, 2015

इस हिमालय की सेहत के बारे में भी सोचें दोस्तों,क्योंकि ग्लेशियरों की प्लास्टिक सर्जरी नहीं हो सकती। बाहरी लोग पहाड़ियों को बेदखल करके जो सीमेंट का जंगल रचा है,उससे आपदाओं के मौजूदा सिलसिले के मद्देनजर मनुष्यता और प्रकृति के हित में संसाधनों की अबाध लूटखसोट और आबादियों को डूब में दफन करने के विरुद्ध,भूंकप के झटकों के खिलाफ और अविराम बाढ़ भूस्खलन की रोकथाम के लिए, हिमालय की सेहत के लिए शायद सबसे जरुरी चीज है धारा 370,आफस्पा नहीं। आपको याद होगा कि हमने पहले ही लिखा है कि हिमालय को तबाही से बचाना हैै तो पूरे हिमालय में धारा 370 लागू कर देना चाहिए।कश्मीर में उसे खत्म करने की मांग तो छोड़ ही दीजिये। पलाश विश्वास

इस हिमालय की सेहत के बारे में भी सोचें दोस्तों,क्योंकि ग्लेशियरों की प्लास्टिक सर्जरी नहीं हो सकती।


बाहरी लोग पहाड़ियों को बेदखल करके जो सीमेंट का जंगल रचा है,उससे आपदाओं के मौजूदा सिलसिले के मद्देनजर मनुष्यता और प्रकृति के हित में संसाधनों की अबाध लूटखसोट और आबादियों को डूब में दफन करने के विरुद्ध,भूंकप के झटकों के खिलाफ और अविराम बाढ़ भूस्खलन की रोकथाम के लिए, हिमालय की सेहत के लिए शायद सबसे जरुरी चीज है धारा 370,आफस्पा नहीं।


आपको याद होगा कि हमने पहले ही लिखा है कि हिमालय को तबाही से बचाना हैै तो पूरे हिमालय में धारा 370 लागू कर देना चाहिए।कश्मीर में उसे खत्म करने की मांग तो छोड़ ही दीजिये।


पलाश विश्वास

इस हिमालय की सेहत के बारे में भी सोचे दोस्तों,क्योंकि ग्लेशियरों की प्लास्टिक सर्जरी नहीं हो सकती।


हमउ फैन रहल बानी स्वप्न सुंदरी के।बालकपन से अबहुं हम फैनोफैन बानी।


सुबह जो उनकी नाक की सर्जरी की खबर पढ़ी तो साथ में दार्जिलिंग के पहाड़ों में जारी भूस्खलन,सिक्किम के देश से लगातार तीन दिनों तक भूस्खलन की वजह से कटे होने की खबरें भी पढ़ लीं।


अपना उत्तराखंड तो हमारे दिलोदिमाग में वजूद जैसा है ,जहां एक एक इंच जमीन की हलचलों से हम बेचैन होइबे करै हैं।


नेपाल में भूस्खलन जारी है तो कश्मीर में झेलम कगारें तोड़कर घाटी को डूब में तब्दील करने लगी है।


कश्मीर से अरुणाचल तक फिरभी आपदाओं के मामले में अब भी कश्मीर बहुत बेहतर है क्योंकि वहां जमीन बाहरी लोग उस तरह नहीं खरीद सकते जैसे उत्तराखंड, हिमाचल, दार्जिलिंग या सिक्किम में।


जैसा कि केदार जलआपदा के वक्त हुआ,मीडिया का सारा फोकस केदार गाटी पर रहा और बाकी हिमालय में नेपाल से लेकर हिमाचल में जो घाटियां और आबादियां जीते जी हमेसा हमेशा दफन होती चली गयीं,उसकी सुधि किसी ने नहीं ली।वैसा नेपाल महाभूकंप के बाद न बंगाल और न सिक्किम और न उत्तराकंड के पहोड़ी की कोई सुधि ली गयी और न आने वाले हादसों की रोकथाम का कहीं कोई बंदोबस्त हुआ।


हाल में नेपाल के मेगाभूकंप के दौरान भी हम दार्जिंलिग के पहाड़ों और सिक्किम की सेहत को लेकर बेचैन थे।


यकीन मानिये कि यह फिक्र हमारी प्रिय स्वप्नसुंदरी की नाक की सेहत से कम यकीनन नहीं थीं।


गोरखा लैंड आंदोलन और उसके दमन और उसे लेकर राजनीति के बनते बिगड़ते समीकरणके अलावा अस्सी के दशक से अब तक दार्जिलिंग के पहाड़ मुकम्मल नर्क में तब्दील हैं।


कोई विकास के काम नहीं हुए इस दौरान वहां और न जख्मी पहाड़ों का कभी कोई इलाज हुआ।


भारत के हिल स्टेशनों में से सबसे दुर्गम लेकिन दार्जिलिंग है और वहां की यात्रा के लिए बारत सरकार को चाहिए कि कैलाश मानसरोवर या अमरनाथ यात्रा की तरह यात्रियों का मेडिकल टेस्ट का इंतजाम भी कर दें।


दूसरी तरफ,सिक्किम में मुख्यमंत्री पवन चामलिंग के अकंड राजकाज से चमाचमा रहा है सिक्किम और विकास इतना हुआ है कि सिक्किम का एक एक इंच जमीन लेकिन पर्यटनस्थल है।


गंतोक में तो एक कदम भी कहीं बिना टैक्सी के आप जा नहीं सकते।

चढ़ने उतरने का कोई सीन नहीं है।


सीमाव्रती सैन्यइलाकों को छोढ़ दें तो माइनस चारधाम के सिक्किम का पर्यटन उत्तराखंड और हिमाचल की देवभूमि पर भारी है।


उत्तराखंड के बाद,दार्जिलिंग के बाद अब भूस्खलन का सिलसिला सिक्किम में भी है।


नेपाल के महाभूकंप का ही नहीं,बल्कि यह केदार जलसुनामी का भी असर है कि हिमालय खौल रहा है और तबाही ज्वालामुखी की तरह सुलगने लगी है।


इस हिमालय की सेहत के बारे में भी सोचे दोस्तों,क्योंकि ग्लेशिरों की प्लास्टिक सर्जरी नहीं हो सकती।


आपको याद होगा कि हमने पहले ही लिखा है कि हिमालय को तबाही से बचाना हैै तो पूरे हिमालय में धारा 370 लागू कर देना चाहिए।कश्मीर में उसे खत्म करने की मांग तो छोड़ ही दीजिये।


बाहरी लोग पहाड़ियों को बेदखल करके जो सीमेंट का जंगल रचा है,उससे आपदाओं के मौजूदा सिलसिले के मद्देनजर मनुष्यता और प्रकृति के हित में संसाधनों की अबाध लूटखसोट और आबादियों को डूब में दफन करने के विरुद्ध,भूंकप के झटकों के खिलाफ और अविराम बाढ़ भूस्खलन की रोकथाम के लिए हिमालय की सेहत के लिए शायद सबसे जरुरी चीज है धारा 370,आफस्पा नहीं।


नेहरु के शासनकाल में भी राजनीति में खुद इंदिरा गांधी, राजमाता गायत्री देवी,विजयराजे सिंधिया,तारकेश्वरी सिन्हा, रेणुका चौधरी जैसी महिलाएं राजनीति में सक्रिय रही हैं।


तब बैजंती माला,वहीदा रहमान,सुचित्रा सेन,मधुबाला,नरगिस,मीना कुमारी वगैरह वगैरह भीषण लोकप्रिय होने के बावजूद राजनीति में नहीं थीं।


सितारों का जलवा दक्षिण में पहले ही से था और एमजीआर,एनटीरामाराव जैसे मेगास्टार की राजनीतिक कामयाबी ने जयललिता को भी फिल्मों में उनकी कामयाबी के मुकाबले राजनीतिमें कहीं ज्यादा बड़ा स्टार बना दिया।


अब तो बंगाल से लेकर गायपट्टी तक राजनीति में विज्ञापनों का जलवा है और सितारों का महमहाता जुलूस अनंत है और आम जनता के बेढभ बडौल चेहरे सिरे से लापता हैं।


वरना कभी जमाना वह था कि शर्मिला टैगोर चुनाव जीत नहीं सकी तो हाल में कोलकाता से मौसमी चटर्जी भी हार गयीं।


मुक्त बाजार में इफरात विश्वसुंदरियों के साथ साथ राजनीति में भी सुंदरियां बहुत आम हैं।


राजनीतिक पोस्टर अब फिल्मी पोस्टर भी हैं।


दुनिया में शायद ही कोई बेवकूफ ऐसा होगा जो सुंदरियों के खिलाफ बोलें।


आज अखबारों में सबसे प्रमुखता के साथ जो खबर छपी वही यह है कि स्वप्नसुंदरी की नाक की प्लास्टिक सर्जरी हो गयी।


सपनों के सौदागर के साथ साठ के मोहभंग के दशक से से लेकर अबतक वे भीरतीय सौंदर्यबोध की अखंड प्रतिमा है और भला हो संघ परिवार को कि उसने उन्हें संसद में भी अवतरित कर दिया।


राजनीति में नाक बेहद संवेदनशील अंग है,इसमें भी शक है नहीं कोई।


दुर्घटनाओं में हो न हो,पहले राजनेताओं की नाक की सेहत भारी समस्या रही है।तब नाक जब तब कट जाया करती थी।कान भी कटा करते थे।फिरभी नकटा और कनकटा राजनेता कम नहीं रहे हैं।


नंगा बिररंची बाबा तो आज का सच है और तेजी से विज्ञापन विभाग में तब्दील हो रहे मीडिया संपादकीय के लिए कौन क्या पहन रहा है,कौन क्या ओढ़ रहा है और कौन नंगा है,कौन नहीं,यह बताना मुख्य कार्यभार भी नहीं है।


फिरभी हमारे लिए राहत की बात है कि मीडिया को स्वप्नसुंदरी की नाक की परवाह है।हमारे सपने उनके बिना अनाथ रहे हैं, जाहिर हैं।


इसलिए जाहिर है कि उनकी नाक पूरे देश की नाक है और बहुत भला हुआ कि देश की नाक सही सलामत है।


जो वीवीआईपी चिकित्सा उनके खरोंचों की हो गयी और जिस मानवीयआधार पर दुर्घटना के शिकार दूसरे परिवार की मदद की घोषणा माननीय सांसद ने की है,वह भी कम हैरतअंगेज नहीं है।


बच्ची को तत्काल उसी अस्पताल में दाखिल करा दिया गया होता तो स्वप्नसुंदरी की नाक की तरह उस बेचारी की जान भी शायद बच गयी होती।


जाहिर है कि उस हादसे में मारी गयी बच्ची की जान हेमा मालिनी की नाक बराबर हो ही नहीं सकती।


उन्हें तो तत्काल मौके से सुरक्षित निकालकर वीवीआईपी अस्पताल में दाखिल कराया गया लेकिन बच्ची और उसके घायल परिजनों को जिला अस्पताल में।


जिला अस्पतालों में जो लोग अपने इलाज के ले जाते हैं,वे ही इस समता और समरसता का असली मतलब बूझ सकै हैं।


ललित बम से लहूलुहान महारानी ने भी आखेर स्वप्नसुंदरी का दर्शन करने के बाद मासूम बेटी खोने वाली जख्मी मां से मिल आयीं जबकि विवादों के मारे वे राजकाज से बी इन दिनों परहेज कर रही हैं,ऐसी खबर है






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