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Thursday, July 23, 2015

शैलेंद्र शोषण की चक्की में पिसती जनता के कवि हैं। वह जनता; वह मेहनतकश मजदूर-किसान जिनकी इंसानियत को रोज-बरोज रौंदा जाता है। जिससे कि वे न सोच सकें, न सवाल करें और मुट्ठीभर सरमायादारों के मुनाफे की आग में अपनी जिंदगी झोंक दें।

जनचेतना का प्रतिबद्ध कवि

शैलेंद्र शोषण की चक्की में पिसती जनता के कवि हैं। वह जनता; वह मेहनतकश मजदूर-किसान जिनकी इंसानियत को रोज-बरोज रौंदा जाता है। जिससे कि वे न सोच सकें, न सवाल करें और मुट्ठीभर सरमायादारों के मुनाफे की आग में अपनी जिंदगी झोंक दें। 
आर्थिक लाभ या सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए आज कविता नहीं रची जाती। कविता के नाम पर की जाने वाली तुकबंदियां, लफ्फाजी या फिल्मी गाने एक अलग विषय हैं। तो क्या कवि केवल अपने शौक के लिए कविताई किया करता है? निस्संदेह कविता कवि की निजी आवश्यकता से जुड़ी है। मगर अपना कुछ दूसरे तक पहुंचाने का सरोकार भी उसमें निहित रहता है। यही वजह है कि कवि अपनी निराकार संवेदनाओं को कविता में साकार किया करता है। बात और है कि किसी न किसी वजह से अक्सर कवि अपनी कविताओं को छिपाने की कोशिश किया करता है। लोकप्रिय और कालजयी साबित होने वाली किसी कवि की कविताओं के अलावा, उसके रचना-संसार का एक हिस्सा वह भी है, जिसकी बहुत कम या न के बराबर सुध ली गई। ऐसी रचनाएं कवि की प्रचलित रचनाओं से भी अधिक प्रासंगिक हो जाती हैं, जब कवित्व के समग्र विश्लेषण की पहल की जाए।
फिल्म-गीतकार शैलेंद्र को तीसरी कसम फिल्म के निर्माता-निर्देशक की हैसियत से भी जाना जाता रहा है। राजकपूर पर फिल्माए गए उनके सदाबहार गीत अपना सानी नहीं रखते। फिल्मी दुनिया और जन-सामान्य से लेकर साहित्यिक समीक्षकों तक इन गीतों ने अपनी अमिट छाप छोड़ी। फिल्मी गीतों के अलावा शंकर शैलेंद्र ने ढेरों कविताएं भी रची हैं। साहित्य पढ़ने और रचने वाले इन कविताओं से बिल्कुल अनभिज्ञ नहीं कहे जा सकते, मगर ऐसे कम ही होंगे जो कि इनसे भलीभांति परिचित कहे जा सकें। इससे आगे के  पेजों को देखने  लिये क्लिक करें NotNul.com

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