जो राष्ट्रगान के 'अधिनायक' को किंग जॉार्ज पंचम समझते हैं, उनमें कॉमन सेंस की कमी है !
“ मेरे एक दोस्त, जो सरकार के उच्च अधिकारी थे, ने मुझसे जॉर्ज पंचम के स्वागत में गीत लिखने की गुजारिश की थी। इस प्रस्ताव से मैं अचरज में पड़ गया और मेरे हृदय में उथल-पुथल मच गयी। इसकी प्रतिक्रिया में मैंने ‘जन-गण-मन’ में भारत के उस भाग्यविधाता की विजय की घोषणा की जो युगों-युगों से, उतार-चढ़ाव भरे उबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरते हुए भारत के रथ की लगाम को मजबूती से थामे हुए है। ‘नियति का वह देवता’, ‘भारत की सामूहिक चेतना का स्तुतिगायक’, ‘सार्वकालिक पथप्रदर्शक’ कभी भी जॉर्ज पंचम, जॉर्ज षष्ठम् या कोई अन्य जॉर्ज नहीं हो सकता। यह बात मेरे उस दोस्त ने भी समझी थी। सम्राट के प्रति उसका आदर हद से ज्यादा था, लेकिन उसमें कॉमन सेंस की कमी न थी।“
( 10 नवंबर 1937 को पुलिन बिहारी सेन को लिखे पत्र में रवींद्रनाथ टैगोर)
( 10 नवंबर 1937 को पुलिन बिहारी सेन को लिखे पत्र में रवींद्रनाथ टैगोर)
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