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Wednesday, July 15, 2015

परमाणु भट्टी में उनने झोंक दी हमारी दुनिया तेल की कीमतों पर न जायें, तेल कुंओं की आग की गिरफ्त की सोचें पलाश विश्वास

परमाणु भट्टी में उनने झोंक दी हमारी दुनिया

तेल की कीमतों पर न जायें, तेल कुंओं की आग की गिरफ्त की सोचें

पलाश विश्वास

शेयर बाजारों में दुनियाभर में शर्तिया गुल गुले बहार है क्योंकि मोगांबो बहुत खुश है।दुनियाभर के मीडिया में अब बरखा बहार है और दुनियाभर की इकोनामी में सांढ़ों का मस्त जलवा है।


आईपीएल कैसिनो जो इकोनामी है,उसके नंगे हो जाने के बावजूद सजा लेकिन किसी को होनी नहीं है।बलि के बकरे तैयार हैं,जिनके गले फांसी के पंदे के माफिर हैं बदस्तूर।


गला जिनका मोटा है और पिछवाड़ा भौत भारी बा,कुछन बिगड़ल उनर हो।


दुनियाभर में मुक्तबाजार में मनुष्यता और प्रकृति के खिलाफ जो भी युद्ध अपराधी बाड़न,उन सबकी दसों उंगलियां घी में लथपथ और सर कड़ाही में है।


मसलन कोलकाता के जलबंदी होकर डूब जाते रहने के एक राज का खुलाशा कल हुआ जब दक्षिण कोलकाता में मीलों पानी के दरम्यान गुजरना हुआ।


हमने तो यूं ही पूछा था कि तीन दिनों की कड़ी धूप के बाद यह हाल,जवाब झन्नाटेदार मिला,सारा पानी शीतल पेय कारखाने का है,जो न्यू गड़िया मेट्रो स्टेशन के बगल में है।


हमें तो अपने पत्रकार होने पर शर्म आयी कि कितनी खुली हैं हमारी आंखें।


बहरहाल यूनान को और कर्ज के जाल में जकड़ने के बाद ईरान के साथ पांच सुपर शक्तियों के न्यूक्लीअर डील पर न सिर्फ बाजार बल्कि साम्राज्यवाद विरोधी तबके में भी खुशी की लहर है कि इजराइल को जवाब मिल गया और खुशफहमी हो रही हैं हमारे तमाम सातियों को भी कि ईरान से अमेरिका की दोस्ती हो गयी है और इजराइल का कहर थमा रहेगा।


बहरहाल मीडिया ब्लिट्ज का कमाल है कि भारत अमेरिकी परमाणु समझौते का इतना महिमामंडन हो गया और इसके विरोधियों को इस कदर खलनायक बना दिया गया कि कामरेड महासचिव प्रकाश कारत कहीं के नहीं रहे और वाम कैडर किसी को नहीं समझा सके अबतक कि इस समझौते का दरअसल मतलब का होवै है।


अब देखिये कि अंतरराष्ट्रीय कारोबार,राजनय और विदेश नीति का जलवा मुकम्मल परमाणु भट्टी है।


घूम घूम कर हर देश से रिएक्टर खरीदे जा रहे हैं गोआ कि इस देश के हर इंच पर परमानु बिजली से तामीर होगा स्मार्ट डिजिटल भारत ताजमहल,जो दरहकीकत खूबसूरत जितना हो,है वो मकबरा दरअसल।


हम बदबख्त हैं कि खुशी की फिजां को गमगीन करने की जुर्रत कर रहे हैं।


ईरान के शाह का जमाना याद कीजिये जरा जिसके तख्ता को खुमैनी की क्रांति ने पलट दिया। कितने सुहावने रिश्ते थे तब अमेरिका और ईरान के शाह के जमाने में कि अचानक एक दिन अमेरिकियों को बंधक बना लिया गया ईरान में और दोस्ती दुश्मनी में तब्दील हो गयी।


सद्दाम हुसैन के अवसान से पहले अमेरिका के तालिबान और अलकायदा गढ़ने से पहले के उस दौर को याद कीजिये,जब हमारा पंजाब सचमुचो खुशहाल था और किसी को बुरे से बुरे ख्वाब में अंदाजा नहीं था कि अकाली राजनीति का अंजाम खालिस्तान की दहलीज पर सिखों का कत्लेआम होगा और पवित्र स्वरण मंदिर को भारतीयफौजों की गोलंदाजी और फैजी बूटों का कहर झेलना होगा।


तब भी जन्नत का दूसरा नाम कश्मीर था।


फिर अमेरिका की ही खालिस पैदाइश इस्लामिक स्टेट से निबटने की गरज है क्योंकि अमेरिकी वसंत ने अरब दुनिया में बगावत का जलजला पैदा कर दिया है और अबकी दफा दोस्ती की गरज ईरान की नहीं,अमेरिका की रही है।


तनिको भूल जाइये इराक और अफगानिस्तान को जैसे कछ हुआ ही न हो।

पिर याद करें अमेरिकी की शह पर वह खूनी मंजर ईरान इराक युद्ध का जब मध्यएशिया का बचपन युद्ध में जोंका ही नहीं गया,तालिबान और अलकायदा औरर हां,इस्लामिक स्टेट की जिहाद की जीन पका रहा था अपना अंकल सैम।


गौर करे कि तब भी बंटी हुई ती अरब दुनिया और अब भी बंटी हुई है अरब दुनिया।


गौर करें कि तब भी फलीस्तीन पर कहर बरपा रहा था इजराइल।


गौर करें कि अब भी फलस्तीन जल रहा है।

इजराइल का कहर जारी है।

गौर करें कि फलस्तीन मसले से हिंदुस्तान का कोई वास्ता भी नहीं है अब।

गौर करें कि हिंदू राष्ट्र का सबसे बड़ा सहारा है इजराइल।


गौरतलब है कि तब भारतीय राजनय में इजराइल निषिद्ध था और अब परमाणु समझौते के बाद  भारत अमेरिका के आतंकविरोदी युद्ध में इजराइल का पार्टनर है।


और हमने समूचे दक्षिण एशिया में अपने अपने तेलकुएं सजाकर उनमें आग भी लगा दी हैय़ और इंसानियत सुलग रही है लेकिन किसी को इंसानियत के जलने भूनने की बू नहीं आ रही है।


फर्क बस इतना है कि देश अब केसरिया है और हिंदुत्व का जंडा वाशिंगटन में भी फहरा रहा है।


भारत अमेरिका परमाणु संधि से हमारी जहां बदल गयी तो जरा सोचते रहिये कि ईरान अमेरिका परमाणु समझौते के अंजाम आखिर क्या होने हैं।


बुलबुले जो हैं चारों तरफ धुआंधार,वहीं लेकिन हकीकत नहीं है।


ईद मुबारक कह रहा है जो चेहरा,वह दरअसल चेहरा नहीं मुखौटा है।


तेल की कीमतें यकीनन गिर रही हैं लेकिन तेल कुंओं का आखिर क्या भरोसा  कि कब कहां आग लग जाये।


बहरहाल उनने परमाणु भट्टी में हमारी दुनिया झोंक दी है।


बहरहाल हम यकीनन नहीं जानते कि आपभी हमारी दुनिया में हैं या आपकी दुनिया और कहीं है।


बाकी टीवी आप देख रहे हैं।इंटरनेट ब्राउज भी आप कर ही रहे हैं।


हर हाथ में स्मार्ट फोनवा है।


टीवी से आंखों देखा हाल और मंकी बातें कमाल धमाल हैं।


हम पर यकीन हो या नहो।

अमेरिका और ईरान के परमाणु रिश्ते को इताना आसान भी न समझें।


खास और पर इंडिया इंक से निवेदन है कि आर्थिक अखबारों और अर्थशास्त्रियों के लफ्जों को तौल लीजिये क्योंकि हर अर्थशास्त्र से बड़ा लेकिन हकीकत है।


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