यह बात अचरजवाली तो नहीं है |
ऐसी खबर मिली है कि नेस्ले कंपनी ने अपने उत्पादों का गुणबत्ता बढ़ाने के लिए जो लागत किया है उससे काफी ज्यादा रकम विपणन यानी विज्ञापन पर खर्च किया था | असल में, इस ज़माने में उपभोक्ता तो अल्फांजों के कायल हो गये | जनता सामान नहीं खरीदती, सिर्फ बातें खरीदती है | कड़वा बोलनेवाला बहुत मुश्किल से मिठाई भी नहीं बेच पाता, जब कि मीठा बोलनेवाला बहुत आसानी से जहर भी बेच देता है | विपणन विज्ञानं में काफी सारे शोध से पता चल गया है ज्यादातर लोग खरीदने के मामले में अपने हित के पक्ष में निर्णय लेने के काबिल नहीं है | सो उन्हें भटकाते रहो और उनके दिमागों को अपने काबू में लो, बस, किला फतह | जब वेलोग मुठ्ठी में आ गये, आप चलाओ अपना तीर | बिलकुल निशाने पर लगेगी | चूक होने कि कोई गुंजाइश नहीं |
जनता कि मांग क्या है यह जनता क्यों सोचेगी ? यह तो हम सोचेंगे कि आपको क्या सोचना है | आप बेफिक्र रहिये, निश्चित होकर अपने पसीने से सींचा हुआ अपने कमाई का पैसा हमें दीजिये, हम जो चीज आपके हवाले करेंगे, वह निश्चित रूप से आपके मांग को पूरा करेगी | बड़े बड़े डिग्री हासिल करनेवाले दिग्गजों को हमने ख़रीदा है आपके मांग को बनाने के लिये | आप उन चीजों की ही मांग कीजिये जो हमें बनाया है | आपके दिमाग को हमने इस बोझ से मुक्त कर दिया है |
अगर हम काला बनाते है तो सफ़ेद, हरा, पीला, लाल, नीला पसंद करने वालों को समझाना कि काला रंग सबसे उत्तम है | अगर हम गधा बनाते है तो यह पाठ पढ़ाना है कि गधा जैसा काबिल जीव दुनिया में और कोई नहीं है | यह हाथी, घोड़ा, शेर, भालू, गाय, भैंस सबका काम एकेले ही कर सकता है | अगर हम कमीज बनाते है तो यह बताना कि हमारी कमीज इतनी लम्बी है कि ट्रॉउजर की जरुरत नहीं है | अगर हम पेंसिल बनाते है तो इस बात को सबके दिमाग पर बैठाना है यह कलम से इसलिए बेहतर है कि आप इससे बनाये हुए लकीर को आसानी से मिटा सकते | अगर हम कलम बनाते है तो यह समझाना है कि कलम का दाग मिटाना संभव नहीं है | अगर हम साइकिल बनाने है तो बताना कि यह बिना ईंधन के चलनेवाला वाहन है, और अगर बाईसाइकिल बनाते है तो इस पर जोर देना कि इसमें ईंधन का खपत जरूर है, लेकिन इससे आप बहुत तेज चल पाएंगे |
लेकिन जो चीज हम बनाते है, वो तो दूसरों भी बनाते है | तो यह समझाना है कि हमारे उत्पाद बाजार में बाकी कंपनियों से हर माने में बेहतर है | अब भी कुछ दुबिधा रह गया तो रियायतें का बौछार लगाना है | २० % दाम बढ़ाकर २० % का छूट दे देना | सस्ता समझकर दुकानों में भीड़ उमड़ पड़ेगी | भीड़-भाड़ में चीजों की जांचना भी संभव नहीं होता | घटिया माल भी बिक जाता है और सस्ता खरीदने के आनंद में जनता भी हमपर खुश रहते है | दोनों तरफ से लाभ ही लाभ है |
क्या जानना चाहते है कि हम कैसे जनता के मन को जीत लेते है ? इस काम को अंजाम देने के लिये समाचार-पत्रों, होर्डिंग और सारे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया है | इन सारे दोस्तों हमारे पैगाम को आहिस्ता आहिस्ता जनता के दिमाग में पैठ ज़माने के लिये मदद करते | बार बार कहने से झूठ सच और सच झूठ अपने आप बन जाता है | सिर्फ थोड़ा धीरज रखने कि जरुरत होती है | इसके वाबजूद भी लक्ष पूरा न हो तो फिल्म सितारे या क्रिकेट खिलाडियों से काम तमाम करते है | यह लोग कुछ भी कह दें तो बेझिझक जनता मान लेते है | यह सवाल भी कोई नहीं उठाता कि क्या यह चीज वो खुद इस्तेमाल करते है या नहीं | लेकिन इन सारे व्यवस्था का प्रबंधन काफी खर्चीला है | इसलिए हमारे उत्पादों का दाम भी ऊँचा ही रखना पड़ता है | और फिर जनता क्यों नहीं देगी ? अच्छे चीजों की ऊँची कीमत तो चुकाना ही पड़ता है |
लेकिन ग्राहकों को लुभाने और नए ग्राहक बनाने हेतु सही विपणन नीति अपनाना हमारे लिए बेहद जरुरी बन गया है | समाज के हर तबके के लोगों के पसंद और भावावेश पर ध्यान देना पड़ता है | व्यापार की दुनिया में अपने विपक्ष को मात देना भी कम मायने नहीं रखता है | अगर उत्पाद महिलाओं के लिए है तो महिलाओं के पसंद पर जोर देना पड़ता है | अगर सेहत के दृष्टि से जनता को किसी प्रोडक्ट पर आशंका हो तो उसे दूर करने के लिए किसी तंदुरस्त खिलाड़ी या जाने-पहचाने चिकित्सकों को विज्ञापनों के जरिये जनता के सामने पेश करना पड़ता है |
वास्तव में ग्राहकों को लेकर यह लड़ाई शस्त्र से नहीं दिमाग से लड़ी जाती है |
सवाल उठ सकता है कि इस लड़ाई लड़ने के लिए सैनिकों की जुगाड़ कैसे होती है ? यह कोई ऐरा-गैरा नत्थू खैरा का काम नहीं है | उसके लिए विशेष रूप से प्रशिक्षण प्राप्त आदमीं चाहिए | जी हाँ, यह प्रशिक्षण भी महंगे दर पर उपलब्ध कराया जाता है और इसके लिए देश के नामी-गिरामी बिजनेस स्कूलों ने सहयोग का हाथ बढ़ा दिया है | यहाँ पर सैद्धांतिक एवं व्यवहारिक आधार पर मानव-मन और उस पर वश पाने का नए नए तरीका, विद्यार्थियों को सिखाया जाता है | ऐसे विशेष रूप से प्रशिक्षित लोगों से ही बाजार पर कब्ज़ा करने कि लड़ाई लड़ी जाती है | यह काम अपनी चेतना और विवेक को ताक पर रखकर ही करना पड़ता है | रोजगार के दृस्टि से व्यापार-शास्त्र के सबसे लाभ प्रदानकारी विभाग है विपणन-शास्त्र और अधिकतर लोग मुख्य विषय के रूप में इसीको ही चुनते है |
आम जनता सचिन तेंदुलकर को देखकर पेपसी ही पियेगा और सड़क पर नीबू-पानी बेचनेवाला तो भूखा मरेगा | सलमान खान जैसी ताकत पाने के लिए हम तो उस महंगा बनियान ही इस्तेमाल करेंगे और छोटे दूकानदार तो ग्राहकों के लिए तरसता ही रहेगा |
तो मुझे इस बात से बिलकुल अचरज नहीं होता कि नेस्ले कंपनी ने सिर्फ अपने सामग्री के विपणन के लिए ही अपना खजाना खुल दिया और गुणबत्ता पर कंजूसी का रुख अपनाया | कंपनी के तरफ से यह बरताव तो जायज और उचित ही लगता है | दुख केवल इस बात की है कि 'जागो ग्राहक जागो' नारा से भी उनकी नींद नहीं खुल रही है |
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