यूनान की हिमायत में एक खत
Posted by Reyaz-ul-haque on 7/03/2015 09:24:00 PMपिछले पांच वर्षों के दौरान यूरोपीय संघ (ईयू) और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने यूनान पर खर्चों में कटौती का एक ऐसा कायदा (ऑस्टेरिटी) थोप रखा है, जिसकी इतिहास में पहले कोई मिसाल नहीं मिलती. और यह बुरी तरह नाकाम रहा है. अर्थव्यवस्था 26 फीसदी सिकुड़ गई है, बेरोजगारी 27 फीसदी तक बढ़ी है, नौजवानों में बेरोजगारी 60 फीसदी है और सकल घरेलु उत्पाद के मुकाबले कर्ज का अनुपात 120 फीसदी से बढ़ कर 180 फीसदी हो गया है. आर्थिक तबाही ने एक इंसानी संकट को जन्म दिया है, जिसमें तीस लाख से ज्यादा लोग गरीबी रेखा या उसके नीचे गुजर कर रहे हैं.
इस पृष्ठभूमि में, यूनान की अवाम ने 25 जनवरी को सीरिजा के नेतृत्व में एक सरकार को चुना जिसको खर्चों में कटौती का एक साफ साफ अवामी फरमान हासिल था. इसके बाद जारी बातचीत के दौर में, सरकार ने इसे साफ किया कि यूनान का भविष्य यूरोजोन और ईयू में ही है. हालांकि कर्जदाताओं ने अपने नाकाम रहे नुस्खों को ही जारी रखने पर जोर दिया और कर्ज को माफ करने के इन्कार किया, जिसको आईएमएफ ने बाकायदा अव्यावहारिक माना है. और आखिरकार 26 जून को कर्जदारों ने यूनान को बातचीत से परे एक पैकेज के साथ अल्टीमेटम जारी किया, जो खर्चों में कटौती को और भी बढ़ाएगा. इसके बाद यूनानी बैंकों में पैसों के लेन-देन (लिक्विडिटी) को निलंबित कर दिया गया और पूंजी पर नियंत्रण लागू कर दिया गया.
इस हालत में सरकार ने इस रविवार को होनेवाली एक रायशुमारी में यूनानी अवाम से मुल्क के भविष्य का फैसला करने की मांग की है. हम यकीन करते हैं कि यूनानी अवाम और जम्हूरियत को दिया गया यह अल्टीमेटम खारिज होना चाहिए. यूनानी रायशुमारी यूरोपीय संघ को एक मौका देती है कि यह एनलाइटेनमेंट (प्रबोधन) के अपने मूल्यों – बराबरी, इंसाफ, एकजुटता – और जम्हूरियत के अपने उसूलों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराए, जिस पर इसकी वैधानिकता टिकी हुई है. जिस जमीन पर जम्हूरियत पैदा हुई थी, वह जमीन आज यूरोप को 21वीं सदी में अपने आदर्शों पर फिर से खड़े होने का एक मौका दे रही है.
एटेनी बालिबार
कोस्तास दोजिनास
बारबरा स्पिनेली
रोवन विलियम्स
इमानुएल वैलरस्टेन
स्लैवोज जिजेक
माइकेल मैंस्फील्ड
जूडिथ बटलर
शैंटेल मोऊफ
होमी भाभा
वेंडी ब्राउन
एरिक फसीन
तारिक अली
अनुवाद: रेयाज उल हक। मूल: गार्डियन। वर्सो बुक्स पर यह विशेष सामग्री भी पढ़ें।
No comments:
Post a Comment