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Tuesday, July 7, 2015

रब के बंदे और रब की बंदियों,खौफ के इस बेपनाह मंजर के खिलाफ जीत सिर्फ मुहब्बत,मुहब्बत है उनने धर दिये परमाणु रिएक्टर हर इंसान के हिस्से,अब रोजी रोटी को रोये तो भौत मारेगा गब्बर,बिरिंची बाबा! पलाश विश्वास

रब के बंदे और रब की बंदियों,खौफ के इस बेपनाह मंजर के खिलाफ जीत सिर्फ मुहब्बत,मुहब्बत है

उनने धर दिये परमाणु रिएक्टर हर इंसान के हिस्से,अब रोजी रोटी को रोये तो भौत मारेगा गब्बर,बिरिंची बाबा!

पलाश विश्वास

उनने धर दिये परमाणु रिएक्टर हर इंसान के हिस्से,अब रोजी रोटी को रोये तो भौत मारेगा गब्बर

हर रोज मौत की खबर है रिवाज इन दिनों कि घोटालों का लिलसिला बेनकाब होने लगा

नंगे बिर्रंची बाबा का जय बोलो,बोलो,बोलो ,जय जय जय जय हे,वंदे मातरम् जय हे



घोड़े तमाम बेच दो यारों,नींद भर सोने की तमन्ना हो अगर यकीनन अंधेरे में यहां

फिरभी ख्वाबों पर पहरा बहुत है सख्त इन दिनों कि मुहब्बत हरगिज मना है महाजिन्न कसम

नफरत के रक्तबीज छिड़क सकें जो सबसे ज्यादा,वे ही सियासत के बजरंगी बिररंची बाबा

नंगे बिर्रंची बाबा का जय बोलो,बोलो,बोलो ,जय जय जय जय हे,वंदे मातरम् जय हे


रब के बंदे और रब की बंदियों,खौफ के इस बेपनाह मंजर के खिलाफ जीत सिर्फ मुहब्बत,मुहब्बत है

टूटकर कर,अगर दिलों में हो मुहब्बत,टूटकर किये जा मुहब्बत और मुहब्बत भर दें

कायनात के हर निशां में कि नफरत के खिलाफ मुहब्बत ही जंग है इन दिनों तो

रब हो न हो,मजहब हो न हो,इबादत हो न हो,सजदा करें न करें,इंसान बनके दिखा

जिंदड़ी जो खूबसूरत बने इस बेइंतहा नफरत का राजकाज कर दे तमाम,यकीन कर

कि टूटकर किये जा मुहब्बत अगर हुआ न तू ध्वजभंग या कबंध बिना चेहरा रोबोट


परमाणु धमाकों के इस सिलसिले के खिलाफ,चियारियों,चियारिनों के जलवे के खिलाफ

घनघनाते डालर की खाप पंंचायतों के खिलाफ मुहब्बत का अलाप बंद न हो कभी

सिरे से नंगी नफरत की औकात क्या कि गुलोगुल बहार मुहब्बत का करें मुकाबला

आखिर नंगा जो राजा हुआ,योगाभ्यास कर लें चाहे जितना चाहे देश बेचें,जान लो

चमचमाते सूट बूट में आखिर वह ध्वजभंग हुआ है इन दिनों,कत्लगाह बनाये जो

कायनात के इस बेहतरीन आलम को पल छिन पल छिन,वैदिकी हिंसा भी उसकी

नफरतों की फसल है आखिर,क्योंकि मुहब्बत उसने की नहीं कभी कभी नहीं कभी नहीं


टाइटैनिक की मुद्रा हो तो टाइटैनिक के साथ डूबने का जिगर चाहिए यकीनन

चौसठ आसन साधने को कंडोम कारोबार का कोई काम नहीं है यकीनन


मुहब्बत के लिए कोई दुआ नहीं चाहिए,नहीं चाहिए मजहब की इजाजत

दुनियाभर की खाप पंचायते रोक न सकै हैं मुहब्बत कहीं कभी भी जान लो


फासिज्म के राजकाज से डरै वही जिसे वतन से मुहब्बत न हो कभी

वतन को बेचें जो,वही तो,हां वही तो नंगा बिररिंची बाबा का बिरगेड हो

चमाचम चमाचम हाथों में नंगी तलवारें,खून की नदियां बहा रहे हर कहीं

वहीं तो नंगे बिररिंची बाबा हो,मुहब्बत से डरे हो जो वही नंगा बिररिंची बाबा

ताजा हाल यह कि मूसलादार खूब बरसै मानसून इन दिनों इस तरह कि धंधे के लिए रेड अलर्ट है कि सारा पहाड़ उनके लिए हिल स्टेशन

क कहीं न कोई इंसानी आबादी है,कहीं न दरखत कोई बचे है

सारी नदियां बंधी है,एक एक इंच सीमेंट का जंगल है इन दिनों

घाटियां सारी डूब में तब्दील,आबादी की कोई खबर कहीं नहीं

सिर्फ खूबसूरत तस्वीरों का बेइंतहा कोलाज है पहाड़

जहां न खून का कोई सुराग है और न कातिलों के कोई निशां


हिमालय के चप्पे चप्पे में परमाणु बम महकै है

इंसानियत की कोई फिक्र नहीं उन्हें

जो देश विदेश घूमकर बोयें नपरत सिर्फ

महाजिन्न हुआ तो क्या

जिसके न दिल है और न दिमाग

मशीन है वह मुकम्मल पीपपी माडल


मुहब्बत का कोई स्टेटस नहीं

न कहीं मुहब्बत का कोई कमांड

रोबोट हुआ जो वह पीपपी माडल

मेकिंग इन में मेड इन मना है

ग्रीक हुआ ग्रीक्जेट तो क्या

सबक न सीखे हैं रोबोट

न बूढ़ा तोता कहीं कभी

राम राम जाप सकै है

चाहे राम की सौगंध खाओ

चाहे भव्य राम मंदिर बनाओ

बिन मुहब्बत इबाबत बेमायने

बिन मुहब्बत मजहब बेमायने


नफरत की अबाध पूंजी है

नफरत ही मेकिंग इन है

नफरत ही स्मार्ट स्टार्टअप

नफरत ही तमाम ऐप्पस है

नफरत हो गयी डिजिटल

नफरत बायोमैट्रिक

नफरत की क्लोनिंग

नफरत नेटवर्किंग है


देश सारा इन दिनों डूब है

हिमालय टूट टूटकर गिरै है

नदियां कगारे बांध तोड़े

समुंदर सारे बहकै हैं

सीमेंट के जंगल महके हैं

आदमखोर तमाम निकलै है

भेड़ियों के झुंड साथ साथ

बेइंतहा आखेट है

बेइंतहा कत्लगाह है वतन


कयामतों के कारीगर वे

कयामत ही उनके एटीएम

अय्याशियों के वास्ते

हर आईपीएल इंतजाम

कि चियारियों चियारिनों का

यह बेइंतहा व्यापमं

और मारे जायेंगे हर बेगुनाह


मुर्दा अगर हुआ  तू

लफ्जों को आवाज दें

कंबंध अगर हुआ न तू

चेहरे को रोशन कर

जान है कहीं कोई

तो मुहब्बत कर लें

इस नफरत का जवाब

मुहब्बत है

मुहब्बत हथियार है

फासिज्म के खिलाफ


दांते रहे महाकवि कोई

जो कह गये भौत पहले

सर्वहारा की सियासत से पहले

बहुजन अस्मिता से पहले

कि इंसानों में जमात

वह सबसे बड़ी कि

जिसके जिस्म में दिल न हो

तो वतन कबंधों का हुआ


इस कबधों के वतन में

दिलगारों की तलाश है


इस कबधों के वतन में

जिगर की तलाश है


इस कबधों के वतन में

मुहब्बत की तलाश है







स्टेट टेरर के सबसे बड़े सच सलावा जुड़ुम, आफस्पा और जख्मी हिमालय

पर पहले राय बताइये,हाजिरान!

कानून की तरह धर्मनिरपेक्षता भी अंधी जो गुजरात से लगे मध्य भारत में सलवाजुड़ुम पर खामोश तो कश्मीर पर न बोले है और न पूर्वोत्तर का हकीकत जाने है और न हिमालय का दर्द बूझै है?

मुहब्बत न की हो टूटकर कभी तो क्या समझिये इस कायनात को,क्या समझिये इंसानियत के जख्मों को और क्या देखिये कि बरकतों और नियामतो से कैसे बेदखल है आवाम जब सत्ता का मतलब राष्ट्रीय आतंक हो!

सच को दफनाने की रस्म में हम सारे बाराती जो हुए,जनाजे में शामिल संगदिल हुजूम!

व्यापमं घोटाला कोई सलवा जुड़ुम से अलग थलग मामला नहीं है।जिन लोगों को इस मामले में एक टीवी चैनल के बड़े खोजी पत्रकार की मौत के बाद राष्ट्र का आतंक नजर आ रहा है,उन्हें बस्तर या दांतेबाडा़.मध्यप्रदेश या छत्तीसगढ़ या दिश में कहीं भी आदिवासी भूगोल में जारी सलवाजुडुम में राष्ट्र का आतंक नजर नहीं आया,बल्कि वे इसे राष्ट्रीय एकता और अखडता का मामला मानते हुए सैन्य अभियानों के पक्ष में समां बांधते नजर आते रहे हैं।


आदिवासी भूगोल,गैर  नस्ली हिमालयी जनता,पूर्वोत्तर और कुछ हद तक बिहार बंगाल ओड़ीशा,कश्मीर और दक्षिणा भारत में जब तब राष्ट्र के आतंक का दोजख भोगते लोगों के लिए हमारे दिलोदिमाग में कोई संवेदना कहीं बची नहीं है।


आदरणीय पुण्य प्रसूण वाजपेयी ने मरम को भेदते हुए लिखा है और जबसे पढ़ा हूं,दिल तार तार है।इसीतरह भड़ास में तमाम टिप्पणियां और फेसबुक के वाल के मुखातिब होकर अक्षय की अंत्येष्टि में शामिल राजनीति के रंग बिरंगे चेहरे ही नजर आ रहे हैं मुझे,जबक जिसीक जिंदगी की डोर टूटी है,वह भी हमारा स्वजन है।जो लोग व्यापमं के सवाल पर जमीन आसमान एक कर रहे हैं,स्टेट टेरर के बारे में , जो बुनियादी मुद्दा पुम्यप्रसूण ने उठाया है,उसके बारे में सैन्य अभियानों के बारे में ,राज्य के सैन्यीकरण के जरिये वर्ग वर्ण आधिपात्य के अमोघ मनुस्मृति शासन के बारे में उनमें से किसी की राय संघ परिवार से अलग है नहीं,हमारा मसला लेकिन यही है।


हम वाजपेयी के मंतव्य से सहमत हैं और उसको दुबारा दोहराते हैंः

अक्षय नहीं रहा : खबरों में जिन्दगी जीने के जुनून में डोर टूटी या तोड़ी गई ?

अगर स्टेट ही टैरर में बदल जाये तो आप क्या करेंगे

अगर स्टेट ही टैरर में बदल जाये तो आप क्या करेंगे। मुश्किल तो यही है कि समूची सत्ता खुद के लिये और सत्ता के लिये तमाम संस्थान काम करने लगे तब आप क्या करेंगे। तो फिर आप जिस तरह स्क्रीन पर तीन दर्जन लोगों के नाम, मौत की तारीख और मौत की वजह से लेकर उनके बारे में सारी जानकारी दे रहे हैं उससे होगा क्या।


फिरभी हमारे लिए स्टेट टेरर किसी एक पत्रकार की मौत नहीं है।

फिर उस नजरिये की भी बल्ले बल्ले कि राजधानी का विशेष संवाददाता हुआ पत्रकार और जनपदों में पत्रकारिता के कारिंदे जो मारे जा रहे हैं,वे हुए पनवाड़ी, अपराधी।


उस दिन मगर इतना ही लिख सका कि नैनीताल में भूस्खलन की खबर आ गयी।रात में ही नेपाल में फिर भूकंप की खबर थी।झेलम कगारें तोड़कर कश्मीर घाटी को डुबो रही है तो दार्जिलंग कलिम्पोंग मिरिक के पहाड़ों में तबाही है।सिक्किम बाकी देश से कटा हुआ है और अब जब लिख रहा हूं तो उत्तराखंड में,उससे लगे हिमाचल में अगले दो दिन भारी बरसात का अलर्ट जारी हो चुका है।


यह स्टेट टेरर के भूगोल की झांकियां है,जिसे हम बाकी देश के लोग सिरे से आजादी के बाद से लगातार नजर्ंदाज करते रहे हैं।


क्योंकि हमारी चेतना हमारी अस्मिताओं में कैद है।


गैरनस्ली भूगोल की तबाही हमें कहीं से स्पर्श नहीं करती।


केदार जलआपदा में स्वजनों को खोने की पीड़ा का अहसास हुआ तनिक तो खबरें भी बनीं तो नेपाल को फिर हिंदू राष्ट्र बनाने का तकादा है तो उस महाभूकंप की धूम रही।अब नेपाल की दिनचर्या के लहूलुहान जख्मों और लगातार जारी झटकों और भूस्खलन जिसका असर भारत के हिस्से के हिमालय में भी खूब हो रहा है,उसकी चर्चा की फुरसत नहीं है किसीको।ताजा मिसाल नैनीताल में आज तड़के भूस्खलन की खबर है,जिस पर देश की नजर लेकिन नहीं है।


हमारे लिए राष्ट्र का आतंक इंसानियत के लिए जितना खतरनाक है,उससे कहीं ज्यादा खतरनाक है इस कायनात के लिए,उसकी रहमतों और बरकतों के लिए।


कयामतें अस्मिता देखकर शिकार नहीं बनाती और पूंजी के खुल्ला आखेट की तरह रंग रुप जाति हैसियत देखकर तय नहीं करती कि किसे मारे किसे रखें।


जैसे इन दिनों मेरे पहाड़ लहूलुहान हो रहे हैं,वैसे ही लहूलुहान होंगे राजधानिययों में सत्ता के तमाम तिलिस्म भी और यह सौन्दर्यशास्त्र प्रकृति का इतिहास है और उसका विज्ञान का भी,जिसे सत्ता का कोई रंग लेकिन बदल नहीं सकता।





कानून की तरह धर्मनिरपेक्षता भी अंधी जो गुजरात से लगे मध्य भारत में सलवाजुड़ुम पर खामोश तो कश्मीर पर न बोले है और न पूर्वोत्तर का हकीकत जाने है और न हिमालय का दर्द बूझै है?


मुहब्बत न की हो टूटकर कभी तो क्या समझिये इस कायनात को,क्या समझिये इंसानियत के जख्मों को और क्या देखिये कि बरकतों और नियामतों से कैसे बेदखल है आवाम जब सत्ता का मतलब राष्ट्रीय आतंक हो!


सच को दफनाने की रस्म में हम सारे बाराती जो हुए,जनाजे में शामिल संगदिल हुजूम!


जिस अबाध पूंजी प्रवाह की खातिर हम राष्ट्र को सैन्यतंत्र में बदलने को तत्पर हैं,जिस हिंदू राष्ट्र के लिए,ग्लोबल हिंदुत्व के वैश्विक आधिपात्य के लिए हम फासीवादी नरसंहारी वैदिकी हिंसा की पैदल फौजे हैं,उसका भी क्रिया कर्म अब होने ही वाला है।


भले ही बाबी जिंदल बन जाये अमेरिका का हिंदू राष्ट्रपति अश्वेत बाराक ओबामा की तरह,डालर का वर्चस्व अब टूटने ही वाला है।


आदिवासी भूगोल का जनाजा निकालने वालों,हिमालय को किरचों में बिखेरने वालो संभल जाओ कि कयामतें शासकों और प्रजाजनों में फर्क नहीं करती।


झोपड़ियां गिरें न गिरें,आंधियां महलों के परखच्चे उड़ा देती है।हूबहू लेकिन यही होने वाला है।


दुनिया में भारत अव्वल वह देश है जो मेकिंग इन के बहाने एकमुश्त कृषि,वाणिज्य और उद्दोग विदेशी पूंजी,विदेशी हितों के हवाले करता जा रहा है क्योंकि देश बेचो सलवा जुड़ुम ब्रिगेड सत्ता में है और महाजिन्न को अडानी अंबानी के विश पूरी करने से फुरसत नहीं है बाकी वे सूट बूट में बिरंची बाबा है।जिनकी सत्ता के खिलाफ पत्ते तक खड़कने नहीं चाहिए।


परिंदे जहां पर न मार सके हैं,वहां मौतों के उस सिलसिले का खुलासा करने गया अपना अक्षय,राष्ट्र के आतंक की राजधानी से जहां गुजरात नरसंहार के सच के मुकाबले,सिख संहार के इतिहास के मुकाबले,दंगों के अबाध राजकाज के मुकाबले नरसंहार संस्कृति का राजकाज आजादी के पहले दिन से मुकम्मल है।


दरअसल मध्यभारत में सलवा जुड़ुम संस्कृति के खिलाफ अटूट चुप्पी हमारा सबसे बड़ा अपराध है और इसे दर्ज करने की कोई जहमत हमने अबतक नहीं उठायी है।


यह वही मध्यप्रदेश है,जहां साहित्य और संस्कृति को सत्ता का अंग बनानेकी कवायद आपातकाल में हुई और वहीं से भगवाकरण की आंधियां देश भर में फैली हैं।


आभिजात नागरिकों,नागरिकाओं,बताइये कि कब हम इस स्टेट टेरर की मशीनरी पर बोले हैं।गुजरात के अलावा राजदनीति ने कब सलवाजुड़ुम के मधयभारत को मुद्दा बनाया है,बताइये।


व्यापमं पर जो लोग खूब बोले हैं,जरा उनसे पूछिये कि जल जमीन जंगल से बेदखली का जो अबाध अश्वमेधी राजसूय जारी है निरंतर,उसमें उनकी भूमिका क्या है और वे किस पक्ष में खड़े हैं।


वधस्थल पर मरे गये अक्षय को ही हम देख नहीं रहे हैं,न हम कटे हुए सरों को देख रहे हैं,हम देख रहे हैं कंबंधों का वह महाजुलूस,जो इस देश का मीडिया,कला साहित्य और माध्यमों से जुड़े कंबंध निबंध हैं।


वधस्थल का यह तमाशा बहुत जल्द मंदी की सुनामी में दफन होने वाला है,दोस्तों।ढहते हुए हिमालय से यह सबक जरुर सीख लीजिये कि मसलन ग्रीस ने यूरोपीय देशों के बेलआउट पैकेज को ठुकरा दिया है। और इसके साथ ही ग्रीस के यूरोजोन से बाहर होने की आशंका गहरा गई है। ग्रीस में जनमत संग्रह में 60 फीसदी से ज्यादा लोगों ने बेलआउट प्रस्ताव के खिलाफ वोटिंग की है।


बधाई हो ग्रीस की जनता को ,जिसने यूरोप और अमेरिका के वर्चस्व को,डालरतंत्र को धता बता दिया।

इसी के मध्य वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ग्रोथ के लिए भूमि अधिग्रहण बिल और जीएसटी बिल पास होने को जरूरी बताया। वित्त मंत्री ने कहा कि अगर 8-10 फीसदी ग्रोथ हासिल करना है और गरीबी दूर करनी है तो अहम बिलों का मॉनसून सत्र में पास होना जरूरी है।


साथ ही वित्त मंत्री ने ये भी कहा कि सामाजिक और आर्थिक मापदंडों पर की गई जनगणना इसलिए की गई है कि सोशल स्कीम्स का फायदा सिर्फ जरूरतमंदों तक पहुंच सके। आपको बता दें कि मॉनसून सत्र की शुरुआत 21 जुलाई से होने वाली है और विपक्षी पार्टियों ने पहले से सरकार को घेरने का एलान कर दिया है। ऐसे में अहम बिल इस सत्र में पास कराना सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गई है।



दरअसल, कर्ज मिलने के नए प्रस्ताव में ग्रीस में खर्चों में भारी कटौती की शर्तें थीं। और ग्रीस के प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिप्रास ने लोगों से इस प्रस्ताव के खिलाफ वोट करने की अपील की थी। हालांकि ग्रीस के इस फैसले के बाद देश में आर्थिक संकट और गहराना तय है।




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