रेबड़िया बंट रही जहां,भूखों नंगों की खैर कहां?
हमको भी वेतन में सौ फीसद और पेंशन में पचहत्तर फीसद बढ़ोतरी संसद विधानसभा दे दें,काहे का वेज बोर्ड और काहे को सुप्रीम कोर्ट को दस्तक?
पलाश विश्वास
क्या आप जानते हैं कि आपके सांसदों को क्या-क्या सुविधाएं मिलती हैं और वे अब कैसी सुविधाएं चाहते हैं?
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हमको भी वेतन में सौ फीसद और पेंशन में पचहत्तर फीसद बढ़ोतरी संसद विधानसभा दे दें,काहे का वेज बोर्ड और काहे को सुप्रीम कोर्ट पर दस्तक?
समरसता का सामाजिक न्याय और समता का जलवा देखना हो तो फौरम सांसद विधायक बनने की जुगत करना बेहतर है।चुनते न चुनते पुश्तों तक ऐश ही ऐश है।शपथ लेते न लेते तजिंदगी पेंशन।दो मिनट में वेतन में सौ प्रतिशत वृद्धि,दो मिनट में पेंशन में 75 फीसद तक इजाफा।
हमें नहीं मालूम कि विचारधाराओं के जंडेवरदार संघी,कामरेड,गांधीवादी,समाजवादी अबंडकरी तमाम इंद्रधनुषों के जो नुमाइंदे हैं,उनमे से किस किसने इन रेबड़ियों के खिलाफ कब कहां आवाज उठायी।सूची कोई भेजें, तो जिंदगानी धन्यधान्य हुई जाई।
विकास दर छलांगा मारे रही है।मंत्री झूठ न बोले हैं।लेकिन यह विकास हमारे उन नुमाइंदों का हुआ करे हैं,जिन्हें हम भूखों नंगों को जीने लायक बनाने के लिए हम चुना करते हैं।देश का विकास हो न हो।
अब लीजिये,तेरह साल के बाद मीडियाकर्मियों को मजीठिया मिलने की हरी झंडी हो गयी तो मालिकान देने से परहेज करे हैं।विवादा का निपटारा न होवै,यशवंत बिचारे सांप से डंसवाके भी चैन से बैठ न पावै के मजीठिया मंच का जी का जंजाल बनावै है।जिसे देखो,वो सुप्रीम कोर्ट धावै।
मालिकान का जैसे मन आया,वैसे कंपनी बदल दी,सेवा शर्ते बदल दी,एग्रीमेंट करवा लिया,कहीं वेतन कुछ,तो कहीं कुछ।कुछ राजघराने के वारिश तो बाकी लोग अस्पृश्य कुजात।ग्रेडिंग और कैटेगरी का झमेला,टंटा बहुतो है।
भाड़े पर हैं जो उनको बाबाजी का ठुल्लु।
किसी को एकही हाउस में पांच दिन का हफ्ता तो किसी को छहदिन का हफ्ता।
दो दो प्रमोशन की सिफारिश और लोग जिंदगी बिता कर विदा हो रहे कि एको प्रोमोशन नहीं मिला और पेंशन जो पीएफ का आधा हिस्सा कुर्बान करके मिलेगा,वह हद से हद दो तीन हजार।
इस घमासान की जरुरत नइखै।
संसद में सीधे कानून बना दो कि जैसे योजना आयोग का रफा दफा हुआ,अब वेज बोर्ड भी ना चाहि।सीधे सांसदों की तरह सौ फीसद वेतन वृद्धि एक मुश्त और पेंशन में 75 फीसद का इजाफा।
सीधा हिसाब है।न ग्रेडिंग का झंझट।न कैटेगरी का विवाद।ना टाल मटोल। न सुप्रीम कोर्ट के दर्वज्जे खिड़की पर दे दनादन दस्तक। न लेबर कोर्ट को तकलीफ।सालोसाल इंतजार करने के बाद बाबाजी काठुल्लु देखते रहने के सिलसिले से तो निजात मिले।
सरकारी कर्मचारी भी वेतनमान सुधारने के आंदोलन से बाज आकर माननीय सांसदों को मिले वेतनवृद्धि और पेंशन इजापा के बराबार उसी मानक पर वेतनमान पेंशन की मांग करें तो सारी पेचीदिगियां खत्म हो जाई।
रिटायर सुरक्षा कर्मियों और सेना के जवानों से भी भेदभाव क्यों,उन्हें भी शत प्रतिशत वेतन वृद्धि और पेंशन में इजाफा 75 परसेंट तुरंते लागू की जाये।
बाकी भत्ता और सब्सिडी की थाली की मांगें भलें आप रखें न रखें।
इसी तरह संगठित असंगठित निजी महकमों में भी संसदीय वेतनमान लागू कर दिया जाना चाहिए और तुरंत प्रबाव से मजदूरी बी डबल हो जानी चाहिए।
बाजार में नकदी की ऐसी गंगा बहेगी और खरीददारी की सुनामी ऐसी होगी कि आठ फीसद की क्यों उम्मीद करके रह जायें,सांसदों विधायकों और मंत्रियों का जो विकास हुइबे करै हैं,विकास दर भी सौ फीसद वेतनवृद्धि दर के हिसाब से एकदम सौ फीसद हुई जाये।रेटिंग एजंसियां फुक्का फाड़कर रोवै और तमामो बगुला भगत अर्थशास्त्री तेल लेने धावै।देश तुरंते अमेरितका चीन।
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