आस्था का कंडोम कारोबार और स्त्री के अधिकार
पलाश विश्वास
आज की सबसे अच्छी खबर यह है कि अविवाहित मां को सुप्रीम कोर्ट ने मातृत्व के अधिकार दे दिये हैं।विशुद्धता और खाप संस्कृति के धर्मांध में अब भी दासी मुक्त बाजार में खरीदने वाली सामग्री के रुप में इस्तेमाल की जा रही स्त्री के सशक्तीकरण की इससे कौन सी दिशा खुलेगी और उनकी गुलामी की जंजीरें कैसे टूटेंगी,इसका हमें अता पता नहीं है।फिरभी यह एक ऐतिहासिक फैसला है लेकिन इस फैसले को स्त्री के हक में बदलने के लिए स्त्री को धर्मोन्माद,फाप संस्कृति और मुक्तबाजार की उपभोक्ता संस्कृति से मुक्त करने की भी बारी चुनौतियां सामने हैं।
पिछले दस वर्षो में स्त्रियों के हित में कई नए कानून बने तो कई कानूनों में संशोधन भी हुए। इस दशक को स्त्रियों के लिए स्वर्णिम-काल समझा जा सकता है। लेकिन स्त्री को दरअसल हासिल क्या हुआ,मौजूं सवाल यही है।
बहरहाल अविवाहित माँ के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला हो गया। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फ़ैसले में कहा है कि अविवाहित महिला अपने बच्चे के बाप की सहमति के बिना भी बच्चे की क़ानूनन अभिभावक हो सकती हैं। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रमजीत सेन और अभय मनोहर सपरे की एक खंडपीठ ने एक महिला की याचिका पर ये फ़ैसला सुनाया। अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा है कि अविवाहित माँ के मामले में पिता के नाम पर ज़ोर देने की ज़रूरत नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसले में कहा कि अविवाहित मां बच्चे के पिता का नाम बताए बिना और उसकी अनुमति के बगैर बच्चे की गार्जियन हो सकती है। न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन और न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे की खंडपीठ ने एक राजपत्रित महिला अधिकारी की अपील स्वीकार करते हुए यह व्यवस्था दी। दरअसल अधिकारी ने बच्चे के संरक्षण संबंधी प्रावधानों को चुनौती दी थी, जिसमें अविवाहित होते हुए भी बच्चों के संरक्षण के मामले में बच्चे के पिता को शामिल करने का प्रावधान है। न्यायालय ने दिल्ली की निचली अदालत और दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया।
अधिवक्ताओं का कहना है कि इस फैसले से न केवल बच्चे की सुरक्षा बढ़ेगी बल्कि मां की भी सुरक्षा बढ़ेगी। वरिष्ठ अधिवक्ता रश्मि भूषण कहती हैं कि अविवाहित लड़कियां कई बार मां बन जाती हैं। बाद में पुरुष उसे स्वीकारने को तैयार नहीं होता है। ऐसी स्थिति में बच्चा असुरक्षित हो जाता है। साथ ही मां के बारे में भी लोग गलत सोचने लगते हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ऐसी महिलाओं को ताकत मिलेगी।
आज की दूसरी बड़ी खबर है कि नासिक कुंभ में कंडोम की कमी प्रशासन के लिए भारी सरदर्द का सबब है क्योंकि कंडोम की मांग दोगुणी है और गर्भनिरोधक की मांग में भी पचास फीसद वृद्धि हो गयी है।
गौरतलब है कि 14 जुलाई को शुरू हो रहे नासिक से पहले कंडोम की कमी के कारण से एड्स और एचआईवी के खतरे की आशंका जताई गई है। खबरों के अनुसार नासिक में सिर्फ 50000 कंडोम ही स्टॉक में बचे हैं। ऎसे में असुरक्षित सेक्स के बढने का खतरा बढ गया है। एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के मुताबिक महाराष्ट्र स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी ने कंडोम की कमी की शिकायत करते हुए और कंडोम की मांग की है। सोसायटी के एक अफसर के मुताबिक नासिक में फीमेल सेक्स वर्कर्स के लिए 50000 कंडोम ही स्टॉक में बचे हैं। यह स्टॉक कुंभ से पहले खत्म हो जाएगा। अधिकारी के मुताबिक नेको ने कंडोम की आपूर्ति बंद कर दी है।
अपनी सरकारों को और मीडिया को भी रोटी और रोजगार,जल जंगल जमीन आजीविका पर्यवरण के मसले कोई मसले नहीं लगते।आपदाओं का सिलसिला जो है ,वह भी इन दिनों तब तक खबर नहीं है जबतक न कि हेलीकाप्टरों से उड़ान और धुंआधार बचाव राहत अभियान की चांदी हो।लेकिन कंडोम की चिंता बहुतै है कि धर्म कर्म के लिए कंडोम उतना ही जरुरी बा,जितना के अर्थव्यवस्था के लिए विश्वसुंदरियां।
बाकी राजस्व जो बनता है पोर्टल से वह तो पोर्न का धंधा है,लोग वही देखते पढ़ते हैं और थ्रीजी फोर जी का मतलब भी वही कंडोम कारोबार है।
कामशास्त्र को रचने वाले भी ऋषि थे तो अमल करने वाले भी साधु संत बापू वगैरह वगैरह होंगे जो धर्मोन्माद का कारोबार भी खूब करते हैं।चौसठ आसनों का राष्ट्रधर्म अब उनका राजकाज भी है।बाकी कास्टिंग काउचो भौते हैं।
पुरुष वर्चस्व वाले इस धर्मोन्मादी समाज में स्त्री के हक हकूक का मामला भी इसीतरह कंडोम में निष्मात हैं।
इसी कंडोम कारोबार के चलते हर धर्मस्थल पर हजारों साल से देहमंडी है और राजकपूर ने वर्षों पहले गंगा के बहाव के साथ साथ धर्मस्थलों पर सजी देहमंडियों का सिलसिला राम तेरी गंगा मैली में दिखाया भी खूब है।
कैलाश मानसरोवर हो या चार धाम की यात्रा अब दुरगम उतना नहीं है।पैसे हो तो फटाक से जा सकते हैं वहां और हानीमून स्पाट भी वे ही हैं।इन तीर्थ यात्रियों के धर्म कर्म का नतीजा पहाड़ों में धर्मस्थलों के आस पास सजे तमाम सितारों से सजी रिहाइशें हैं और पारंपारिक यात्रा अब हानीमून यात्रा में तब्दील है।
बाजार में धर्म का कायाकल्प भी खूब जाहिर है कि हो गया है।धर्मस्थलों के बाद कुंभ का यह कायाकल्प तो होना ही था।
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