स्टेट टेरर के सबसे बड़े सच सलावा जुड़ुम, आफस्पा और जख्मी हिमालय
पर पहले राय बताइये,हाजिरान!
कानून की तरह धर्मनिरपेक्षता भी अंधी जो गुजरात से लगे मध्य भारत में सलवाजुड़ुम पर खामोश तो कश्मीर पर न बोले है और न पूर्वोत्तर का हकीकत जाने है और न हिमालय का दर्द बूझै है?
मुहब्बत न की हो टूटकर कभी तो क्या समझिये इस कायनात को,क्या समझिये इंसानियत के जख्मों को और क्या देखिये कि बरकतों और नियामतो से कैसे बेदखल है आवाम जब सत्ता का मतलब राष्ट्रीय आतंक हो!
सच को दफनाने की रस्म में हम सारे बाराती जो हुए,जनाजे में शामिल संगदिल हुजूम!
पलाश विश्वास
व्यापमं घोटाला कोई सलवा जुड़ुम से अलग थलग मामला नहीं है।जिन लोगों को इस मामले में एक टीवी चैनल के बड़े खोजी पत्रकार की मौत के बाद राष्ट्र का आतंक नजर आ रहा है,उन्हें बस्तर या दांतेबाडा़.मध्यप्रदेश या छत्तीसगढ़ या दिश में कहीं भी आदिवासी भूगोल में जारी सलवाजुडुम में राष्ट्र का आतंक नजर नहीं आया,बल्कि वे इसे राष्ट्रीय एकता और अखडता का मामला मानते हुए सैन्य अभियानों के पक्ष में समां बांधते नजर आते रहे हैं।
आदिवासी भूगोल,गैर नस्ली हिमालयी जनता,पूर्वोत्तर और कुछ हद तक बिहार बंगाल ओड़ीशा,कश्मीर और दक्षिणा भारत में जब तब राष्ट्र के आतंक का दोजख भोगते लोगों के लिए हमारे दिलोदिमाग में कोई संवेदना कहीं बची नहीं है।
आदरणीय पुण्य प्रसूण वाजपेयी ने मरम को भेदते हुए लिखा है और जबसे पढ़ा हूं,दिल तार तार है।इसीतरह भड़ास में तमाम टिप्पणियां और फेसबुक के वाल के मुखातिब होकर अक्षय की अंत्येष्टि में शामिल राजनीति के रंग बिरंगे चेहरे ही नजर आ रहे हैं मुझे,जबक जिसीक जिंदगी की डोर टूटी है,वह भी हमारा स्वजन है।जो लोग व्यापमं के सवाल पर जमीन आसमान एक कर रहे हैं,स्टेट टेरर के बारे में , जो बुनियादी मुद्दा पुम्यप्रसूण ने उठाया है,उसके बारे में सैन्य अभियानों के बारे में ,राज्य के सैन्यीकरण के जरिये वर्ग वर्ण आधिपात्य के अमोघ मनुस्मृति शासन के बारे में उनमें से किसी की राय संघ परिवार से अलग है नहीं,हमारा मसला लेकिन यही है।
हम वाजपेयी के मंतव्य से सहमत हैं और उसको दुबारा दोहराते हैंः
अक्षय नहीं रहा : खबरों में जिन्दगी जीने के जुनून में डोर टूटी या तोड़ी गई ?
अगर स्टेट ही टैरर में बदल जाये तो आप क्या करेंगे
अगर स्टेट ही टैरर में बदल जाये तो आप क्या करेंगे। मुश्किल तो यही है कि समूची सत्ता खुद के लिये और सत्ता के लिये तमाम संस्थान काम करने लगे तब आप क्या करेंगे। तो फिर आप जिस तरह स्क्रीन पर तीन दर्जन लोगों के नाम, मौत की तारीख और मौत की वजह से लेकर उनके बारे में सारी जानकारी दे रहे हैं उससे होगा क्या।
फिरभी हमारे लिए स्टेट टेरर किसी एक पत्रकार की मौत नहीं है।
फिर उस नजरिये की भी बल्ले बल्ले कि राजधानी का विशेष संवाददाता हुआ पत्रकार और जनपदों में पत्रकारिता के कारिंदे जो मारे जा रहे हैं,वे हुए पनवाड़ी,अपराधी।
इतना ही लिख सका कि नैनीताल में भूस्खलन की खबर आ गयी।रात में ही नेपाल में फिर भूकंप की खबर थी।झेलम कगारें तोड़कर कश्मीर घाटी को डुबो रही है तो दार्जिलंग कलिम्पोंग मिरिक के पहाड़ों में तबाही है।सिक्किम बाकी देश से कटा हुआ है और अब जब लिख रहा हूं तो उत्तराखंड में,उससे लगे हिमाचल में अगले दो दिन भारी बरसात का अलर्ट जारी हो चुका है।
यह स्टेट टेरर के भूगोल की झांकियां है,जिसे हम बाकी देश के लोग सिरे से आजादी के बाद से लगातार नजर्ंदाज करते रहे हैं।
क्योंकि हमारी चेतना हमरी अस्मिताओं में कैद है।
गैरनस्ली भूगोल की तबाही हमें कहीं से स्पर्श नहीं करती।
केदार जलआपदा में स्वजनों को खोने की पीड़ा का अहसास हुआ तनिक तो खबरें भी बनीं तो नेपाल को फिर हिंदू राष्ट्र बनाने का तकादा है तो उस महाभूकंप की धूम रही।अब नेपाल की दिनचर्या के लहूलुहान जख्मों और लगातार जारी झटकों और भूस्खलन जिसका असर भारत के हिस्से के हिमालय में भी खूब हो रहा है,उसकी चर्चा की फुरसत नहीं है किसीको।ताजा मिसाल नैनीताल में आज तड़के भूस्खलन की खबर है,जिस पर देश की नजर लेकिन नहीं है।
हमरा लिए राष्ट्र का आतंक इंसानियत के लिए जितना खतरनाक है,उससे कहीं ज्यादा कतरनाक है इस कायनात के लिए,उसकी रहमतों और बरकतों के लिए।
कयामतें अस्मिता देखकर शिकार नहीं बनाती और पूंजी के खुल्ला आखेट की तरह रंग रुप जाति हैसियत देखकर तय नहीं करती कि किसे मारे किसे रखें।
जैस इन दिनों मेरे पहाड़ लहूलुहान हो रहे हैं,वैसे ही लहूलुहान होंगे राजधानिययों में सत्ता के तमाम तिलिस्म भी और यह सौन्दर्यशास्त्र प्रकृति का इतिहास है और उसका विज्ञान का भी,जिसे सत्ता का कोई रंग लेकिन बदल नहीं सकता।
रातभर उत्तराखंड में जमकर बरसे बादलों ने नैनीताल में दो लोगों की जान ले ली। प्रशासन ने नदियों और झीलों के किनारे रहने वालों के लिए अलर्ट जारी किया है।
मौसम विभाग द्वारा दी गई भारी बारिश की चेतावनी को देखते हुए नैनीताल, देहरादून और हरिद्वार समेत कई जिलों में स्कूल बंद रहे।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि नैनीताल में भारी बारिश के कारण एक पेड़ के गिर जाने से एक व्यक्ति की मौत हो गई जबकि दूसरे व्यक्ति की मौत जिले में रामनगर के पास एक नदी को पार करने की कोशिश के दौरान हुई।
माल रोड-बिरला स्कूल मार्ग पर भारी बारिश की वजह से यातायात बुरी तरह प्रभावित हुआ है। भूस्खलन के कारण मलबा माल रोड तक आ गया है और इस भूस्खलन ने रास्ते में आए तकरीबन दर्जनभर मकानों को बुरी तरह प्रभावित किया है। हालांकि भूस्खलन के मलबे से किसी के हताहत होने की कोई खबर नहीं है।
एहतियाती तौर पर नैनीताल जिले में नदी, झील और धाराओं के पास रहने वाले लोगों के लिए अलर्ट जारी किया गया है क्योंकि भारी वष्रा के कारण वे बाढ़ की चपेट में आ सकते हैं।
सूत्रों ने बताया कि नियंत्रण कक्षों को अलर्ट पर रखा गया है और सभी सरकारी कर्मचारियाों की छुट्टियां तत्काल प्रभाव से कल तक के लिए रद्द कर दी गई हैं।
कुमाउं क्षेत्र में पानी और बिजली आपूर्ति भी प्रभावित हुई है।
देहरादून में मौसम अधिकारी ने बताया कि नैनीताल में 120 मिलीमीटर, हल्द्वानी में 110 मिलीमीटर, देहरादून में 83.7 मिलीमीटर, रूड़की में 79 मिलीमीटर , मसूरी में 60 मिलीमीटर और पिथौरागढ़ में 51.6 मिलीमीटर वष्रा दर्ज की गई है।
चमोली और उत्तरकाशी जैसे उंचे इलाकों में कम वष्रा हुई है जिससे बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री यात्रा अभी तक अप्रभावित हैं।
मीडिया की खबर है कि मौसम विभाग ने अगले दो दिनों तक उत्तराखंड के कई इलाकों में भारी बारिश की चेतावनी जारी की है, जिसे देखते हुए राज्य सरकार ने पौढ़ी गढ़वाल,नैनीताल, ऊधम सिंह नगर समेत कई इलाकों में अलर्ट जारी कर दिया है।पहाड़ों पर हो रही बारिश के चलते कई जगहों पर भूस्खलन भी हुआ है।केदारनाथ यात्रा मार्ग पर चिरवासा में भारी बारिश के कारण भूस्खलन होने से कई यात्री फंस गए , एस.डी.आर.एफ. की टीमों द्वारा मौके पर वैकल्पिक रास्ता बनाकर करीब 356 तीर्थयात्रियों को सकुशल गौरीकुंड तक पहुंचाया गया।
सुरक्षा के मद्देनजर चारधाम यात्रा रोक दी गई है और फंसे हुए यात्रियों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया जा रहा है। नदियों के किनारे बसे गांवों में हर बार की तरह एक बार फिर बाढ़ का खतरा हो सकता है जिसके लिए सरकार ने पहले से ही कमर कसते हुए आपदा प्रबंधन विभाग को अलर्ट कर दिया है। मौसम विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार रविवार शाम से उत्तरकाशी में बारिश शुरू हो गई है।
गंगोत्री समेत उपला टकनौर के सभी क्षेत्रों में तेज मूसलाधार बारिश जारी है। प्रशासन ने गंगोत्री और यमुनोत्री यात्रा रूटों पर सभी विभागों के अधिकारियों को अलर्ट कर दिया है। हरिद्वार में भी गंगा किनारे बसे गांवों में अलर्ट जारी कर दिया गया है। इस बार आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा गंगा किनारे बसे गांवों के युवाओं को भी बाढ़ जैसी परिस्थितियों से बचने के लिए प्रशिक्षित भी किया जा रहा है।
कानून की तरह धर्मनिरपेक्षता भी अंधी जो गुजरात से लगे मध्य भारत में सलवाजुड़ुम पर खामोश तो कश्मीर पर न बोले है और न पूर्वोत्तर का हकीकत जाने है और न हिमालय का दर्द बूझै है?
मुहब्बत न की हो टूटकर कभी तो क्या समझिये इस कायनात को,क्या समझिये इंसानियत के जख्मों को और क्या देखिये कि बरकतों और नियामतो से कैसे बेदखल है आवाम जब सत्ता का मतलब राष्ट्रीय आतंक हो!
सच को दफनाने की रस्म में हम सारे बाराती जो हुए,जनाजे में शामिल संगदिल हुजूम!
जिस अबाध पूंजी प्रवाह की खातिर हम राष्ट्र को सैन्यतंत्र में बदलने को तत्पर हैं,जिस हिंदू राष्ट्र के लिए,ग्लोबल हिंदुत्व के वैश्विक आधिपात्य के लिए हम फासीवादी नरसंहारी वैदिकी हिंसा की पैदल फौजे हैं,उसका भी क्रिया कर्म अब होने ही वाला है।
भले ही बाबी जिंदल बन जाये अमेरिका का हिंदू राष्ट्रपति अश्वेत बाराक ओबामा की तरह,डालर का वर्चस्व अब टूटने ही वाला है।
आदिवासी भूगोल का जनाजा निकालने वालों,हिमालय को किरचों में बिखेरने वालो संभल जाओ कि कयामतें शासकों और प्रजाजनों में फर्क नहीं करती।झोपड़ियां गिरें न गिरें,आंधियां महलों के परखच्चे उड़ा देती है।हूबहू लेकिन यही होने वाला है।
दुनिया में भारत अव्व ल वह देश है जो मेकिंग इन के बहाने एकमुश्त कृषि,वाणिज्य और उद्दोग विदेशी पूंजी,विदेशी हितों के हवाले करता जा रहा है क्योंकि देश बेचो सलवा जुड़ुम ब्रिगेड सत्ता में है और महाजिन्न को अडानी अंबानी के विश पूरी करने से फुरसत नहीं है बाकी वे सूट बूट में बिरंची बाबा है।जिनकी सत्ता के खिलाफ पत्ते तक खड़कने नहीं चाहिए।
परिंदे जहां पर न मार सके हैं,वहां मौतों के उस सिलसिले का खुलासा करने गया अपना अक्षय,राष्ट्र के आतंक की राजधानी से जहां गुजरात नरसंहार के सच के मुकाबले,सिख संहार के इतिहास के मुकाबले,दंगों के अबाध राजकाज के मुकाबले नरसंहार संस्कृति का राजकाज आजादी के पहले दिन से मुकम्मल है।
दरअसल मध्यभारत में सलवा जुड़ुम संस्कृति के खिलाफ अटूट चुप्पी हमारा सबसे बड़ा अपराध है और इसे दर्ज करने की कोई जहमत हमने अबतक नहीं उठायी है।
यह वही मध्यप्रदेश है,जहां साहित्य और संस्कृति को सत्ता का अंग बनानेकी कवायद आपातकाल में हुई और वहीं से भगवाकरण की आंधियां देश भर में फैली हैं।
आभिजात नागरिकों,नागरिकाओं,बताइये कि कब हम इस स्टेट टेरर की मशीनरी पर बोले हैं।गुजरात के अलावा राजदनीति ने कब सलवाजुड़ुम के मधयभारत को मुद्दा बनाया है,बताइये।
व्यापमं पर जो लोग खूब बोले हैं,जरा उनसे पूछिये कि जल जमीन जंगल से बेदखली का जो अबाध अश्वमेधी राजसूय जारी है निरंतर,उसमें उनकी भूमिका क्या है और वे किस पक्ष में खड़े हैं।
वधस्थल पर मरे गये अक्षय को ही हम देख नहीं रहे हैं,न हम कटचे हुेसरों को देख रहे हैं,हम देख रहे हैं कंबंधों का वह महाजुलूस,जो इस देश का मीडिया,कला साहित्य और माध्यमों से जुड़े कंबंध निबंध हैं।
वधस्थल का यह तमाशा बहुत जल्द मंदी की सुनामी में दफन होने वाला है,दोस्तों।ढहते हुए हिमालय से यह सबक जरुर सीख लीजिये कि मसलन ग्रीस ने यूरोपीय देशों के बेलआउट पैकेज को ठुकरा दिया है। और इसके साथ ही ग्रीस के यूरोजोन से बाहर होने की आशंका गहरा गई है। ग्रीस में जनमत संग्रह में 60 फीसदी से ज्यादा लोगों ने बेलआउट प्रस्ताव के खिलाफ वोटिंग की है।
बधाई हो ग्रीस की जनता को ,जिसने यूरोप और अमेरिका के वर्चस्व को,डालरतंत्र को धता बता दिया।
इसी के मध्य
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ग्रोथ के लिए भूमि अधिग्रहण बिल और जीएसटी बिल पास होने को जरूरी बताया। वित्त मंत्री ने कहा कि अगर 8-10 फीसदी ग्रोथ हासिल करना है और गरीबी दूर करनी है तो अहम बिलों का मॉनसून सत्र में पास होना जरूरी है।
साथ ही वित्त मंत्री ने ये भी कहा कि सामाजिक और आर्थिक मापदंडों पर की गई जनगणना इसलिए की गई है कि सोशल स्कीम्स का फायदा सिर्फ जरूरतमंदों तक पहुंच सके। आपको बता दें कि मॉनसून सत्र की शुरुआत 21 जुलाई से होने वाली है और विपक्षी पार्टियों ने पहले से सरकार को घेरने का एलान कर दिया है। ऐसे में अहम बिल इस सत्र में पास कराना सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गई है।
दरअसल, कर्ज मिलने के नए प्रस्ताव में ग्रीस में खर्चों में भारी कटौती की शर्तें थीं। और ग्रीस के प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिप्रास ने लोगों से इस प्रस्ताव के खिलाफ वोट करने की अपील की थी। हालांकि ग्रीस के इस फैसले के बाद देश में आर्थिक संकट और गहराना तय है।
बहरहाल अब सभी की नजरें कल होने वाले यूरोजोन देशों की बैठक पर टिकी है जिसमें ये फैसला होगा कि ग्रीस को यूरोजोन में बनाए रखा जाए या नहीं। इस बीच ग्रीस के बैंक आज से खुलेंगे या नहीं, इस पर भी कंफ्यूजन बना हुआ है।
खास बात तो यह है कि ग्रीस के पीएम ने दो टुक कह दिया है डंके की चोट पर कि ग्रीस यूरोप से उलझने के मूड में नहीं है बल्कि लोगों ने यूरोप की एकता और लोकतंत्र के लिए वोट किया है। ग्रीस के पीएम को उम्मीद है कि कर्जदाता फिर से बातचीत को तैयार होंगे और जल्द ही नई फंडिंग हो जाएगी।
वहीं दूसरी ओर ,इस फैसले के बाद ग्रीस के वित्त मंत्री ने इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने कहा है कि वो चाहते हैं की ग्रीस के प्रधानमंत्री इस मसले को अपने तरीके से सुलझाएं और यूरोपीय देशों के साथ किसी समझौते पर पहुंच सकें।
मजे की बात तो यह है कि अर्द्धसत्य बोलने के उस्ताद हैं तमाम अर्थशास्त्री।रिजर्व बैक के गवर्नर तो पिरभी ठिठके हैं,लेकिन चजैसे अर्थव्यवस्था के तमाम मैनेजर कारपोरेट वकील हैं या डाउ कैमिकल्स के कारिंदे हैं तो गुसाीं,बगुलों का दोष न होई।
जाहिर है कि मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन का मानना है कि भारतीय बाजारों पर ग्रीस संकट का ज्यादा असर नहीं देखने को मिलेगा। अरविंद सुब्रमण्यन के मुताबिक भारत की मैक्रो इकोनॉमी अभी भी मजबूत है और विदेशी निवेश के लिए भारत एक आकर्षक जगह है।
बैंक इंटरनेशनल लक्जमबर्ग के इन्वेस्टमेंट हेड एशिया, हैंस गोएटी का कहना है कि ग्रीस के यूरोजोन से बाहर निकलने का खतरा बढ़ गया है। ग्रीस के फैसले से बाजार में कुछ दबाव आ सकता है लेकिन ज्यादा बड़ी गिरावट की संभावना नहीं है। ग्रीस के फैसले के बाद भारत से एफआईआई का पैसा बड़े पैमाने पर बाहर नहीं जाएगा।
वहीं आइकैन इन्वेस्टमेंट्स के चेयरमैन, अनिल सिंघवी का कहना है कि ग्रीस की समस्या काफी वक्त से चली आ रही है, ऐसे में ग्रीस के बाहर निकलने से यूरोजोन के लिए ये कोई बड़ी समस्या नहीं होगी। साथ ही ग्रीस के इस फैसले का भारतीय बाजार पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा।
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