Kamal Joshiआज का ज्ञान..
हम जैसे सतत यात्रा करने वालों के लिए एक प्राइवेट बस में निर्देश.....
" हर बसर को है हिदायत, सब्र करना चाहिए......
जब खड़ी हो जाए गाड़ी..तब उतरना चाहिए."
आँखों से झांकते हैं कुछ सवाल...
आज नहीं तो कल,
इनके जवाब तो हमें देने होंगे.....
और ये भी की की हम चुप क्यों थे....
जब ये सवाल उठ रहे थे....
टिकुली की फोटो..
टिकुली से मेरी मुलाकात समदर धार के लिए चढ़ाई करते वक्त हुई..मैंने उसका नाम पूछा पर वो बता नहीं पायी. मेरी भाषा तो समझ गयी थी पर बोल नहीं पाई..शायद कमर पर बहुत बोझ था. पर उसके साथ चल रहे खिलाफ सिह ने बताया इसका नाम टिकुली है...
जैसा नाम खूबसूरत टिकुली वैसे ही सुन्दर थी..उसके कान में कहा की तुम बहुत सुन्दर हो पर वो बिलकुल नहीं शरमाई..जानती थी वो खूबसूरत है..
हम बदिया कोट से समदर जा रहे थे ..थके थे. अपना सामान अपनी पीठ पर नहीं ले जा सकते थे. तय हुआ की अपनी पीठ कुछ सामान कम कर लिया जाए.. और खच्चर से सामान को समदर पहुंचाया जाए.. खच्चर वाले के रूप में खिलाफ सिंह जी से मुलाकात हुई. वो समदर के ही रहने वाले थे. उन्हें घर वापस जाना था तो हमारा सामान रियायत के साथ ले चलने को तैयार हो गए. तब वो टिकुली को लेकर आये....देखते ही मैं उस पर फ़िदा हो गया....माथे पर सफ़ेद निशान..., कर्मठ खच्चर (खच्चरी शब्द भी होता है क्या?)
टिकुली की पीठ पर सामान लादकर चले. रास्ते में बात हुए तो पता चला की इसी खच्चर की कमाई से खिलाफ सिंह जी का परिवार चलता है... और जब उसे पता चला की हम पहाड को और उसके लोगों की स्थितिया समझने पिछले बीस दिन से पैदल पीठ पर सामान ले कर चल रहे हैं. हम गाँव वालों का दिया ही खाते है, अपने पास कुछ नहीं रखते.... ..तो वो पिघल गया...बोला "खच्चर का किराया तो देना होगा पर रात को मेरे घर खा लेना...सो भी सकते हो...." हम नंगों को क्या चाहिए था...रात का खाना और सोने के लिए फर्श.. खिलाफ सिंह ने दोनों का आश्वासन दे दिया
एक हंसी निश्छल सी....
ये पहाड़ में जीवन की हंसी है.. ये हंसी चेहरे पर आती है बहुत मेहनत करने के बाद...ज़िन्दगी जीने की मेहनत..., पहाड़ को ज़िंदा रखने की मेहनत के बाद..., प्रकृति के बीच उपजी हंसी से मेरी यात्रा की थकान मिटाने के लिए इस बहन को धन्यवाद
अभी तो बहुत दूर है बराबरी.......!
सरहद ....
काली नदी के किनारे पांगू के पास मिले ये दोस्त. ...., एक भारतीय कहलाता है अर एक नेपाली...
दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते है. एक सी भाषा बोलते हैं ...दोनों एक जैसा ही सोचते हैं..एक से खेल खेलते हैं...एक सी शरारतें करते हैं..और तो और एक ही डंडे से मास्साब की मार खाते है...
दोनों अपनि दोस्त्री नहीं तोड़ना चाहते,,, एक ही जगह एक सी नौकरी करना चाहते हैं...
पर दोनों की चिंताएं भी एक सी हैं.. पीछे वाला पुलिस में ऑफिसर बनाना चाहता है. उसे कोई रुकावट नहीं...पर क्या आगे वाला जो नेपाली है क्या वो भी उसकी तरह पुलिस में भरती हो सकता है. उनका सवाल था....
सरहदें क्यों बनाते हैं हम..जब दिल ही सरहद नहीं बनाता...!
Niranjan Pant का कमेंट: Most Nepalis are eligible for Government employment in India
कमेन्ट का जवाब: ... मूल सवाल eligiblity का नहीं...., राजनीती का है इंसानों को बांटने वाली राजनीति का..
ली नदी के किनारे पांगू के पास मिले ये दोस्त. ...., एक भारतीय कहलाता है अर एक नेपाली...
दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते है. एक सी भाषा बोलते हैं ...दोनों एक जैसा ही सोचते हैं..एक से खेल खेलते हैं...एक सी शरारतें करते हैं..और तो और एक ही डंडे से मास्साब की मार खाते है...
दोनों अपनि दोस्त्री नहीं तोड़ना चाहते,,, एक ही जगह एक सी नौकरी करना चाहते हैं...
पर दोनों की चिंताएं भी एक सी हैं.. पीछे वाला पुलिस में ऑफिसर बनाना चाहता है. उसे कोई रुकावट नहीं...पर क्या आगे वाला जो नेपाली है क्या वो भी उसकी तरह पुलिस में भरती हो सकता है. उनका सवाल था....
सरहदें क्यों बनाते हैं हम..जब दिल ही सरहद नहीं बनाता...!
Niranjan Pant का कमेंट: Most Nepalis are eligible for Government employment in India
कमेन्ट का जवाब: ... मूल सवाल eligiblity का नहीं...., राजनीती का है इंसानों को बांटने वाली राजनीति का..
कब से बैठा सोचता हूँ मैं गुमसुम.....
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