देखी हमारी सरदारी मियाँ ?
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टिहरी जेल से छूटने के बाद 1944 में मेरे पिता सूंदर लाल बहुगुणा भाग कर लाहौर पँहुचे और वहां पंजाब यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया । साल भर बाद रियासती पुलिस राजद्रोही को ढूंढने वहां भी आ पंहुची । एक गांधीवादी को वहां के कम्युनिस्टों ने फरार करवा दिया , ताकि पुलिस से बच सके । वह लायल पुर पँहुचे । एक सम्पन्न किसान ने उन्हें अपना लिया और वह वेश बदल कर सरदार मान सिंह के रूप में वहां रहे । इसीलिए मैं स्वयम् को आधा सिख कहता हूँ । यह तभी का चित्र शेयर किया है मित्रो ।
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