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Wednesday, March 30, 2016

नारद दंश के बाद बगावत की हलचल,हवा बदलने लगी है बंगाल में बंगाल के चुनाव नतीजे चाहे कुछ हो,बंगाल आखिरकार संघ परिवार के लिए वाटरलू साबित होने जा रहा है। दिल्ली में तो सिर्फ एक जेएनयू है लेकिन बंगाल में जादवपुर, कोलकाता से लेकर विश्वभारती विश्वविद्याल.जिसके कुलाधिपति खुद प्रधानमंत्री हैं,खड़गपुर आईआईटी से लेकर कोलकाता आीआईएम तक फासिज्म विरोधी मोर्चे के अजेय किलों में तब्दील है और वहां किसी को राष्ट्रद्रोही करार देने की औकात न केंद्र सरकार में है और न राज्य सरकार में। बंगाल में बगावत सनसनी की तरह उबाल नहीं खाती।जमीन के भीतर ही भीतर भूमिगत आग की तरह सुलगती है क्रांति जिसकी आंच पहले पहलमालूम ही नहीं होती लेकिन एक बार खिल जाने के बाद वह आंच जंगल की आग की तरह दहकने लगती है। एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास संवाददाता हस्तक्षेप


नारद दंश के बाद बगावत की हलचल,हवा बदलने लगी है बंगाल में


बंगाल के चुनाव नतीजे चाहे कुछ हो,बंगाल आखिरकार संघ परिवार के लिए वाटरलू साबित होने जा रहा है।


दिल्ली में तो सिर्फ एक जेएनयू है लेकिन बंगाल में जादवपुर, कोलकाता से लेकर विश्वभारती विश्वविद्याल.जिसके कुलाधिपति खुद प्रधानमंत्री हैं,खड़गपुर आईआईटी से लेकर कोलकाता आीआईएम तक फासिज्म विरोधी मोर्चे के अजेय किलों में तब्दील है और वहां किसी को राष्ट्रद्रोही करार देने की औकात न केंद्र सरकार में है और न राज्य सरकार में।


बंगाल में बगावत सनसनी की तरह उबाल नहीं खाती।जमीन के भीतर ही भीतर भूमिगत आग की तरह सुलगती है क्रांति जिसकी आंच पहले पहलमालूम ही नहीं होती लेकिन एक बार खिल जाने के बाद वह आंच जंगल की आग की तरह दहकने लगती है।



एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

संवाददाता हस्तक्षेप

ममता बनर्जी के लिए शायद सबसे बुरी खबर यह है कि शारदा कांड और नारद दंश से भले ही केसरिया छाते के सहारे उनकी सरकार और उनकी पार्टी का कुछ बिगड़ा न हो,लेकिन उनकी पार्टी और सरकार में भूमिगत आग सुलगने लगी है।


जो बेदाग लोग हैं और दागी बिरादरी से अलग अपनी साख बचाने की फिराक में है,कांग्रेस वाम धर्मनिरपेक्ष गठबंधन की हवा की रुख समझकर वे तमाम लोग बगावत का झंडा कभी भी बुलंद कर सकते हैं और इससे भी बुरी खबर है कि जिन्हें दीदी ने वाम खेमे से तोड़कर अपने किलेबंदी की ईंटों में तब्दील करना चाहा,वे राख में तब्दील है।


मसलन,वाम किसान नेता रेज्जाक अली मोल्ला अभी से नेस्तानाबूत है। उम्मीदों के विपरीत वाम कांग्रेस गठबंधन जमीनी स्तर पर बहुत मजबूत किलेबंदी करने लगा है और दीदी का जो हो सो हो,बंगाल में भाजपा का और संघ परिवार का सूपड़ा साफ होने जा रहा है।


बिहार से हार का जो सिलसिला बना है,वह गोमूत्र से जीत में बदलने के आसार कम ही है।अंध राष्ट्रवाद की आंधी से बंगाल का प्रगतिशील बौद्धमय माहौल को धर्मांध बनाने में फेल हैं बजरंगी।


दिल्ली में तो सिर्फ एक जेएनयू है लेकिन बंगाल में जादवपुर, कोलकाता से लेकर विश्वभारती विश्वविद्याल,जिसके कुलाधिपति खुद प्रधानमंत्री हैं,खड़गपुर आईआईटी से लेकर कोलकाता आीआईएम तक फासिज्म विरोधी मोर्चे के अजेय किलों में तब्दील हैं और वहां किसी को राष्ट्रद्रोही करार देने की औकात न केंद्र सरकार में है और न राज्य सरकार में।


बंगाल में बगावत सनसनी की तरह उबाल नहीं खाती।


जमीन के भीतर ही भीतर भूमिगत आग की तरह सुलगती है क्रांति जिसकी आंच पहले पहलमालूम ही नहीं होती लेकिन एक बार खिल जाने के बाद वह आंच जंगल की आग की तरह दहकने लगती है।


बंगाल के चुनाव नतीजे चाहे कुछ हो,बंगाल आकिरकार संघ परिवार के लिए वाटरलू साबित होने जा रहा है।


बंगाल फासिज्म के राजकाज के लिए वाटरलू साबित होने लगा है।


बंगाल एकमात्र देश का वह हिस्सा है कि राज्यसरकार के साथ गुपचुप समझौते के बावजूद संघपरिवार का केसरिया अश्वमेधी रथों के पहिये कीचड़ में धंस गये हैं और कमल कहीं खिल नहीं रहे हैं।


मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शारदा चिटफंड घोटाले को रफा दफा कराने में कामयाब तो रही लेकिन नारद दंश से बचने के फिराक में संघ परिवार के हमलों के जवाब में खामोशी से मोदी दीदी गठबंधन का इस कदर पर्दाफाश हो गया है कि निर्णायक अल्पसंख्यक वोट बैंक अब साबुत बचा नहीं है।


और दिनोंदिन एक के खिलाफ एक प्रत्याशी के सीधे मुकाबला में धर्मनिरपेक्ष वाम लोकतांत्रिक गठबंधन की जमीन मजबूत होता जा रहा है।लोकसभा और राज्यसभा समितियों का फैसला जब आयेगा तब आयेगा, दीदी की ईमानदारी का चादर बेहद मटमैला हो गया है और शारदा के धब्बे कमल फूल बने खिल रहे हैं।


खुल्ला हो गया है सरेआम खेल फर्रूखाबादी।

बेनकाब हो गये हैं टाट के परदे।

अब कोई दुआ भी शायद काम आये।

वैसे भी बंगाल में अब फतवे का कोई काम नहीं है।


नारददंश के पहले हुए सर्वेक्षण और पिछले परिवर्तनकारी चुनावों के मतों के विश्लेषण से साफ था कि एक के खिलाफ एक प्रत्याशी की हालत में दीदी की सत्ता में वापसी बेहद मुश्किल हो सकती है।


कुछ शंका इसे लेकर थी कि साझा चुनाव प्रचार और साझा कार्यक्रम के बिना वाम वोटच कांग्रेस को और कांग्रेस के वोट वाम दलों के हस्तांतरित होने की संभावना कितनी है।जनता के प्रचंड समर्थन से वह शंका भी लगभग खत्म है,समझिये।


किन्हीं किन्हीं अखबारों में ऐन चुनाव से पहले विकास के विज्ञापनों का जो जलजला आया था और सड़क पुल अस्पताल केंद्रित विकास के उद्घाटन शिलान्यास मार्का बाजार समर्थित हवा जो बनायी जा रही थी,वह सबकुछ इसवक्त ध्वस्त है।

मजा इसमें यह है कि नारददंश के मुकाबले कोलकाता खुफिया पुलिस ने संघ परिवार को गाय तस्करी के मामले में घुसखोरी का जो स्टिंग कराना चाहा,उसका ऐसा खुलासा हो गया है कि संघ परिवार की मजबूरी यह हो गयी है कि बंगाल में धार्मिक ध्रूवीकरण के मनसूबे पूरीतरह फेल हो जाने और हर चुनाव क्षेत्र में जमानत जब्त होने के हालात में यूपी उत्तराखंड और पंजाब में भी करारी शिकस्त तय जानकर दीदी के खिलाफ मोर्चा बांधने की मजबूरी है।


दूसरी तरफ, गले गले तक भ्रष्टाचार के गोरखधंधे में फंसी दीदी की ईमानदारी का कच्चा चिट्ठा बीच बाजार खुल जाने के बाद मोदी और अमित साह तो क्या राहुल सिन्हा तक के मुकाबले जबाव देने की कोई सूरत नहीं है।


बेहद मुखर दीदी का यह मौन असल किस्सा बताने लगा है इसतरह कि अब साबित करने को कुछ नहीं बचा है।


भाजपा और संघ परिवार के वैसे भी बड़े दुर्दिन आ गये हैं।


बाजार के मुनाफे के लिए विकास के बहाने जनविरोधी उसकी तमाम हरकतों से हिंदुत्व का ख्याली पुलाव गुड़गोबर है तो आस्था की पूंजी वाले देश के मेहनतकश तबकों को मालूम हो गया है कि इनका सारा खेल सुखीलाला की कारस्तानी है और मीठे जहर के कयामती कारवां लेकर ये जनता और देश का जनाजा निकालने पर आमादा हैं।देशभक्ति के ये इजारेदार देश बचने लगे हैं।


गुजरात के प्रयोग असम में दोहराने का कार्यक्रम भी फेल है और दिल्ली और यूपी  में दंगा करवाकर उत्तर भारत जीतने का मंसूबा भी बेकार है।तो उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार गिराने का दांव भी उलटा पड़ गया है।


हाईकोर्ट ने राष्ट्रपति शासन के आदेश के खिलाफ हरीश रावत को बहुमत साबित करने का मौका दे दिया है।अब रावत चाहे सरकार बचा ले या बागी कांग्रेसी सीधे संघ घराने में दाखिल हो जाये,चुनाव देर सवेर होंगे ही और तब बिहार से लेकर बंगाल यूपी असम तक फैले वाटरलू में खड़े संघपरिवार का क्या होगा,राम ही जाने।


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